तारीख: 14 अप्रैल – बाबा साहब अंबेडकर की 125वीं जन्म तिथि; स्थान: परंपरागत तरीकों से जल संकट के समाधान की पैरोकारी के लिए विश्व विख्यात जलपुरुष राजेन्द्र सिंह की अध्यक्षता वाले संगठन तरुण भारत संघ का गांव भीकमपुरा स्थित तरुण आश्रम; मौका: 130 संगठनों के जमावङे का अंतिम दिन; जारी हुई एक अपील।
जारी जल अपील
बाबा साहब अंबेडकर की 125वीं जयंती पर 130 संगठनों की ओर से जलपुरुष राजेन्द्र सिंह के अलवर ठिकाने से एक जल अपील जारी की गई थी।
130 संगठनों की ओर से अपील करते हुए जलपुरुष राजेन्द्र सिंह और एकता परिषद के संस्थापक पी. व्ही, राजगोपाल ने श्रम आधारित जल संचयन संकल्प सत्याग्रह के लिए एकजुटता का आहृान किया था। अपील में कहा गया था कि बारिश आने से पहले वर्षा जल संचयन के निजी ढांचों को खुद दुरुस्त करें। उपयोग का अनुशासन बनायें। पंचायत, स्थानीय निकाय, शासन, प्रशासन को सूचित करें कि उनके अधिकार वाले ढांचों की दुरुस्ती के काम में लगे। सुनिश्चित करें कि सभी सरकारी इमारतों, शैक्षणिक व औद्योगिक संस्थानों में छत पर बरसा पानी एकत्र करने का ढंाचा बन जाये। यदि 30 अप्रैल, 2016 तक वे ऐसा नहीं करते हैं, तो स्थानीय समुदाय एक मई, 2016 को ऐसे ढांचों को अपने अधिकार में ले और उन्हे दुरुस्त करे। श्रम सहयोग व निगरानी के काम में युवा विशेष जिम्मेदारी निभायें। यदि शासन, प्रशासन या स्थानीय निकाय न स्वयं ऐसा करें और न समुदाय को करने दे, तो पानी के प्रति सभी का दायित्व व अधिकार सुनिश्चित करने के लिए भिन्न समुदाय व संगठन पांच मई, 2016 को दिल्ली कूच कर ’जल सुरक्षा अधिनियम’ की मांग करे। अपील मंे कहा गया कि अपील करने वाले 130 संगठनों ने स्वयं अपने लिए ऐसा करना तय किया है।
प्राप्त प्रतिक्रियायें
इस अपील के जारी होते ही खासकर शासन व सामाजिक संगठनों की ओर से प्रतिक्रियायें आईं, वे सचमुच गौर फरमाने लायक है:
1. बाबा साहब के नाम पर आयेगी जल संकग्रस्त दलित गांवों के लिए केन्द्रीय जल योजना
सबसे पहली प्रतिक्रिया 17 अप्रैल को केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती की ओर से आई। बाबा साहब पर आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होने कहा कि पानी की कम उपलब्धता या अपर्याप्त जल भंडारण ढांचों की कमी के कारण जल संकट का सामना कर रहे दलित बहुत गांवों के लिए वह बाबा साहब अंबेडकर के नाम से एक योजना शुरु करने पर विचार कर रही हैं।
2. 15 मई तक जल विधेयक प्रारूप तैयार करने का ऐलान
दूसरी अह्म प्रतिक्रिया भी 17 अप्रैल को ही आई। रविवार का दिन होने के बावजूद केन्द्रीय जल संसाधन सचिव ने बयान दिया कि पानी के गंभीर संकट को ध्यान में रखते हुए सरकार जल्द ही एक ऐसा आदर्श विधेयक ला सकती है, जो जल जैसे बेशकीमती संसाधन का भंडारण सुनिश्चित करके इसके प्रभावी प्रबंधन हेतु राज्यों के लिए दिशा-निर्देश तय करेगा। उन्होने जानकारी दी कि यह काम 15 मई तक पूरा कर लिया जायेगा। उन्होने जनता के बीच व्याप्त मिथक को तोङने की जरूरत बताई कि देश में पानी के प्रचुर भंडार हैं और ये मुफ्त उपलब्ध हैं। उन्होने लातूर का जिक्र किया और कहा कि हमें कम से कम अगले दस वर्ष तक जल प्रबंधन को लेकर व्यापक सोच की जरूरत है। वाष्पीकरण रोकना होगा; वर्षा जल भंडारण बढ़ाना होगा।
3. विचार करेगी दिल्ली सरकार
तीसरी प्रतिक्रिया, 19 अप्रैल को दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री कार्यालय से मेरी मेल पर आई। अपील को आवश्यक कार्रवाई के लिए जल संसाधन मंत्री को भेजा जा रहा है।
4. प्रधानमंत्री ने की अगले महीनों में मनरेगा के तहत् जल संरक्षण व भंडारण का व्यापक करने की घोषणा
चैथी प्रतिक्रिया स्वयं प्रधानमंत्री कार्यालय से आई। 19 अप्रैल को प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का एक बयान जारी किया -’’अगले कुछ महीनों में मनरेगा के तहत् जल संरक्षण एवम् भंडारण के लिए बङे पैमाने पर कोशिश शुरु की जायेगी।’’
5. प्रधानमंत्री ने की युवा संगठनों से जल संरक्षण में योगदान की अपील
जारी बयान में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने क्रमशः एन. सी.सी., राष्ट्रीय सेवा योजना, भारत स्काउट एंड गाइड्स और नेहरु युवा केन्द्र संगठन से जुङे युवाओं से स्वयं अपील की कि वे जल संरक्षण व वर्षा जल भंडारण में योगदान दें। उन्होने ’मन की बात’ में भी पानी की बात पर ज्यादा जोर दिया।
6. एक सप्ताह के भीतर मनरेगा मजदूरी भुगतान के लिए 90,000 करोङ होंगे जारी
कई जिलाधिकारियों ने सूचना दी कि भुगतान नहीं होने के कारण मनरेगा के काम के लिए मजदूर नहीं मिल रहे। पांचवी प्रतिक्रिया के रूप में प्राप्त एक खबर के अनुसार राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि इस मनरेगा में होने वाले काम की मजदूरी एक सप्ताह के भीतर हो जाये। भुगतान में विलम्ब रोकने के लिए केन्द्र सरकार ने इसके लिए 90,000 करोङ की धनराशि जल्द जारी करेगी।
7. महाराष्ट्र में 200 फीट से गहरे बोरवैलों पर पाबंदी
छठी प्रतिक्रिया के रूप में महाराष्ट्र शासन ने 200 फीट से अधिक गहरे बोरवैलों पर पाबंदी लगा दी।
8. उत्तर प्रदेश सरकार बुंदलेखण्ड में बनायेगी 2000 खेत-तालाब
सातवीं प्रतिक्रिया की रूप में 20 अप्रैल को अखिलेश सरकार का विज्ञापन दिखा। अखबारों को जारी विज्ञापन में बुंदेलखण्ड में 2000 खेत-तालाबों को बनाने की घोषणा छपी; महोबा में 500 और झांसी, जालौन, ललितपुर, चित्रकूट और हमीरपुर में 250-250 खेत-तालाब। जाहिर है कि खेत-तालाब किसानों की निजी भूमि पर ही निर्मित किए जायेंगे। विज्ञापन में घोषणा का लाभ लेने के लिए पंजीकरण तथा खुदाई खर्च पर 50 प्रतिशत अधिकतम 52,500 रुपये तक का भुगतान डीबीटी द्वारा सीधे किसान के खाते में भेजने की भी सूचना छपी।
9. मीडिया में आयां पानी के लेन-देन में असंतुलन का नजरिया
आठवीं प्रतिक्रिया का मीडिया की ओर आना लगातार जारी है। तमाम अखबारों में इस आशय के आकलनों को आना जारी है कि खासकर महाराष्ट्र में मची पानी को लेकर चीख-पुकार का कारण जलवायु परिवर्तन से ज्यादा, स्थानीय स्तर पर घटा वर्षा जल संचयन और व्यावसायिक फसलों व उद्योगों के लिए बढ़ी जल निकासी है।
10. मुख्य अपर महानिदेशक (एस. आई. टी) मुख्यालय, उ. प्र. भी हुंए जल संरक्षण में सक्रिय
नौंवी प्रतिक्रिया एक अनापेक्षित ठिकाने से आई। उत्तर प्रदेश के मुख्यालय अपर महानिदेशक, विशेष अनुसंधान दल(स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम) लखनऊ से अपर महानिदेशक श्री महेन्द्र मोदी ने सूचना दी कि जल संरक्षण प्रशिक्षण हेतु 20-21 अप्रैल को उनके मार्गदर्शन में झांसी शहर में राष्ट्रीय जल संरक्षण महाकुंभ होगा। श्री मोदी ने तालाबी, मेङबंदी, वर्षा जल टंकी आदि के जरिए वर्षा जल संरक्षण हेतु बुंदेलखण्ड के झांसी जिले के गांव रक्शा, अम्बाबाई, कंचनपुरा, खैरा, बाजना, रुन्द करारी, चन्द्रा गोपालपुरा, बनगुआ और सिमराहा आदि गांवों को गोद लेने की जानकारी दी। उन्हे बताया कि उक्त गांवों के अतिरिक्त उन्होने उत्तर प्रदेश के जिला लखनऊ और अमेठी के एक-एक गांव तथा झारखण्ड के दो गांवों का चयन किया है।
11. सामुदायिक जवाबदेही और सक्रियता के समाचार बढ़े
दसवीं और आगे की गिनती वाली प्रतिक्रिया के रूप में संगठनों और समुदायों द्वारा वर्षा जल संचयन ढांचों की दुरुस्ती की तैयारी के समाचार हैं। बुंदेलखण्ड के जिला छतरपुर से श्री भगवान सिंह परमार द्वारा भेजी जानकारी के अनुसार, जल बिरादरी ने स्थानीय प्रशासन व जनप्रतिनिधियों को अपील के संबंध में न सिर्फ ज्ञापन सौंपा, बल्कि 25 अप्रैल से श्रमदान शुरु कर 100 एकङ वर्ग क्षेत्रफल में फैले खौंप तालाब की दुरुस्ती अपने हाथ में लेने का ऐलान किया। इसके अलावा उत्तराखण्ड, चंपारण, भुवनेश्वर, महोबा,
नकारात्मक पहलू
मीन-मेख निकालने की दृष्टि से जहां अपील पर सवाल संभव है, वहीं इस सक्रियता पर भी। सवाल पूछने वाले पूछ सकते हैं कि कहीं यह अपील ओर एकजुटता, पानी से ज्यादा गैर सरकारी संगठनों के अस्तित्व की रक्षा के लिए तो नहीं ? ’हिडन एजेंडा’ तलाशने वाले इस एकजुटता में राजनीतिक संभावना तलाशने में लग गये हैं। अपील पर आई केन्द्र सरकार की प्रतिक्रिया व सक्रियता को लेकर वे कह रहे हैं कि यह संगठनों को आंदोलन करने से रोकने के लिए की गई कोरी बयानबाजी है।
सकारात्मक पहलू
ये कोरी बयानबाजी हो, तो भी क्या यह एक अवसर नहीं देती कि हम इन्ही बयानों को पकङकर बारिश से पहले वर्षा जल भंडारण ढांचों को दुरुस्त कर दें। मनरेगा के अलावा, केन्द्र सरकार द्वारा इस वित्त वर्ष के बजट में प्रत्येक ग्राम पंचायत को न्यूनतम 80 लाख और नगर निकाय को न्यूनतम 25 करोङ रुपये का घोषित आवंटन गांवों और नगरों के पास है। इस आंवटन की खास बात यह है कि इसके खर्च का मद व योजना स्वयं ग्राम पंचायत/नगर निकाय को तय करने हैं। प्रधानमंत्री जी के बयान के बाद एन. सी. सी. और एन. एस. एस आदि युवा इकाइयों के पास मौका है कि वर्षा जल संचयन ढांचों की दुरुस्ती के लिए श्रम आधारित कैम्प लगायें। नेहरु युवा केन्द्र संगठन के युवा क्लब अगले दो महीने इसी काम हेतु समर्पित कर दंे।
केन्द्रीय जल संसाधन सचिव के बयान के बाद पानी पर काम कर रहे संगठनांें के पास मौका है कि वे जल विधेयक का प्रारुप बनाने में न सिर्फ अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें, बल्कि सरकारों को ऐसा करने के लिए विवश भी करें। वे ऐसा प्रारूप हेतु दबाव बनायें, जो प्रकृति तथा दलित-वंचित व जरूरतमंद समुदाय हितैषी तो हो; साथ पानी के लेन-देन का संतुलन बनाने में स्थानीय समुदाय, शासन तथा प्रशासन..सभी की जवाबदेही भी सुनिश्चित करता हो।
बयानों को ज़मीन पर उतार लाने का वक्त
यह वक्त न किसी की ओर ताकने का है और न यह भूलने का कि भारत का राष्ट्रीय वार्षिक वर्षा औसत 40 प्रतिशत तक घट गया है। वितरण असमान हुआ है, सो अलग। अतः वर्षा जल संचयन और उपयोग में अनुशासन का कोई विकल्प नहीं है। जाहिर है कि संकल्प और सकारात्मकता जरूरी है। ऐसे में न यह अपील नजरअंदाज करने वाली है और न ये प्रतिक्रयायें। आइये, इन्हें अपने अंदाज में ज़मीन पर उतार लायें।
अरुण तिवारी
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