2 जुलाई को नॉइज़ विद इन थिएटर लॉस ऐँजेलिस कैलिफोर्निया अमेरिका में आस्ट्रेलया के जाने माने अभिनय स्कूल ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स की प्रस्तुति गांधारी इन सर्च ऑफ लाईट का मंचन हुआ l यह एक ऐसी यादगार प्रस्तुति थी जिसे लोग बरसों तक नहीं भूल पाएँगे।
जब हम महाभारत के बारे सोचते हैं, तो हम भगवान कृष्ण की बात करते हैं, पांडव ,द्रौपदी ,कर्ण ,दुर्योधन ,शकुनी की बात करते हैं, परन्तु गांधारी के बारे में बात करना कहीं न कहीं हमसे छूट जाता है। इसी अछूते किरदार को अपने शब्दों में ढाल कर उसको नाटक का रूप दे कर अपने निर्देशन से सजाया श्री अरविंद गौड़ नेl अरविंद जी भारत में थिएटर की दुनिया के जाने माने निर्देशक हैंl इन्होंने गांधारी की पीड़ा को एक नई दृष्टि से देखा है। अरविंद जी के सपने गांधारी को मंच पर भारतीय आस्ट्रेलियन अदाकारा ऐश्वर्या निधि ने अपनी आवाज़ दे कर यथार्थ किया।
ये नाटक प्रारम्भ होता है जब एक महिला कुरुक्षेत्र युद्धभूमि में जाती हैं और अपने तमाम प्रियजनो के शवों पर टकराती हैl उसकी ममता चीखती है यहां पर नाटक फ्लैशबैक में चला जाता है और गांधारी दर्शकों को बताती है कि ये सब कहां से प्रारम्भ हुआ था और किस तरह से सौ पुत्रों की माता होने का वरदान उसके लिए अभिशाप बन गया हम ये तो जानते हैं कि गांधारी ने हस्तिनापुर के राजा पाण्डु के अंधे भाई धृतराष्ट्र से शादी होने के बाद आंखों पर पट्टी बांध ली थी I
यह नाटक महाभारत की कहानी गांधारी की ज़ुबानी है और गांधारी के दृष्टिकोण से लिखा गया हैI गांधारी की पीड़ा को समझते हुए अरविंद जी ने इस नाटक में दिखाया की आंखों पर पट्टी बांधना उसके साथ हुए अन्याय का एक खामोश प्रतिकार थाl ऐश्वर्या निधि ने गांधारी की उस त्याग को बहुत खूबी से अभिनीत जहां भीष्म पितामह ने गान्धार को चुनौती दी की यदि गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से न किया तो युद्ध होगा अपने प्रियजनों को मृत्यु से बचाने के लिए गांधारी ने अपनी खुशियों का त्याग कर दिया। 13 साल की गांधारी खुद अपनी खुशियों की लाश पर चली हैl यहां ऐश्वर्या जी अपने अभिनय से इस छटपटाहट को बखूबी दर्शया है। गांधारी की बात बेटे मानते नहीं भाई भी कोई इज्जत नहीं करता और वो चाह कर भी अन्याय को रोक नहीं पाती इन सभी पीड़ाओं को ऐश्वर्या निधि जी ने बहुत खूबसूरती से अपने अभिनय में ढाला है।
नाटक का अंतिम दृश्य बहुत ही मार्मिक है जहां गांधारी कृष्ण को सारी बरबादी का जिम्मेदार ठहराती है। इस दृश्य में ऐश्वर्या जी के अभिनय ने लोगों की आंखें नम कर दीं। ये नाटक एक कलाकार नाटक है। जिसमे सारी भूमिकाएं ऐश्वर्या निधि जी ही करती हैl एक पात्र से जब दूसरे पात्र में ऐश्वर्या जी ढलती है तो पता ही नहीं चलता की यही है जो अभी पहले वाला किरदार निभा रही थी। इस नाटक में किरदारों को प्रथक करने के लिए विभिन्न रंग के कपड़ों का प्रयोग किया गया है रंगों का चुनाव पात्र के चरित्र के अनुसार किया गया है जैसे दुर्योधन के में जलन की भावना थी दर्शाने के लिए हरे कपड़े का प्रयोग किया गया है, भीष्म पितामह के लिए बैंगनी रंग का प्रयोग किया गया जो कि रॉयल कलर है, शकुनी के लिए नीले रंग के कपड़े का प्रयोग किया गया है इत्यादि l
नाटक के अंत में दर्शकों ने ऐश्वर्या जी से नाटक के बारे में बहुत से प्रश्न किए। इस नाटक में ऐश्वर्या जी को कौन सा सीन पसंद है पूछे जाने पर उन्होंने कहा की आंखों पर पट्टी बंधे जाने वाला दृश्य उनको बहुत पसंद है। उन्होंने बताया कि इस नाटक को तैयार करने में 400 घंटे लगे थे।
भीष्म पितामह की गलती नहीं थी उन्होंने भी त्याग तो किया था- इस सवाल के जवाब में ऐश्वर्या जी ने कहा कि जो उन्होंने किया वो स्वयं अपने जीवन के साथ किया पर जो उन्होंने गांधारी के साथ किया वो गलत था. आपको अपने जीवन का निर्णय लेने का अधिकार होता है परन्तु दूसरे के लिए निर्णय लेने का अधिकार कदापि नहीं होता है। गांधारी छोटी थी उसने गुस्से में पट्टी बांधी थी वो शायद बाद में खोल भी देती परन्तु पितामह ने ये कह कर की पति देख नहीं सकता तो इसने भी आंखों पर पट्टी बांध ली पतिव्रता की उपाधि दे कर गांधारी को पट्टी के बंधन मे जीवनभर के लिए बांध दिया और गांधारी के लिए कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा।
यहाँ बताती चलूँ कि इस नाटक का मंचन पहली बार 2005 को सिडनी आस्ट्रेलिया में इन आई दी ए में हुआ था जिसको लोगों ने बहुत सराहा और ऐश्वर्या जी से इस नाटक को पुनः करने का अनुरोध भी किया गया,तब इन्होने और इनकी टीम ने मेलबर्न में साउथ एशिया डे पर इसका पुनः मंचन किया और यहां इन्हें साउथ एशियन ऑफ द इअर्स से सम्मानित किया गया।
इसके बाद इस नाटक के भारत और आस्ट्रेलिया में बहुत से शो हुएl अमेरिका में हॉलीवुड फ्रिंज फेस्टिवल में इस नाटक के तीन शो हुये ,फिर लोगों के अनुरोध पर पुनः इसका मंचन नॉइज़ विद इन थिएटर लॉस ऐँजेलिस में हुआl गांधारी नाटक को यहां करवाने का सारा श्रेय श्रीमती मोहना मनिहार को जाता है। जिनकी मेहनत से इतने कम समय में यह संभव हुआ।
शौर्य निधि, मिनी गुलेरिया,रुचि लाम्बा ने इस नाटक के प्रोडक्शन में सहायता की है। यह नाटक हिन्दी में है पर सभी को समझ में आए इस लिए सब टाइटिल इंग्लिश में दिए हुए थे जिसको लिखा था आकाश अरोड़ा और शौर्य निधि ने। रचना श्रीवास्तव ने हिन्दी में सुचारु रूप से मंच संचालन किया।
रूचि लम्बा ने नाटक के प्रारम्भ में अंग्रेजी में नाटक के बारे में दर्शकों को बताया। इस नाटक की सह निर्देशिका दिल्ली की जानी मानी अभिनेत्री शिल्पी मारवाह है । शिल्पी इस नाटक के लिए खास दिल्ली से आईं थी। इस नाटक में ध्वनि और प्रकाश की सारी जिम्मेदारी भी शिल्पी ने बहुत ही खूबसूरती से संभाली थी I इस नाटक में संगीत था संगीता गौड़ का।
अंत में मोहना जी ने अपने प्रायोजकों का धन्यवाद करते हुए कहा कि बिना इसके सहयोग से इस कार्यक्रम को यहां करवाना संभव नहीं था। मोहना जी ने विशेष तौर पर पैसेडेना हिन्दू टेम्पिल एंड हेरिटेज फाउंडेशन(HTHF ) के बोर्ड और श्रीमती रीमा मदान के बारे में बोलते हुए कहा कि मात्र एक फोन कॉल पर ही आप सभी सहयोग करने के लिए तैयार हो गए। अंत में मोहना जी ने ऐश्वर्या निधि और शिल्पी मारवाह का इस सुंदर नाटक के लिए धन्यवाद किया। मोहना जी सबका धन्यवाद कर रही थी और सारे दर्शक उनका धन्यवाद कर रहे थे ,इतने सुंदर नाटक का मंचन यहां करवाने के लिए।
स्वरचित इस कविता के साथ में अपनी आँखों देखी समाप्त करती हूँ।
दबी हुई वीरानगी की आवाज हूँ मै
सदियों तलक गूंजने वाला साज़ हूँ मै
क्यों बंधी ली आंखों पे पट्टी मैने
इस कारण, खुद से ,बहुत नाराज़ हूँ मै
उपेक्षित हूँ इतिहास में पर मजबूर नहीं
नाम गांधारी एक रौशनी की तलाश हूँ मै
(फोटो उमेश मुच्छाल और जूलियो जे वर्गज़ के सौजन्य से )