Saturday, November 23, 2024
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ओशो की सचिव रही माँ आनंद शीला से एक मुलाकात

क्या मुझे अपने जीवन में किसी बात का अफ़सोस है? मेरा जवाब है- नहीं.’ आंखें झपकाए बिना शीला कहती हैं. कभी ‘मां आनंद शीला’ के नाम से विख्यात शीला बर्न्सटील अब स्विट्ज़रलैंड की माइसप्रख घाटी के एक शानदार घर में रहती हैं. वह ‘भगवान रजनीश’ उर्फ ओशो की प्रवक्ता और निजी सचिव थीं.

ऑनलाइन स्ट्रीमिंग सेवा नेटफ्लिक्स पर हाल ही में रिलीज़ हुई सिरीज़ ‘वाइल्ड वाइल्ड कंट्री’ ने भारत के सबसे विवादित गुरुओं में से एक रहे ओशो रजनीश के बारे में चर्चाओं का पिटारा फिर खोल दिया है.

ओशो उर्फ रजनीश 1970 के दशक में भारत में लोकप्रिय और विवादित आध्यात्मिक गुरु थे जिनका दावा था कि उन्होंने अपनी आत्मा को जगा लिया है. वह अपने अनुयायियों को डायनमिक ध्यान और शारीरिक क्रियाओं के ज़रिये ध्यान कराते थे. लेकिन सेक्स पर उनके विचारों ने उन्हें काफी विवादित बना दिया था. लोग उन्हें ‘सेक्स गुरु’ भी कहने लगे थे क्योंकि उन्होंने खुले सेक्स की वक़ालत की थी.

भगवान रजनीश के बारे में आनंद शीला ने क्या कहा?

1990 में पुणे स्थित अपने आश्रम में ओशो का देहांत हो गया. उनकी मौत का कारण अब तक एक रहस्य है. नब्बे के दशक में- जब मैं छोटी थी- मेरे घर में अक़सर ओशो के कैसेट चलते थे और मैं उन्हें सुनती थी. मेरे पिता उनके दर्शन को अच्छा मानते थे. मेरी ओशो में तब तक कोई दिलचस्पी नहीं थी, जब तक मैं पहली बार साल 2000 में उनके पुणे स्थित आश्रम नहीं गई. वहां कुछ रहस्यमयी और आकर्षक था.

मार्च 2018 में नेटफ्लिक्स ने ‘वाइल्ड वाइल्ड कंट्री’ नाम से छह एपिसोड की एक सिरीज़ रिलीज़ की जो भगवान रजनीश और उनकी निजी सचिव मां आनंद शीला की ज़िंदग़ी की कहानी बयान करती है. सिरीज में दिखाया गया है कि कैसे ओशो के 15 हज़ार अनुयायियों ने अपनी संपत्ति इस करिश्माई गुरु को अमरीका में अपना एक पूरा शहर बसाने के लिए दान कर दी. इस सिरीज़ की मुख्य किरदार मां आनंद शीला ही हैं जो ‘अपने गुरु के सपने को पूरा करने के लिए’ काम कर रही थीं. सिरीज़ में उन्हें ‘रजनीशपुरम’ शहर के विचार का मास्टरमाइंड बताया गया है.

‘वाइल्ड वाइल्ड कंट्री’ रिलीज़ होने के बाद रजनीश के जीवन में शीला की भूमिका पर ख़ूब चर्चाएं हो रही हैं. रजनीश की एक सामान्य अनुयायी से उनका दायां हाथ बन जाने तक उनका सफ़र एक हैरतअंगेज़ कहानी की तरह रहा है.

मुझे लगा कि एक महिला कैसे एक ताक़तवर देश और एफबीआई जैसी संस्था से लोहा ले सकती है? मैंने सोचा कि क्यों उन्होंने नेटफ्लिक्स की एक सिरीज़ में ख़ुद की कहानी बयान करने का फ़ैसला लिया?

मैं अपने सवालों के साथ मां आनंद शीला से मिलने स्विट्ज़रलैंड जा पहुंची.

69 साल की शीला बर्न्सटील अब स्विट्ज़रलैंड में दो केयर होम्स की सर्वेसर्वा हैं. इनमें से एक का नाम है- मातृसदन, यानी मां का घर.

घर में घुसते ही शीला और उनकी टीम हमारा गर्मजोशी से स्वागत करती हैं. उनकी टीम के ज़्यादातर सदस्य उन्हें दस से भी ज़्यादा साल से जानते हैं.

बातचीत शुरू होने से पहले हमारे लिए भारतीय चाय और खाने के लिए कुछ कुकीज़ लाए जाते हैं.

हम इंटरव्यू के लिए उनके घर के बाहर बग़ीचे में कैमरे का सेटअप करते हैं. शीला अपना गोल चश्मा लगा लेती हैं. उनके बाल सूरज की रौशनी में चमक रहे हैं- जैसे उनके अनुभवों की ताक़ीद कर रहे हों.

वह मुझसे कहती हैं, “तुम सवाल पूछने के लिए बहुत उत्सुक लग रही हो. मैं सहमति में सिर हिलाती हूं.”

‘लोग स्कैंडल में रुचि लेते हैं’

मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने नेटफ्लिक्स की यह सिरीज़ देखी. शीला ने कहा, “मैं जल्दी जल्दी इससे होकर गुज़री. मैं अपनी ज़िंदग़ी के बारे में जानती हूं और मुझे इसकी हर चीज़ देखने की ज़रूरत नहीं है.”

शीला ने कहा कि लोगों के अपने विचार हैं और वह किसी के विचारों की परवाह नहीं करतीं. वह कहती हैं कि लोग सिर्फ़ स्कैंडल में रुचि लेते हैं क्योंकि उनका अपना जीवन स्कैंडल से भरा होता है.

मैंने उनसे पूछा कि जो कुछ हुआ, उसे वह स्कैंडल क्यों कहती हैं- तो वह बोलीं, “भगवान (रजनीश) ने बहुत स्कैंडल किया और मैं यह कहने का साहस रखती हूं. मैंने उनके मुंह पर यह बात कही. मैंने वाइल्ड वाइल्ड कंट्री में भी यह देखा.”

इस बातचीत में उनकी ओर से ‘वाइल्ड वाइल्ड कंट्री’ का यह तीसरा ज़िक्र था, जबकि पहले उन्होंने कहा था कि उन्होंने यह सिरीज़ जल्दी-जल्दी आगे बढ़ा-बढ़ाकर देखी है.

अपने सभी साक्षात्कारों और किताबों में शीला ने रजनीश के लिए अपने प्यार पर बात की है. लेकिन पहली बार मैं अपनी आंखों से देख सकती थी कि रजनीश के लिए अपने प्यार पर बात करते हुए शीला की आंखें कैसे चमकने लगी थीं.

रजनीश से अपनी पहली मुलाक़ात याद करते हुए उन्होंने कहा, “ऐसा लगा जैसे उनका स्नेह मुझ पर बरस पड़ा हो और मैं सिर्फ ‘वाह’ (वाओ) कह सकी.”

“अगर इतना प्यार था तो फिर रजनीश को छोड़ा क्यों?” मैंने पूछा.

“प्यार का मतलब है तरक़्क़ी और अपनी अखंडता. अब उस आदमी ने मुझ पर काम के मामले में भरोसा किया. उस आदमी ने मुझ पर भरोसा किया अपनी शिक्षा और अपने लोगों के संबंध में. अगर मैं उस भरोसे पर खरी नहीं उतरती तो इसका मतलब होता कि मेरे प्यार में कुछ कमी है.”

ज़ाहिर है, शीला ने इस सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया लेकिन मैं यह कह सकती हूं कि इस सवाल ने उन्हें असहज किया.

उनके कुछ ज़ख़्म शायद अब भी हरे हैं. वह भरोसे पर बोलीं, वह अपने हाथों अपने उत्पीड़न पर बोलीं, “मैं हमारा शो देखने वाली सारी एशियाई महिलाओं से कहूंगी कि प्यार के नाम पर अपना उत्पीड़न, भावनात्मक उत्पीड़न न होने दें. अपने पैरों पर खड़े होने का साहस रखो- बहादुर बनो.” उन्होंने दृढ़ता से कहा, ‘मैं हमेशा भगवान से प्यार करूंगी।’

अपनी बात ख़त्म करने से पहले वहां आई उनकी एक ‘मरीज़’ क्रिस्टीना आंगन में बैठी-बैठी कुछ गाने लगीं. शीला ने उन्हें बुलाया और उनसे जर्मन में बात करने लगीं.

शीला ने कहा कि क्रिस्टीना को गाना और डांस करना बहुत पसंद है. 52 साल की क्रिस्टीना वाक़ई एक शानदार परफॉर्मर हैं. उन्होंने हमारे लिए अपने पसंदीदा गाने पर डांस भी किया. जब क्रिस्टीना शांत रहने पर सहमत हो गईं तो इंटरव्यू दोबारा शुरू हुआ.

उन्होंने पूछा, ‘तो हम कहां थे.’

मेरे अगले सवाल पर वह हंस पड़ीं. मैंने उनसे पूछा कि क्या ताक़त की सनक उन पर सवार थी और क्या इसी सनक ने उन्हें रजनीश से अलग कर दिया?

उन्होंने जवाब दिया, “मैं बेवक़ूफ नहीं थी. मैं जानती थी कि इस समुदाय की ताक़त भगवान थे. और मैं यह बताना चाहती हूं कि अगर आज भगवान लौट आएं तो मैं वैसे ही प्यार करूंगी, जैसे करती थी. ये चीज़ कभी नहीं बदलेगी.”

इतना कहकर मुस्कुराती हुई वह अपनी पीठ कुर्सी पर टिका लेती हैं, कुछ इस तरह जैसे रजनीश अभी इसी वक़्त उनकी कल्पना में उतर आए हैं.

‘यह एक छल था’

मैं जानना चाहती थी कि शीला रजनीश के दर्शन, उनके विचारों पर क्या सोचती थीं. मैंने उनसे पूछा कि लोग रजनीश के दीवाने क्यों थे?

उन्होंने कहा, “भगवान ने अपने लोगों के सामने एक अच्छा लक्ष्य रखा था- ध्यान और स्वयं को जगाना. जब वह मेरी आर्थिक मदद करना चाहते थे तो वो कुछ लोगों को ‘जगा हुआ’ घोषित कर देते थे.”

“तो यह एक छल था. उन अर्थों में हां. लेकिन सिर्फ़ भगवान को दोष मत दीजिए, उन लोगों को दोष दीजिए जो पूरे होशो-हवास में इस छल के पीछे भागे.”

और अपराधों का सवाल

अब यह शीला से ‘उनके अपराधों’ पर बात करने का समय था.

मैंने पूछा, “आप कहती हैं कि आपको ताक़त और सत्ता नहीं चाहिए थी. लेकिन अपराधों का क्या? खाने में ज़हर मिलाना?”

शीला की आंखें अंगार सी चमकने लगीं. उनकी आवाज़ अब उतनी दृढ़ नहीं थी- उनके शब्द भी बहुत साफ़ नहीं थे.

वह सीरिया और असद के बारे में बात करने लगीं, लेकिन जब मैं उन्हें अपनी बातचीत के मुद्दे पर वापस लाई तो ग़ुस्से में उन्होंने कहा, “मैं इस पर इसलिए बात नहीं करना चाहती क्योंकि मैं 39 महीने जेल में बिता चुकी हूं और लोग मुझे सारी ज़िंदग़ी सज़ा नहीं दे सकते. आप सबने यह तय कर रखा है कि रजनीश के सब अनुयायी ग़लत थे.”

“नहीं मैं आपसे पूछ रही हूं शीला”- इससे पहले कि मैं अपनी बात पूरी करती, उन्होंने कहा, “मैं आपको बता रही हूं पर आप सुनने को तैयार नहीं है तो इस बात को यहीं छोड़ देते हैं.”

और इस तरह इस सवाल पर हमारी बातचीत ख़त्म हुई.

‘मैं एक सामान्य ज़िंदग़ी जीती हूं’

उन्होंने विरोध करते हुए कहा, “जो भी मुझे दोष देना चाहता है- मैंने कोई अपराध नहीं किया.”

उन्होंने मेरी आंखों में देखते हुए कहा, “मैं उसी भरोसे के साथ यह बात कह रही हूं, जिस भरोसे से मैं भगवान से प्यार करती हूं.”

बातचीत के साथ सूरज भी चढ़ता गया और हम दोनों पसीने में भीग गए.

शीला रुकीं और कहने लगीं, “मुझे यहां गर्मी लग रही है और मैं पसीना पोंछने के लिए तौलिया लेकर आती हूं.”

हमने रिकॉर्डिंग रोक दी, एक-एक गिलास पानी पिया, अपने चेहरे पोंछे और कैमरे की गहन बातचीत से उस हरे बग़ीचे में थोड़ा ब्रेक लिया.

शीला को अपना घर और वहां रहने वाले लोग बहुत पसंद हैं और उन्हें अपने प्यार का वैसा ही प्रतिफल भी मिलता है.

इंटरव्यू के आख़िरी कुछ मिनट पूरे करने के लिए हम दोबारा बैठे.

मैंने उनके नए जीवन के बारे में पूछा, जिस पर उन्होंने कहा कि यह नया जीवन नहीं है, “मैं वही हूं जो पहले थी, मैं रजनीश समुदाय के साथ अपने जीवन का आनंद ले रही हूं और यहां सेवा कर रही हूं.”

“मैं एक सामान्य ज़िंदग़ी जीती हूं. मुझे लोगों के साथ रहना पसंद है. वहां मैं प्रमाणित स्वस्थ लोगों का ख़्याल रखती थी, यहां मैं बीमारों का ध्यान रखती हूं. कुछ भी अलग नहीं है.”

इंटरव्यू ख़त्म होते होते शीला ख़ुश दिखीं. उन्होंने मुझसे पूछा, “क्या तुम ख़ुश हो? क्या तुम्हें सारे जवाब मिल गए?” मैंने मुस्कुराकर जवाब दिया.

उन्होंने मुझे और मेरे कैमरापर्सन पॉल को लंच का न्योता दिया. हमने एक-दूसरे की ओर देखा और इसे स्वीकार कर लिया.

खाने में सलाद, सब्ज़ियां, फिश करी और चावल था. चूंकि मैं शाकाहारी हूं तो उनकी बहन मीरा ने मुझे अपने लिए बनाए गुजराती खाने का विकल्प भी दिया.

लंच की टेबल पर खाना खा रहीं शीला, उनकी टीम और हम- कुल मिलाकर यह एक ख़ुश 11 लोगों का समूह दिख रहा था. वह जेल में अपने दिनों के बारे में भी बात करने लगीं.

मैंने मीरा से पूछा कि वो इन साक्षात्कारों के बारे में क्या सोचती हैं जो शीला दे रही हैं.

एक मां की तरह कंधे हिलाते हुए उन्होंने कहा, “मुझे यह पसंद नहीं. उनकी तबियत ठीक नहीं रहतीं. उन्हें ये सब बंद करके समय पर खाना चाहिए. लेकिन वो सुनती ही नहीं.”

शीला के घर पर पूरा एक दिन बिताने के बाद मैं यही कह सकती हूं कि असल शीला को समझना बेहद मुश्किल है. वह बहुत जागरूक, दयालु और चिंतित लगती हैं. पर उसी समय उन लोगों के लिए उनकी बेरहमी भी झलकती रहती है, जिन्हें शीला का सताया हुआ माना जाता है.

हालांकि मैं यह ज़रूर कहूंगी कि वो लोगों की प्रिय हैं और एक शानदार मेज़बान हैं.

साभार- https://www.bbc.com/hindi/ से

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