Saturday, November 23, 2024
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वीर संघवी ने लिखा, क्यों फ्लॉप हैं राहुल गाँधी!

कांग्रेस में राहुल गांधी की भविष्य की भूमिका को लेकर हो रही चर्चा के बीच एक नई किताब में कहा गया है कि इस युवा नेता ने ‘उभरने में बहुत लंबा वक्त’ ले लिया। किताब में कांग्रेस के 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान को ज्ञात स्मृति में ‘सबसे खराब’ बताया गया है। वरिष्ठ पत्रकार वीर संघवी की भारत के हाल के राजनीतिक इतिहास पर आने वाली किताब ‘मेंडेट: विल ऑफ द पीपुल’ में 2004 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद ठुकराने और बड़े मुद्दों पर राहुल के ढुलमुल रवैये के कारण भाजपा को सत्ता के केंद्र में आने का रास्ता मिलने के बारे में लिखा गया है।
 
किताब में कहा गया है कि राहुल ने ‘उभरने में लंबा वक्त लगा दिया और जब उन्होंने ऐसा किया, तब यह स्पष्ट नहीं था कि वह मनमोहन सिंह की सरकार के साथ हैं या उसके खिलाफ।’ उन्होंने लिखा है कि ‘राहुल का प्रेस से दूर रहना और पहले इंटरव्यू में महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपना रुख बताने से बचना, एक तरह से राजनीतिक आत्महत्या करने जैसा था।’ इसके बाद पढ़े लिखे भारतीयों ने उनकी ओर देखना ही बंद कर दिया। ‘रही सही कसर, डीएवीपी शैली के खराब विज्ञापन अभियान अथवा दिशाहीन प्रकृति वाले कांग्रेस के अभियान ने पूरी कर दी।’
 
सोनिया का जिक्र करते हुए सांघ्वी ने लिखा है कि उनके लिए तार्किक यह होता कि वह मनमोहन सिंह को यूपीए दो के दौरान बीच में ही हटाने की कांग्रेस की मांग मान लेतीं। शायद वह मनमोहन के खुद इस्तीफा देने का इंतजार कर रही थीं। लेकिन वही मनमोहन, जिन्होंने कभी कहा था कि परमाणु करार पर पार्टी ने बहुमत से उनका साथ नहीं दिया तो वह पद छोड़ देंगे, कुर्सी से चिपके रहे जबकि उनकी लोकप्रियता गिरती जा रही थी। उन्होंने इस्तीफा देने पर विचार तक करने से इनकार कर दिया।
 
पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को हर उस कसौटी पर परखा गया जो उन्होंने अपने लिए 2009 में निर्धारित की थी। वह कांग्रेस के लिए एक ‘मुसीबत’ बन गए थे। शानदार पहले कार्यकाल के बाद मनमोहन भारतीय इतिहास के सबसे खराब पीएम साबित हुए। मनमोहन ने कहा था कि इतिहास उनके प्रति दयालु होगा। लेकिन सच कहूं, मुझे इस पर संदेह है। वह भारत की साख गिराने वाले व्यक्ति के तौर पर याद किए जाएंगे।
 
‘रहस्य’ की तरह हैं सोनिया
‘कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ‘रहस्य’ की तरह हैं। वह कांग्रेस को बचाने के लिए बेहद निजी माहौल से निकलकर राजनीति में आईं। कांग्रेस का नेतृत्व करते हुए 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की। लेकिन जब कांग्रेस में स्थितियां बिगड़ रही थीं तब वह कहां थीं? उनकी राजनीतिक सूझबूझ को क्या हो गया था? क्या उन्हें यह नहीं दिख रहा था कि कांग्रेस विनाश की ओर बढ़ रही है। कोई भी इन सवालों का उत्तर नहीं जानता है।’

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