नई दिल्ली।� अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तक, राष्ट्रसंत, मानवता के मसीहा, युगप्रधान आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी वर्ष का राजधानी दिल्ली में शुभारंभ 10 नवम्बर 2013 को होगा। इस अवसर पर शासनश्री मुनिश्री सुखलालजी के सान्निध्य में यमुना स्पोर्ट्स काॅम्पलेक्स टीटी इन्डोर स्टेडियम, योजना विहार, दिल्ली-110092 में प्रातः 9ः00 बजे भव्य समारोह आयोजित होगा जिसमें पूर्व उपप्रधानमंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता ग्रामीण विकास राज्यमंत्री श्री प्रदीप जैन ‘आदित्य’ करेंगे। पूर्वी दिल्ली के सांसद श्री संदीप दीक्षित एवं पूर्व स्वास्थ्य मंत्री दिल्ली सरकार डाॅ. हर्षवर्धन विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लेंगे।
आचार्य श्री महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री कन्हैयालाल जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि इस समारोह में चारों जैन सम्प्रदाय के परम वंदनीय आचार्य एवं साधु-साध्वी अपना सान्निध्य प्रदान करेंगे जिनमें परम पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज, श्रमण संघीय सलाहकार उप. प्र. तारक ऋषिजी महाराज, महासतीश्री मोहनमालाजी महाराज, महासतीश्री स्नेहलताजी महाराज, महासतीश्री वीणाजी महाराज, मुनि मोहजीतकुमारजी, साध्वीश्री विद्यावतीजी द्वितीय, साध्वी यशोमतीजी, साध्वी रविप्रभाजी, साध्वी त्रिशलाकुमारीजी आदि एक मंच पर आचार्य तुलसी के मानवतावादी उपक्रमों एवं नैतिक संस्कारों के विषय पर अपने उद्गार व्यक्त करेंगे।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा दिल्ली के महामंत्री श्री सुखराज सेठिया ने जानकारी देते हुए बताया कि आचार्य तुलसी जन्मशताब्दी वर्ष आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में मुख्य रूप से चार चरणों में आयोजित होगा प्रथम चरण 5 नवम्बर 2013 लाडनूं में भव्य रूप में आयोजित हुआ, द्वितीय चरण 5 फरवरी 2014 गंगाशहर (बीकानेर-राजस्थान) में, तृतीय चरण 7 सितम्बर 2014 को नई दिल्ली में तथा चतुर्थ चरण 25 अक्टूबर 2014 को समापन चरण के रूप में नई दिल्ली में आयोजित होगा। दिल्ली में आयोजित होने वाले जन्म शताब्दी समारोह की भव्य तैयारियां की जा रही हैं और उसका शुभारंभ 10 नवम्बर 2013 को विधिवत रूप से किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि लाडनूं, कोलकता, मुम्बई एवं बेंगलोर से चार अणुव्रत चक्र प्रवर्तन रथ पूरे भारत में परिभ्रमण करते हुए राजधानी दिल्ली पहुंचेंगे।
विदित हो आचार्य श्री तुलसी भारतीय संत परम्परा के उज्ज्वल नक्षत्र थे। उनका जन्म 20 अक्टूबर, 1914 (कार्तिक शुक्ला द्वितीया वि.स.1971) को राजस्थान के एक कस्बे लाडनूं में ओसवाल जैन परिवार में हुआ। 15 दिसम्बर, 1925 को जीवन के 12वें वर्ष में उन्होंने जैनधर्म के श्वेताम्बर तेरापंथी सम्प्रदाय के अष्टमाचार्य कालूगणी के पास जैनमुनि-दीक्षा ग्रहण की। मात्रा 22 वर्ष की लघु वय में आप तेरापंथ के नवम आचार्य के रूप में अधिष्ठित हुए।
34 वर्ष की उम्र में 01 मार्च, 1949 को आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन के रूप में एक असाम्प्रदायिक नैतिक आन्दोलन का प्रवर्तन किया। उन्होंने करीब एक लाख किलोमीटर की पदयात्रा कर देश में अहिंसक चेतना, सह-अस्तित्व, सत्यनिष्ठा, प्रामाणिकता, सर्वधर्म सद्भाव, नैतिक अभ्युदय, मानवीय एकता, चरित्रा-शुद्धि एवं राजनीति में नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा आदि की दृष्टि से भगीरथ प्रयत्न किया। इसके साथ ही व्यसन-मुक्ति, रूढि़-उन्मूलन, नारी-जागरण, अस्पृश्यता-निवारण आदि क्षेत्रों में भी उनका योगदान अत्यंत उल्लेखनीय रहा है। पंजाब समस्या के समाधान में आचार्य तुलसी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भगवान महावीर के सिद्धान्तों को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संप्रेषित करने हेतु समण श्रेणी का प्रादुर्भाव कर जैन इतिहास में एक नए अध्याय का सृजन किया।
आचार्य तुलसी ने प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान के नए आयाम दिए। अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय की दिशा में किए गए उनके प्रयास भी अत्यंत श्लाघनीय हंै। 18 फरवरी, 1994 को उन्होंने आचार्य पद का विसर्जन कर एक नया इतिहास रचा। मानवता की महनीय सेवा के लिए उन्हें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार आदि अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। 23 जून, 1997 को गंगाशहर (बीकानेर) में उनका महाप्रयाण हो गया।
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(ललित गर्ग)
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