भारत में आधुनिक टेलिविजन पत्रकारिता के जनक और ‘आजतक’ के संस्थापक संपादक रहे स्वर्गीय सुरेन्द्र प्रताप सिंह (एसपी सिंह) की याद में दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 26 जून को ‘मीडिया खबर कॉन्क्लेव’ और एसपी सिंह स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस दौरान ‘हैशटैग की पत्रकारिता और खबरों की बदलती दुनिया’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन भी किया गया।
‘हैशटैग की पत्रकारिता और खबरों की बदलती दुनिया’ विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा, ‘ हिंदी पत्रकारिता में हैशटैग का इस्तेमाल कम होता है। कई हिंदी पत्रकारों को नहीं मालूम कि ये # क्या है। हिंदी पत्रकार ट्विटर की अपेक्षा फेसबुक का ज्यादा प्रयोग करते हैं। उन्होंने कहा जमीन की खबरों और लोंगो का मन जानने का एक नया और जबरदस्त माध्यम है हैशटैग। इसके जरिए ज्यादा व्यापक और भागीदारी वाली खबरों को, फिर चाहे वह किसी भी मुद्दे पर हो, हम लोगों को जोड़ सकते हैं जो हम टेलिविजन और अखबार में नहीं कर सकते। ट्विटर और फेसबुक आज इतनी बड़ी ताकत बन गए हैं कि युवा लोगों का समय और मन दोनों ही उसने अपने वश में कर लिया है।’ उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के आने से हमें कई नए विचारक-लेखक मिले हैं। इसके जरिए बात रखने का एक ऐसा औजार मिला है, जिसके चलते बड़े लोगों को जवाबदेह होना पड़ रहा है। सोशल मीडिया तमाम सेलिब्रिटीज पर दवाब भी बनाता रहता है।
सोशल मीडिया के संदर्भ में उन्होंने कहा कि हैशटैग की बड़ी दिक्कत है यह कि वह व्यक्ति की वस्तुनिष्ठता को प्रतिबिंबित नहीं करता, लेकिन यदि पत्रकारिता में सोशल मीडिया का इस्तेमाल यदि सचेत होकर किया जाए तो ये उपयोगी सिद्ध होगा।
क्या आज सोशल मीडिया न्यूज रूम पर हावी हो रहा है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर कई तरह के कंटेंट होते हैं, जिनमें चुटुकलें भी होते हैं क्या ये सब हमारी सुर्खिया बनते हैं, नहीं। आज जो न्यूज रूम सुर्खियां हैशटैग के माध्यम से बना रहे हैं वो एक अलग जरिया है। इसका मतलब ये नहीं संपादक की भूमिका खत्म हो गई। संपादक और पत्रकारों के विवेक का इस्तेमाल आज भी हो रहा है।
साथ ही उन्होंने कहा कि जहां आज अंग्रेजी के अधिकतर चैनल प्राइम टाइम के समय बहस कराते हैं, तो हिंदी के कुछ चेनलों को छोड़़कर कई उस समय सौ खबरें, बीस मिनट में बीस खबरें जैसे शो चलाते हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी और अंग्रेजी मीडिया में काफी फर्क है चाहे वे विषयों के चयन का हो या शब्द चयन का।
हिंदी चैनलों ने खबर और मनोरंजन का घालमेल बनाया है। भारत में ही खबरों के बीच गाना चलाया जाता है। मानसून की खबर हो या भारत-पाक की, खबरों के पैकेज में फिल्मी गानेंं ठूंस दिए जाते हैं।
साभार- samachar4media.com/ से