प्राचीन भारत की समृद्ध अर्थव्यवस्था और तत्कालीन सामाजिक ताने-बाने पर आधारित पुस्तक ‘प्राचीन भारतीय अर्थ-चिंतन एक झलक’ किताब का लोकार्पण 28 जून को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में किया गया। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री स्वर्गीय गोविन्द राम साहनी द्वारा लिखित इस किताब का विमोचन पूर्व केंद्रीय मंत्री व भाजपा सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने किया।
प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 224 पेज की इस किताब की कीमत 400 रुपए है।
किताब में संघ के सरसंघचालक और वित्त मंत्री अरुण जेटली के संदेश वाक्य भी प्रकाशित किए गए हैं। डॉ. गोविंद राम साहनी का जन्म रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) जिले के गांव नाड़ा में 15 जुलाई, 1935 को हुआ। माता-पिता के संस्कारों के कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अन्य राष्ट्रवादी संगठनों के साथ जुड़ने का जो योग बना, उसी पर वे आजीवन चलते रहे।
शिक्षा की ललक साहनी को इलाहाबाद विश्वविद्यालय ले गई, जहां प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. जे.के. मेहता के व्यक्तित्व और शिक्षण ने उन्हें एक चिंतक बना दिया। एम.ए. (अर्थशास्त्र) के उपरांत समाज सेवा के दौरान देश और ग्रामीण परिवेश को निकट से देखा। पीएचडी का विषय ‘उत्तर प्रदेशीय विद्युत् संस्थानों में श्रम स्थितियों का एक अध्ययन’ को चुना।
शिक्षण संस्थानों में 35 वर्षों तक अध्यापन के बाद 1995 में पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के बाद भी जीवन यात्रा की इतिश्री तक विभिन्न संगठनों में सेवाकार्य करते रहे। शिक्षण के दौरान अर्थशास्त्र और अन्य सामाजिक विषयों पर कई पुस्तकें प्रकाशित हुईं। साहनी की लेखनी पूवर्जों द्वारा अर्थशास्त्र पर किए चिंतन को समाज तक लाने को आतुर थी व इसी का परिणाम यह ग्रंथ है, जिसे उन्होंने कैंसर से जूझने के बाद भी पूरा किया।
डॉ. गोविंद साहनी के कनिष्ठ पुत्र और मशहूर ज्योतिषविद् व वास्तुशास्त्री डॉ. ज्योति वर्धन साहनी ने इस अवसर पर अपने पिता को याद करते हुए कहा कि वे एख विद्धान समाजसेवी और धर्मपरायण व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी किताब के जरिए अर्थ को धर्म से जोड़कर उसका विस्तृत रूप में वर्णन किया और बताया कि अर्थ का अनर्थ नहीं होना चाहिए। अर्थ का सृष्टि के संचालन में क्या महत्व है, इसे भी नवीन तरीके से परिभाषित किया।