जर्मनी की रहने वाली एक महिला को भारत यात्रा के दौरान गायों से ऐसा प्यार हुआ कि वह पिछले 40 सालों से मथुरा के गोवर्धन में रहकर बीमार गायों, बछड़ों की सेवा कर रही हैं। लेकिन अब कानूनी अड़चनों के कारण इस जर्मन महिला को वापस अपने देश लौटना होगा। बता दें कि जर्मनी की रहने वाली फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग 1972 में भारत घूमने आयी थी। इस दौरान जब वह ब्रज भूमि आयी तो उन्हें सड़क किनारे एक गाय तड़पती दिखाई दी। इससे फ्रेडरिक इरिन काफी दुखी हुई और उन्होंने भारत में रहकर ही गायों की सेवा करने का संकल्प ले लिया। ब्रूनिंग ने गोवर्धन के राधा कुंड से कुछ ही दूरी पर स्थित कोन्हई गांव में 5 बीघा जमीन किराए पर लेकर गायों की सेवा शुरु कर दी। इतना ही नहीं ब्रूनिंग ने अपना नाम भी बदलकर सुदेवी दासी रख लिया और गायों की सेवा में ही अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
दो मार्च 1958 को जर्मनी के बर्लिन शहर में जन्मी सुदेवी दासी का मूल नाम फ्रेडरिक इरिन ब्रूनिंग है. वो साल 1978-79 में बतौर पर्यटक भारत आईं थीं. तब वो महज 20 साल की थीं. वह थाईलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया और नेपाल की सैर पर भी गईं लेकिन उनका मन ब्रज में आकर ही लगा. सुदेवी कहती हैं कि वह राधाकुंड में गुरु दीक्षा लेकर पूजा, जप और परिक्रमा करती रहीं. एक दिन उनके पड़ोसी ने कहा कि उन्हें गाय पालनी चाहिए. उन्होंने एक गाय पालने से शुरुआत की और धीरे-धीरे गाय पालने का क्रम गोसेवा मिशन में बदल गया. उनके पिता जर्मन सरकार में आला अधिकारी थे. उन्हें जब यह खबर मिली तो उन्होंने अपनी इकलौती संतान को समझाने के लिए अपनी पोस्टिंग दिल्ली स्थित जर्मन दूतावास में करा ली. पिता के लाख समझाने के बाद भी वह अपने निश्चय पर अड़ी रहीं.
40 साल भारत में रहने के बाद अब वीजा संबंधी कानूनी अड़चनों के चलते सुदेवी को जर्मनी वापस लौटना पड़ेगा। इस बात से सुदेवी काफी दुखी हैं। अपनी वीजा अवधि बढ़वाने के लिए सुदेवी ने मथुरा की सांसद हेमामालिनी से भी मदद की गुहार लगायी है। इस पर हेमामालिनी ने कहा है कि वह विदेशमंत्री सुषमा स्वराज से खुद इस संबंध में बात करेंगी। साथ ही हेमामालिनी ने सुदेवी द्वारा की गई गौसेवा की भी खूब तारीफ की और भारतीयों को भी सुदेवी से सीख लेने की नसीहत दी।
आज भी हर दिन उनकी एंबुलेंस आठ से दस गायें लेकर आती है. जो या तो किसी दुर्घटना में घायल हुई होती हैं या वृद्ध और असहाय हैं. वह उनका उपचारवकिया करती हैं. हालांकि गोशाला चलायमान रखने की चुनौतियां भी कम नहीं हैं. वह गाय, बछड़ों को अपने बच्चों की तरह मानती हैं. अब तो दूसरी गोशालाओं ने भी बीमार और वृद्ध गायों को उनकी गोशाला में भेजना शुरू कर दिया है. गोशाला में अंधी और घायल गायों को अलग-अलग रखे जाने की व्यवस्था है. वह उन्हें बिना किसी ना-नुकुर के उन्हें अपने पास रख लेती हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि यहां रहने से उनकी पीड़ा कुछ कम हो जाएगी. गोशाला में 60 लोग काम करते हैं. उनका परिवार भी गोशाला से ही चलता है. हर महीने गोशाला पर करीब 25 लाख रुपये खर्च होते हैं. यह धनराशि वह बर्लिन में अपनी पैतृक संपत्ति से मिलने वाले सालाना किराए और यहां से मिलने वाले दान से जुटाती हैं.
सुदेवी की गौशाला राधा सुरभि गौशाला करीब 1300 गायों, बछड़ों और बैलों का ठिकाना है। सुदेवी को जो भी बीमार गाय या बछड़ा, बैल सड़क किनारे बीमार दिखाई देता तो वह उसे अपनी गौशाला में ले आती। आज इसी तरह उनके पास 1300 गाय बछड़े हो गए हैं। अधिकतर गाएं किसी बीमारी या फिर जख्मों से पीड़ित हैं। कई गाएं तो ऐसी भी हैं, जिन्हें दिखाई नहीं देता। लेकिन सुदेवी बिना किसी स्वार्थ के इन गायों की सेवा करती हैं। यही नहीं सुदेवी की गौशाला में करीब 60 लोग काम करते हैं। सुदेवी का गाय प्रेम देखकर अब स्थानीय लोग भी भारत सरकार से इनका वीजा बढ़ाने की अपील कर रहे हैं।