Thursday, November 14, 2024
spot_img
Homeभुले बिसरे लोगएक यादगार लम्हा अभिनेता देव आनंद के साथ

एक यादगार लम्हा अभिनेता देव आनंद के साथ

कोई कुछ भी कह लेकिन दोस्ती की यात्रा अभिनेता देव आनद के साथ काफी दिलचस्प रही. हिन्दुस्तान के एक मशहूर अभिनेता के साथ बड़ी मेरी यात्रा न केवल अद्भुत रही बल्कि छू लेने वाली है

ये उस समय की बात है जब देव साहब का फ़िल्मी दौर हिंदुस्तान में अपनी ऊँचाइयों पर था. उनकी अदाओं और खूबसूरती पर महिलाओं और लड़कियों की धडकने उनका नाम लेने से ही बढ़ जाती थी. उनकी फ़िल्में जब सिनेमा हाल में तो लगती थी लड़कियों की संख्या मर्दो के मुकाबले ज्यादा होती थी और वो किसी भी कीमत पर टिकट पा लेना चाहती थी. ये उनका जूनून ही था कि वो पहले दिन ही उनका पहला शो देख लेना चाहती थी . यही नहीं कई बार तो उनकी खूबसूरती पर लड़कियां बेहोश तक हो जाती थी मुझे याद है कि एक बार देव साहब जब काला सूट पहन कर स्टूडियो से निकले तो कई लड़कियां उनके सामने ही गिर पड़ी थी. इसके चलते एक कोर्ट ने देव साहब पर काले कपडे पहनने पर पाबन्दी लगा दी जो अपने आप में एक अनोखी घटना थी.

हालांकि कायदे से मेरा सम्बन्ध देव साहब से उस समय जुड़ा जब उन्होंने “हरे रामा हरे कृष्णा” बनाई. उस समय मैं भी फिल्म वितरक था और दिल्ली से फिल्मों के वितरण का बिज़नेस करता था. उनके मैनेजर ने देव साहब से मुलाकात करवाई थी ये सन् १९७३ की बात है।

हम उन दिनों के बनारस में रहते थे जिसे आजकल वाराणसी कहते है. वहां हमारे दो सिनेमा हाल थे। हरे रामा हरे कृष्णा” बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म थी. उस समय फिल्मों के सिलसिले में मन्नत माँगना और पूजा आम बात थी लेकिन वे आर्य समाजी थे, वो मूर्ति पूजा पर विश्वास नहीं रखते थे परन्तु मेरे कहने पर उन्होंने बनारस जा कर शिवजी के दर्शन करना स्वीकार कर लिया और वे अपने साथ गुलशन राय प्रोडूसर और एक्टर इफ्तिखार जो अक्सर उनकी फिल्मों में इंस्पेक्टर का किरदार अदा करते थे, को लेकर बनारस पहुँच गए. चूँकि वहां हमारे अपने सिनेमा हॉल थे तो मुझे उनकी व्यवस्था करने में कोई दिक्कत नहीं हुई और हम बनारस के क्लार्क होटल में रुके. उस ज़माने में सिनेमा हॉल वालों का बड़ा रसूक होता था इसी के चलते पूरा विश्वनाथ मंदिर को खली करवा दिया गया.

यहाँ एक बात बताना में जरूरी समझता हूँ की जब हम गाड़ी में बैठे तो मैं ने देव साहब को कहा कि आपको यहाँ सभी पहचानते है तो हो सके तो आप पीछे वाली सीट पर बैठें, .. लेकिन उन्होंने मना कर दिया और बोले मुझे आगे ड्राइवर के साथ बैठना अच्छा लगता है और वो आगे की सीट पैर ही बैठे।

मंदिर पहुँचने पर पंडित जी ने पूजा आरम्भ की और देव साहब से भगवान शिव जी का दूध और जल से अभिषेक करवाया. लेकिन पूजा के बाद बाहर आने पर लोगो ने अपने स्टार को पहचान ही लिया बस फिर क्या था हमारा वहाँ से निकलना बहुत मुश्किल ही हो गया. करीब ४० से ५० लोग हमारी गाड़ी के पीछे भागने लगे। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी करीब होने के कारण भी कई छात्रों ने देव साहब को पहचान लिया और स्कूटर और साईकिल से हमारा पीछा करने लगे. बहुत मुश्किल से हम अपने सनेमा हॉल तक पहुँच पाए जहाँ “हरे रामा हरे कृष्णा ” फिल्म चल रही थी। उन्हें वहां देख कर न केवल सिनेमा स्टाफ बल्कि फिल्म देखने आये दर्शक भी चौंक गए . देव साहब बनारस में.. लोगों को विश्वास ही नहीं हो रहा था.

देव् साहब जितने खूबसूरत थे उतने ही दिल के साफ़ और हसमुख भी . वे बात बात पर हंसी मज़ाक किया करते थे। चूँकि देव साहब के आने की खबर पूरे बनारस में फ़ैल चुकी थी कोई परेशानी न हो इसलिए दोपहर खाना खाते ही हम एयरपोर्ट के लिए निकल पड़े. हालाकि फ्लाइट में पूरे ३ घण्टे बाकी थे।

वो दिसंबर का महीना था मेरी पत्नी भी मेरे साथ थी. उसे कुछ सर्दी महसूस हो रही थी. देव साहब ने सर्दी ज्यादा होने के कारण मेरी पत्नी को कहीं असुविधा न हो ये सोचकर उन्हें अपना कोट उतारकर दे दिया। जो आज तक मेरे पास रखा है. उनके साथ मेरा सफ़र एक सफर है जिस आज तक नहीं भुल सका हूँ.

प्रस्तुतिः रामकिशोर पारचा

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार