इन दिनों कवि सम्मेलन के नाम पर देश भर में वाट्सएप के चुटकुले या फूहड़, घटिया और अश्लील तुकबंदियों को परोसकर कवियों ने ऐसा माहौल बना रखा है ककि कवि सम्मेलन सुनकर लगता है मानो स्तरहीन कविताओँ और घटिया शायरी ही कविताओँ का पर्याय रह गई है। मंच पर अगर कोई स्वनाम धन्य कवयित्री मौजूद हो तो अश्लील छीटाकशीं से ऐसा माहौलहो जाता है कि ये कवि सम्मेलन की बजाय कुंठित, धूर्त और नौटंकीबाज लोगों का जमावड़ा लगता है। मुंबई से लेकर देश भर में हर साल कुछ खास मौकों पर होने वाले कवि सम्मेलन रात-रात भर चलते थे जिसमें नीरज से लेकर काका हाथरसी, निर्भय हाथरसी, शैल चतुर्वेदी, हुल्लड़ मुरादाबादी, बालकवि बैरागी, डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन लेकर नए व उभरते कवि भी अपनी रसपूर्ण, श्रृंगारिक, साहित्यितक व्यंग्य की चुटीली रचनाओँ से रात रात भर रसिक श्रोताओं का मनोरंजन करते थे। अब तो हाल ये है कि हर कवि मंच पर आकर दूसरे कवि से ज्यादा घटिया रचना सुनाने में आगे होना चाहता है। मंच पर कवि खड़ा होते ही दर्शकों से ताली बजाने का इतना आग्रह करता है मानो घर से ताली बजवाने की कसम खाकर निकला है। हर कवि दो कौड़ी की कविता की दो लाईन सुनाकर दर्शकों से ताली बजाओ की भीख माँगता रहता है। मुंबई के कई कवि सम्मेलनों के मंच का ठेका कुछ ऐसे मनहूस और कमीशनबाज कवियों ने ले रखा है जो दो-दो कौड़ी के कवियों को आमंत्रित कर तू सैयद मैं सुल्तान की तर्ज पर एक-दूसरे को हर जगह फिट करते रहते हैं। इनकी कविताएँ सुनकर उबकाई आने लगती है।
ऐसे में बरसों बाद मुंबई में एक ऐसा शानदार कवि सम्मेलन और मुशायरा हुआ कि श्रोताओँ को बरसो पुराने कवि सम्मेलन की यादें ताज़ा हो आई। इस कवि सम्मेलन में देश भर के जाने माने कवि आए थे, और किसी ने भी न तो वाट्सप का चुटकुला सुनाया और न श्रोताओं से तालियों की भीख माँगी इसके बावजूद हर कवि को उनकी दो चार लाईनों के बाद तालियों की दाद मिलती रही। अगर मुंबई या किसी और शहर में इन कवियों में से कुछ कवियों को ही आमंत्रित कर कवि सम्मेलन और मुशायरे का मिला जुला आयोजन किया जाए तो कवि सम्मेलन की दम तोड़ती परंपरा को एक नई जान मिल सकती है। मुंबई में कवि सम्मेलनों का आयोजन करने वाले साहित्यिक मंचों और सामाजिक संगठनों को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
मुंबई के अंधेरी पश्चिम के भवंस कल्चरल सेंटर एवं साहित्यम के तत्वावधान में आयोजित कवि सम्मेलन-मुशायरा में ब्रजगजल संकलन नामक पुस्तक का विमोचन भी संपन्न हुआ। कवि सम्मेलन-मुशायरा में खचाखच भरे हॉल में कवि-शायरों हस्तीमल ‘हस्ती’, सागर त्रिपाठी, नवीन सी. चतुर्वेदी, संतोष सिंह, सालिम शुजा अंसारी, मदनमोहन शर्मा ‘अरविंद’, मुजीब शहजर, प्रज्ञा विकास, असलम राशिद, आकिफ शुजा ने अपनी-अपनी रचनाएं सुनाकर भरपूर तालियां व वाह-वाही बटोरी। कार्यक्रम का शुभारंभ ६.३० पर हुआ तो रात १० बजे संपन्न होने तक चला। एक समय तो ऐसा आया जब हॉल की लाइट कुछ वक्त के लिए चली गई तो तो मंत्रमुग्ध श्रोताओं ने अपने मोबाइलों की रोशनी में कार्यक्रम का जमकर लुत्फ उठाया। देश के वर्तमान हालात पर नवीन सी. चतुर्वेदी ने अपना शेर-
‘तारे बेचारे खुद भी सहर के हैं मुंतजिर।
सूरज ने उगते-उगते जमाने लगा दिए।।’
सुनाया तो श्रोताओं की करतल ध्वनि से भवंस हॉल काफी देर तक गूंजता रहा, वहीं सागर त्रिपाठी की रचनाओं ने श्रोताओं के मानस-पटल पर ब्रजभूमि व कन्हैया की लीलाओं की छाप छोड़ी। कार्यक्रम के पश्चात लोगों को यह भी कहते हुए सुना गया कि खालिस साहित्य को लेकर ऐसा कार्यक्रम लंबे अतराल के बाद देखने-सुनने को मिला है। पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम के अवसर पर ‘दोपहर का सामना’ के निवासी संपादक अनिल तिवारी, संतोष चतुर्वेदी, अनिल पांडेय, प्रसिद्ध चार्टर्ड एकाउंटेंट बी.एम. चतुर्वेदी, प्रसिद्ध वित्तीय सलाहकार मदनगोपाल एवं अरविंद मनोहरलाल, पीएल चतुर्वेदी ‘लाल’, आईपीएल मैच रैफरी सुनील चतुर्वेदी इत्यादि उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन देवमणि पांडेय ने किया।