Monday, November 25, 2024
spot_img
Homeआपकी बातएक बहस, समवर्ती सूची में पानी

एक बहस, समवर्ती सूची में पानी

प्यास किसी की प्रतीक्षा नहीं करती। अपने पानी के इंतजाम के लिए हमें भी किसी की प्रतीक्षा नहीं करनी है। हमें अपनी जरूरत के पानी का इंतजाम खुद करना है। देवउठनी ग्यारस का अबूझ सावा आये, तो नये जोहङ, कुण्ड और बावङियां बनाने का मुहूर्त करना है। आखा तीज का अबूझ सावा आये, तो समस्त पुरानी जल संरचनाओं की गाद निकालनी है; पाल और मेङबंदियां दुरुस्त करनी हैं, ताकि बारिश आये, तो पानी का कोई कटोरा खाली न रहे।

कर्तव्य स्पष्ट : अधिकार अस्पष्ट

जल नीति और नेताओं के वादे ने फिलहाल इस एहसास पर धूल चाहे जो डाल दी हो, किंतु भारत के गांव-समाज को अपना यह दायित्व हमेशा से स्पष्ट था। जब तक हमारे शहरों में पानी की पाइप लाइन नहीं पहुंची थी, तब तक यह दायित्वपूर्ति शहरी भारतीय समुदाय को भी स्पष्ट थी, किंतु पानी के अधिकार को लेकर अस्पष्टता हमेशा बनी रही। याद कीजिए कि यह अस्पष्टता, प्रश्न करने वाले यक्ष और जवाब देने वाले पाण्डु पुत्रों के बीच हुई बहस का भी कारण बनी थी। सवाल आज भी कायम हैं कि कौन सा पानी किसका है ? बारिश की बूंदों पर किसका हक है ? नदी-समुद्र का पानी किसका है ? तल, वितल, सुतल व पाताल का पानी किसका है ? सरकार, पानी की मालकिन है या सिर्फ ट्रस्टी ? यदि ट्रस्टी, सौंपी गई संपत्ति का ठीक से देखभाल न करे, तो क्या हमें हक है कि हम ट्रस्टी बदल दें ?

स्थायी समिति की सिफारिश

पानी की हकदारी को लेकर मौजूं इन सवालों में जल संसाधन संबंधी संसदीय स्थायी समिति की ताजा सिफारिश ने एक नई बहस जोङ दी है। बीती तीन मई को सामने आई रिपोर्ट ने पानी को समवर्ती सूची में शामिल करने की सिफरिश की है। स्थायी समिति की राय है कि यदि पानी पर राज्यों के बदले, केन्द्र का अधिकार हो, तो बाढ़-सुखाङ जैसी स्थितियों से बेहतर ढंग से निपटना संभव होगा। क्या वाकई यह होगा ?

उठते प्रश्न

बाढ.-सुखाङ से निपटने में राज्य क्या वाकई बाधक हैं ? पानी के प्रबंधन का विकेन्द्रित होना अच्छा है या केन्द्रित होना ? समवर्ती सूची में आने से पानी पर एकाधिकार, तानाशाही बढे़गी या घटेगी ? बाजार का रास्ता आसान हो जायेगा या कठिन ? स्थायी समिति की सिफारिश से उठे इस नई बहस में जाने के लिए जरूरी है कि हम पहले समझ लें कि पानी की वर्तमान संवैधानिक स्थिति क्या है और पानी को समवर्ती सूची में लाने का मतलब क्या है ?

वर्तमान संवैधानिक स्थिति

वर्तमान संवैधानिक स्थिति के अनुसार ज़मीन के नीचे का पानी उसका है, जिसकी ज़मीन है। सतही जल के मामले में अलग-अलग राज्यों में थोङी भिन्नता जरूर है, किंतु सामान्य नियम है कि निजी भूमि पर बनी जल संरचना का मालिक, निजी भूमिधर होता है। ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्रफल में आने वाली एक तय रकबे की सार्वजनिक जल संरचना के प्रबंधन व उपयोग तय करने का अधिकार ग्राम पंचायत का होता है। यह अधिकतम रकबा सीमा भिन्न राज्यों में भिन्न है। भौगोलिक क्षेत्रफल के हिसाब से यही अधिकार क्रमशः जिला पंचायतों, नगर निगम/नगर पालिकाओं और राज्य सरकारों को प्राप्त है।

इस तरह आज की संवैधानिक स्थिति में पानी, राज्य का विषय है। इसका एक मतलब यह है कि केन्द्र सरकार, पानी को लेकर राज्यों को मार्गदर्शी निर्देश जारी कर सकती है; पानी को लेकर केन्द्रीय जल नीति व केन्द्रीय जल कानून बना सकती है, लेकिन उसे जैसे का तैसा मानने के लिए राज्य सरकारों को बाध्य नहीं कर सकती। राज्य अपनी स्थानीय परिस्थितियों और जरूरतों के मुताबिक बदलाव करने के लिए संवैधानिक रूप से स्वतंत्र हैं। लेकिन राज्य का विषय होने का मतलब यह कतई नहीं है कि पानी के मामले में केन्द्र का इसमें कोई दखल नहीं है। केन्द्र को राज्यों के अधिकार में दखल देने का अधिकार है, किंतु सिर्फ और सिर्फ तभी कि जब राज्यों के बीच बहने वाले कोई जल विवाद उत्पन्न हो जाये। इस अधिकार का उपयोग करते हुए ही तो एक समय केन्द्र सरकार द्वारा जल रोकथाम एवम् नियंत्रण कानून-1974 की धारा 58 के तहत् केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केन्द्रीय भूजल बोर्ड और केन्द्रीय जल आयोग का गठन किया गया था। धारा 61 केन्द्र को केन्द्रीय भूजल बोर्ड आदि के पुनर्गठन का अधिकार देती है और धारा 63 जल सबंधी ऐसे केन्द्रीय बोर्डों के लिए नियम-कायदे बनाने का अधिकार केन्द्र के पास सुरक्षित करती है।

समवर्ती सूची में आने के बाद बदलाव

पानी के समवर्ती सूची में आने से बदलाव यह होगा कि केन्द्र, पानी संबंधी जो भी कानून बनायेगा, उन्हे मानना राज्य सरकारों की बाध्यता होगी। केन्द्रीय जल नीति हो या जल कानून, वे पूरे देश में एक समान लागू होंगे। पानी के समवर्ती सूची में आने के बाद केन्द्र द्वारा बनाये जल कानून के समक्ष, राज्यों के संबंधित कानून स्वतः निष्प्रभावी हो जायेंगे। जल बंटवारा विवाद में केन्द्र का निर्णय अंतिम होगा। नदी जोङ परियोजना के संबंध में अपनी आपत्ति को लेकर अङ जाने को अधिकार समाप्त हो जायेगा। केन्द्र सरकार, नदी जोङ परियोजना को बेरोक-टोक पूरा कर सकेगी। समिति के पास पानी समवर्ती सूची में लाने के पक्ष में कुलजमा तर्क यही हैं। यह भी तर्क भी इसलिए हैं कि केन्द्र सरकार संभवतः नदी जोङ परियोजना को भारत की बाढ़-सुखाङ की सभी समस्याओं को एकमेव हल मानती है और समवर्ती सूची के रास्ते इस हल को अंजाम तक पहुंचाना चाहती है। क्या यह सचमुच एकमेव व सर्वश्रेष्ठ हल है ? पानी को समवर्ती सूची में कितना जायज है, कितना नाजायज ?? जल प्राधिकार के साथ-साथ भारत के जल प्रबंधन की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इस पर व्यापक बहस जरूरी है।
अरुण तिवारी
146, सुंदर ब्लॉक, शकरपुर, दिल्ली-110092
amethiarun@gmail.com
09868793799

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार