मुंबई में फिक्की फ्रेम्स 2015 के पहले दिन के पहले सत्र की शुरुआत टाटा स्काई के सीईओ और एमडी हरित नागपाल ने अपने इस धुँआधार वक्तव्य से चर्चा की शुरुआत की। चर्चा का विषय था- भारत किस तरह मीडिया और मनोरंजन की विश्वव्यापी महाशक्ति बन सकता है (‘How can India be the global Media and Entertainment superpower)। उन्होंने सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हुए कहा, मेरे लिए यह बहुत सामान्य बात है क्योंकि इस समय भारत विश्व की 50 सबसे बड़ी मीडिया और मनोरंजन अर्थव्यवस्थाओं में से है। सबसे अच्छी बात यह है कि हमारी वृद्धि दो-अंकीय है। पिछले पांच सालों से यह उसी स्तर पर है। इसलिए हमारे लिए सबसे जरूरी यह है कि हम इससे आगे बढ़ें ताकि महाशक्ति बन सकें। हमें इस चरण पर खुद से दो सवाल करने चाहिए- क्या हम कुछ अलग करने वाले हैं और जो कर रहे हैं, उसमें ही थोड़ा सा अलग करेंगे?
उन्होंने कुछ भारतीय ब्रैंड्स के उदाहरण दिए जैसे निरमा, लिज्जत पापड़, घड़ी डिटर्जेंट और चिक जिन्होंने मीडिया की बदौलत इस प्रतिस्पर्धात्मक बाजार में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को चुनौती दी। मीडिया ने न सिर्फ उपभोग को बढ़ाया, बल्कि वह आम लोगों तक निर्माण और वितरण को भी लेकर गया।
हरित ने मीडिया और मनोरंजन उद्योग की मुख्य समस्याओं में से एक पर चर्चा की। उन्होंने कहा, हमारे यहां नए विचारों और रचनात्मकता का अभाव है। अगर किसी को एक सफल प्रारूप मिल गया, तो उसके पीछे 20 लोग आंखें मूंदकर कूद पड़ते हैं। लोग यह नहीं समझ पाते कि किसी और स्टार प्लस या जीटीवी की हमें जरूरत नहीं, और अरनब गोस्वामी भी सिर्फ एक हैं और बरखा दत्त भी एक ही हैं। इसलिए जैसे ही कोई नया मनोरंजन चैनल शुरू होता है और वह वही सब दिखाता है तो उसकी दर्शक संख्या और राजस्व गिरने लगता है। फिर वे 20 से 22 मिनट के विज्ञापनों पर दांव लगाना शुरू करते हैं। नियामक उनसे सवाल करते हैं और उन्हें अदालतों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। दूसरी बात यह है कि हमें निर्माण को बड़े शहरों से छोटे शहरों की ओर ले जाना चाहिए क्योंकि असली प्रतिभा हमारे देश के सुदूर इलाकों में बसती है।
इसके बाद हरित ने उन क्षेत्रों के बारे में चर्चा की जहां सरकार को तेजी दिखानी चाहिए जिससे मीडिया और मनोरंजन उद्योग को लाभ हो। उनके अनुसार, उद्योग पर ग्लैमर, प्रचार, रचनात्मकता और सशक्तीकरण जैसे शब्दों का ठप्पा लगा हुआ है जिसके लिए खुद उद्योग और सरकार दोनों जिम्मेदार हैं। यह उद्योग किसी भी दूसरे उद्योग जैसा है जो लोगों को लाभ पहुंचाता है, रोजगार का सृजन करता है और अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाता है। इसने पिछले कई सालों में ऐसा किया भी है। जहां तक टाटा स्काई की बात है तो पिछले तीन-चार सालों में अगर 50 लाख लोग इसके डिजिटल ग्राहक बने हैं तो इसने सरकार को टैक्स भी ज्यादा दिया है और इसके कंटेंट प्रोवाइडर भी बढ़े हैं। अपनी ग्रामीण उद्यमिता दक्षता योजना के जरिए हम गांवों में 80 हजार नए उद्यमी तैयार करना चाहते हैं और उन्हें पूर्णकालिक रोजगार देना चाहते हैं। एक साल से भी कम समय में, हमने 20 हजार उद्यमियों को रोजगार दिया है। इसलिए यहां सिर्फ ग्लैमर नहीं है। यह कहा जाता है कि इस उद्योग ने 60 लाख लोगों को रोजगार दिया है। और मेरा मानना है कि यह संख्या बढ़ने वाली है।
उन्होंने कहा कि हमारे यहां कारोबार शुरू करना थका देनेवाली प्रक्रिया है क्योंकि किसी कारोबारी को सरकार की तरफ से कई तरह की अनुमतियां और स्वीकृतियां लेनी पड़ती हैं। हम 250 करोड़ रुपए के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय से अनुमति का इंतजार कर रहे हैं। परियोजना के लिए पैसा आ गया है। लेकिन अगर 48 घंटे में अनुमति नहीं मिली तो हमें विदेशी निवेशकों को पैसा लौटाना होगा।
अगले सत्र में सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव जे.एस.माथुर ने इस पर खुलासा किया और कहा कि हमने एक महीने पहले ही अनुमति दे दी थी लेकिन फिर टाटा स्काई को लगा कि निवेश के लिए जो रास्ता वह अपनाना चाहती है, उसके लिए दोबारा आवेदन करने की जरूरत है। इसलिए समय लग रहा है।
हालांकि नई सरकार के कामकाज में तेजी है, फिर भी बड़ा सवाल यह है कि उद्योग में वृद्धि कैसे होगी। हरित के अनुसार, यह आत्म नियंत्रण के जरिए संभव हो सकता है। हम यहां सूचना देने के लिए हैं, अनुमति मांगने के लिए नहीं। अगर हम नियम तोड़ते हैं तो हमारे लाइसेंस रद्द कर दीजिए और सजा दीजिए। वरना, हर दिन लंबित अनुमतियों से कामकाज में व्यवधान पड़ता है। उद्योग पर भी असर होता है।
डिजिटलीकरण पर हरित ने कहा, घरों के डिजिटलीकृत होने से अधिक से अधिक निर्माता अपने निर्माण पर अधिक पैसा लगा पाते हैं। इसकी शुरुआत हो चुकी है, कितनी फिल्में सिर्फ केबल और सेटेलाइट चैनलों को अपने अधिकार बेचकर अच्छा कमा रही हैं। देश में 42 शहरों में डिजिटलीकरण हो चुका है। डिजिटलीकरण, ऑटोमेशन के बराबर है। लोकल केबल ऑपरेटर, मल्टी सिस्टम ऑपरेटर का सर्विस प्रोवाइडर बन गए हैं, पर वे उनके हिस्सेदार नहीं है। मेरे ख्याल से, इस पर भी विचार किया जाना चाहिए।
साभार- समाचार4मीडिया से
लोग अब बरखा, अर्णव और इनके जैसे लोगों से उब चुके हैं
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