देश में अनेक डायरेक्टरी को प्रकाशित कर लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा चुके भारत पब्लिकेशन ने हाल ही में राजेश विक्रांत द्वारा लिखित व्यंग्य संग्रह “बतरस” को प्रकाशित किया है। राजेश विक्रांत एक ऐसा चर्चित नाम है जो साहित्य व पत्रकारिता में समान प्रभुत्व रखते हैं। अपने यशस्वी जीवन की स्वर्ण जयंती व सक्रिय लेखन की रजत जयंती वर्ष में लगभग 12000 से अधिक लेख और 500 से अधिक व्यंग्य लेख लिखने वाले राजेश विक्रांत की यह पहली पुस्तक है जिसमें उनके चुनिंदा 50 व्यंग्य लेखों को शामिल किया गया है।
लेखक की सबसे बड़ी खूबी यह है कि उन्होंने जिन विषयों पर भी अपने क़लम उठाए हैं वे हमारे आस-पास के हैं और हमें पढ़ने के बाद सोचने पर मजबूर कर देते हैं। पिछले लगभग 17-18 वर्षों में मैंने राजेश विक्रांत को काफी करीब से देखा है। जब भी उनसे कहीं मिलना हुआ उनके हाथ में किसी सुप्रसिद्ध लेखक की पुस्तक जरूर मिलती हैं। इसका तात्पर्य यह है कि वे लेखन के साथ-साथ अच्छे लेखकों को को पढ़ने में भी काफी रूची रखते हैं। वैसे भी कुछ लिखने के लिए पढ़ना आवश्यक है और निःसंदेह राजेश विक्रांत इस नियम का पालन करते रहे हैं। यही कारण है कि उनके लगातार लेखन के बावजूद उनके लेखों में कहीं भी दोहराव नजर नहीं आता है। वे अपने लक्ष्य को सामने रखकर सहजता से अपनी कलम चलाते हैं और बड़ी बेबाकी से अपनी बात कह जाते हैं।
मेरे बचपन के दिन, मेरा गांव मेरा देश, जूते की आत्म कथा, अदालत और वकील, आधुनिक कौए, सरकारी अस्पताल, पुरस्कार वापसी का अनुष्ठान, आदि उनके ऐसे व्यंग्य हैं जिसे बार-बार पढ़ने का मन करता है। इन व्यंग्य लेखों को पढ़ने के बाद मन में स्वतः हास्य उत्पन्न होता है और बतरस में हर पेज पर जो बातों का रस भरा हुआ है वह पुस्तक के शीर्षक को चरितार्थ करता प्रतीत होता है। सैयद नुमान ने इसी के अनुरूप इसका कवर भी बनाया है। आशा है भविष्य में इस पुस्तक के कई संस्करणों के साथ-साथ उनके शेष व्यंग्य लेखों की पुस्तकें भी पढ़ने को मिलेंगी।
पुस्तक : बतरस लेखक : राजेश विक्रांत
प्रकाशक : भारत पब्लिकेशन, मुंबई