भोपाल। गुरु-शिष्य की परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है। जिस तरह जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, उसी तरह गुरु का स्थान भी कोई नहीं ले सकता। ऐसे ही एक शिक्षक है श्री शिवकुमार, जिन्होंने उमरिया जिले के बिरसिंहपुरपाली नगर में रहने वाले ओमप्रकाश और शंकुन्तला की दिव्यांग बेटी को शिक्षा देकर आर्दश शिक्षक की भूमिका निभाई है। उन्होंने न केवल दिव्यांग बच्ची के माता-पिता की सोच को बदला बल्कि दिव्यांग नंदनी को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई।
शिक्षक श्री शिवकुमार नगर पालिका पाली के वार्ड नंबर 4 में संचालित माध्यमिक शाला बिजला में पदस्थ है। उन्हें जब यह जानकारी मिली की उनके कार्यक्षेत्र में एक परिवार ऐसा है, जिनके घर एक दिव्यांग बच्ची है जो न बोल सकती है और न ही सुन सकती है। उन्होंने इस बच्ची को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने का संकल्प लिया। बचपन से ही बोल और सुन न पाने के कारण नंदनी का स्कूल में दाखिला नहीं हो सका। दिव्यांग नंदनी के माता-पिता भी उसे स्कूल में नहीं भेजना चाहते थे। शिक्षक श्री शिवकुमार सिंह ने दिव्यांग नंदनी के माता-पिता से लगातार सम्पर्क कर उन्हें न केवल प्रेरित किया, अपितु उन्हें इस बात पर भी मना लिया कि उनकी बेटी अन्य बच्चियों की तरह स्कूल जा सकती है और पढ़-लिख कर आगे बढ़ सकती है। माता-पिता की सहमति मिलने पर शिक्षक शिवकुमार ने नंदनी पर विशेष ध्यान देते हुए उसे संकेतों के माध्यम से पढ़ाना शुरु किया। शिक्षक के निरन्तर प्रयासों से नंदनी धीरे-धीरे पढ़ना सीख गई और आज वह सातवीं कक्षा पास कर चुकी है। शिवकुमार के प्रयासों से दिव्यांग नंदनी विद्यालय में होने वाले सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़चढ़ कर भाग लेती हैं।
शिक्षक शिवकुमार सिंह इस बात को बताते हुए गर्व महसूस करते है कि नंदनी भले ही बोल और सुन नहीं पाती लेकिन आज वह हर विषय में दक्ष है। मुझे भी दिव्यांग नंदनी के शिक्षक होने का गर्व होता है कि मैंने एक बेटी के जीवन को सँवारा है।