महोदय
ध्यान रहें पाकिस्तान की शत्रुता का आधार उसका धार्मिक उन्माद है और भारत विरोध में ही उसका अस्तित्व है। जिसके फलस्वरुप वह कभी भी हमको चैन से जीने नहीं देगा और कभी भी दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद ,अजहर मसूद आदि मुम्बई व पठानकोट आदि पर हुए हमलो के दोषियों को हमें नहीं सौंपेगा। हमारी सरकार कितनी ही बार अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर या सीधे पाक सरकार के समक्ष दंडवत करती रहें कोई प्रभाव नहीं हो सकता ? इतिहास गवाह है कि शान्ति प्रक्रिया में जब जब भारत ने पहल करी तब तब वहां से प्रतिक्रिया में आतंकवादी हमले ही हुए। इसी संदर्भ में हमें इस मृगमरीचिका से बाहर निकलना होगा कि अमरीका व चीन, पाकिस्तान के प्रति अपनी उदारता व मधुर संबंधो को झुठला कर हमारे प्रति कभी सकारात्मक होंगे ?
प्रायः राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सहयोग से देश प्रगति करें तो इससे उत्तम कोई राजनीति नहीं है।लेकिन जब राजनीति की विवशता के कारण आप अपने सिद्धान्तों से ही समझौता करके शत्रु को भी मित्र बना लें तो क्या संभावना होगी ? यह भी सत्य है कि यदि मित्रता एक तरफा ही रहे तो “मुंह में राम बगल में छुरी” वाली कहावत ही न होती।बड़े बड़े राजनीतिज्ञ इसे कुटनीतिज्ञता भी कहते है।परंतु जिस नींव पर खड़े होकर दम्भ भर रहें तो उसको नकार कर स्थायित्व नहीं पा सकते।
राष्ट्रवादियों की भावनाओं का एकजुट दोहन करके सत्ता पायी जा सकती है पर उनको भ्रमित करके उनके विश्वास को तोडना अपने आधार को नष्ट करने के सामान है। कब तक विश्वासघात के कारण आत्मघात की ओर बढ़ते रहोंगे ? कब तक राजनीति व कुटनीतियों के जंजाल में फंस कर धोखा खाते रहोंगे ? अतः कभी तो स्वस्थ राजनीति करके राष्ट्रनीति अपनाओं । कोई तो निर्णय आपको लेना ही होगा।जिन राष्ट्रवादियों के बल पर मोदी जी ने केंद्र में सरकार बनाई थी अगर वे इस राजनैतिक दुर्बलता से हताश हो गए तो अन्धकार को दूर करने के लिए ‘दीया’ कौन जलायेगा ? आज सर्वत्र मई 2014 की आक्रामक भूमिका वाले मोदी जी चाहिए जिनके अंदर वह निष्ठा व साहस था जिसके बल पर उन्होंने जापान व अमरीका आदि देशो के राष्ट्राध्यक्षों को गीता भेंट करके भारतीय धर्म की महानता का परिचय कराया था।यही नहीं उनके द्वारा “योग” को वैश्विक धरातल पर दिया गया प्रोत्साहन अतुलनीय था।
लेकिन समय बड़ा बलवान होता है और राजनीति गिरगिट की तरह रंग बदलने को विवश कर देती है। आज हम यह सोचने को विवश है कि मोदी जी ने “गीता” ग्रन्थ के स्थान पर सन् 629 में केरल में भारत की पहली मस्जिद “चेरमन जुमा मस्जिद” जिसे अरब के व्यापारियों ने बनवाया था (और जिससे मुग़ल दासता व हमारे धर्म एवं संस्कृति के विनाश का युग आरंभ हुआ था ) का प्रतिरुप (Replica) सऊदी अरब के सुलतान को भेंट करके क्या सन्देश देना चाहा है ? यह तो भविष्य ही बतायेगा क्योंकि भारत के साथ साथ वैश्विक जिहाद का सर्वोच्च स्रोत तो आज भी सऊदी अरब ही है।
सधन्यवाद
भवदीय
विनोद कुमार सर्वोदय
गाज़ियाबाद