भूमण्डलीकरण, उदारीकरण, उन्नत प्रौद्योगिकी एवं सूचना-तकनीक के बढ़ते इस युग में यदि सबसे बड़ी चुनौती भाषा के लिए पैदा हुई है तो इसी चुनौती स्वरूप भाषाओं का विकास भी हुआ है। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषायें उच्च शिक्षा का माध्यम न होने के कारण भाषा के स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया से लम्बे समय तक दूर रहीं हैं। इसलिए हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं को विज्ञान तथा तकनीकी क्षेत्र में विकसित करने के लिए सुनियोजित प्रयास की जरूरत है। उक्त उद्गार चर्चित हिंदी लेखक एवं राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव ने वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली एवं हिंदी विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर द्वारा एम. बी. एम. इंजीनियरिंग कॉलेज के इंटरनेशनल सभागार में आयोजित ”उच्च शिक्षा में तकनीकी शब्दावली का प्रयोग” विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किये।
अपने सारगर्भित सम्बोधन में निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि दुनिया में जापान, फ्रांस जैसे तमाम विकसित देश अपनी भाषा के माध्यम से तकनीक के सिरमौर बने हुए हैं, ऐसे में अपनी सभ्यता, विरासत और संस्कृति की अच्छी चीजों को सहेजकर ही विज्ञान को उन्नत बनाया जा सकता है और मौलिक चिन्तन व आविष्कार की स्वतंत्रता के लिए स्वयं की भाषा को ही वरीयता देना होगा। अपने महान ग्रंथों से मोती चुनकर, दुनिया की तमाम भाषाओँ में लिखे जा रहे शोधकार्यों को अपनी मातृभाषा में अनुवादित कर, विज्ञानं और प्रौद्योगिकी को सहज रूप में अपनी मातृभाषा के माध्यम से लोगों में विस्तारित करके, उच्च शिक्षा में अपनी भाषा में मौलिक शोधों को बढ़ावा देकर और तकनीक को हौव्वा की बजाय दिनचर्या और नवाचार से जोड़कर इसे और भी समृद्ध बनाया जा सकता है। श्री यादव ने कहा कि आम आदमी की भाषा विज्ञान और तकनीक की भाषा से पृथक हो सकती है पर इसका तात्पर्य यह नहीं कि जनसामान्य की भाषा में विज्ञान और तकनीक की बातें नहीं समझाई जा सकतीं। बस जरूरत हमें अपनी सोच और कार्य प्रणाली बदलने की है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं प्रो. सुधि राजीव, अधिष्ठाता कला, शिक्षा एवं समाज विज्ञान संकाय,जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय , जोधपुर ने कहा कि भाषा किसी भी संस्कृति का आईना होती हैं और एक भाषा की समाप्ति का अर्थ है कि एक पूरी सभ्यता और संस्कृति का नष्ट होना। ऐसे में हिंदी में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली को समृद्ध कर इसे और भी उन्नत बनाया जा सकता है।
वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली के सहायक निदेशक इं. मोहन लाल मीना ने आयोग की कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आयोग हिन्दी और अन्य सभी भारतीय भाषाओं के वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दों को परिभाषित एवं नए शब्दों का विकास करता है ताकि ज्ञान-विज्ञान की सभी शाखाओं में हिंदी व अन्य भाषाओँ के माध्यम से अध्ययन एवं अध्यापन हो सके। सहायक वैज्ञानिक अधिकारी जय सिंह रावत ने कहा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विभिन्न विषयों से संबंधित ज्ञान को सरल, सुबोध एवं रोचक शैली में जनसामान्य को उपलब्ध कराना हमारा दायित्व है।
कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत कार्यशाला के संयोजक प्रो. श्रवण कुमार मीना और आभार ज्ञापन हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. देवेन्द्र कुमार सिंह गौतम ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. कामिनी ओझा ने किया। इस दौरान विभिन्न प्रांतों से आए हुए वैज्ञानिक, शिक्षक गण, विद्व्त जन एवं शोधार्थी उपस्थित रहे। उद्घाटन सत्र के बाद विभिन्न वक्ताओं ने उच्च शिक्षा में तकनीकी शब्दावली के प्रयोग पर अपने विचार व्यक्त किये। कार्यशाला का समापन 28 मार्च को होगा।
————————————————–
प्रेषक
प्रो. श्रवण कुमार मीना
संयोजक-राष्ट्रीय कार्यशाला
हिंदी विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर