Sunday, November 24, 2024
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आहत यमुना: क्रोधित देव

चेतावनी सुनो

यमुना
हां, हां मैं यमुना हूं। मैने ज़रखेज जमीनों को खूबसूरत बागीचों में बदला है। मैने भूख से बिलखते बचपन को जिंदगी दी है। चांदी सी रेत पर हरियाली का समंदर सींचा है। मैने जल दिया; जीवन दिया; काली अंधेरी रात में बिजली के लट्टुओं सी चमचमाती आबादी को रोशनी दी है। श्रृद्धा को मंदिर, पुष्प को पूजा और हर आने वाले को अपनी गोदी में खिलाया, पाला-पोसा, बङा किया;

मगर, तुमने मुझे क्या दिया ?

हर रोज हजारों टन मानव मल-मूत्र, कूङा-करकट… गंदगी! जहर उगलती फैक्टरियों का अवशेष ! खेतों में पङता लाखों टन उर्वरक, प्रतिबंधित रसायन !! अपने स्वार्थ में वशीभूत मानव! क्या मेरी ममता का यही प्रतिफल है ?

क्या मैने तुम्हे इसीलिए पाला था कि तुम मेरे सीने पर अवैध बस्तियां बसाओगे ? सैकङों नालों से निकलते मल-मूत्र-गंदगी से मुझे स्नान कराओगे और फिर गाओगे – जय जय यमुना! जय जय यमुना!!

***
कौन पिता, भाई या पति होगा, जो अपने रक्त संबंधी की चीत्कार सुन भी चुप बैठा रहेगा ? सूर्य यमुना के पिता हैं; यमराज भाई, ब्रह्म रचयिता और कृष्ण.. यमुना के पिया। यमुना की दुर्दशा देख क्रोधित देवशक्तियां भी चीख-चीख कर कुछ कह रही हैं; चेतावनी दे रही हैं; सुन सको, तो सुनो।
***

सूर्य
मानव! मूर्ख मानव !!
नहीं, नहीं तुम मानव तो हो नहीं सकते। तुम तो दानव हो; विनाश के ज्वालामुखी पर बैठे, क्रूर और अभिमान के मद में चूर दानव!

तुमने कभी सोचा, यमुना को मारकर…मिटाकर क्या तुम बच पाओगे ? आज टी बी, कैंसर, दमे का संत्रास झेलते हो, क्या कल जन्मते ही मर नहीं जाओगे ? क्या लालकिले की दीवारें तुम्हे चीख-चीखकर तबाह नहीं कर देंगी ?

जरा सोचो, बार-बार सोचो! क्या कल को हरियाणा की समृद्धि बंजर नहीं हो जायेगी ? दिन के उजाले मंे स्याह होती दिल्ली कल को क्या रेत के टीबों में बदल नहीं जायेगी ?

मनाओ, कहां मनाओगे आजादी का जश्न ? किसे कहोगे संगम ? कहां लगेंगी स्नान की कतारें ? भैया दूज पर किस बहन को पूजोगे तुम ??

यमराज
सुनो, ध्यान से सुनो! यदि इंसानियत अभी जिंदा हो, तो सुनो!!

यमुना यदि मर गई, मिट गई तो तुम यमुना की हत्या नहीं करोगे; तुम सूर्यपुत्री की हत्या करोगे; भगवान कृष्ण के आधे अंग की स्वामिनी कृष्णा की हत्या करोगे। तुम मेरी बहन यमुना के हत्यारे कहलाओगे। यमराज की बहन के हत्यारे !!

याद रखो, तुम पर यमराज को प्राणों से प्रिय बहन यमी की हत्या का कलंक लगेगा और तुम उसे मिटा भी न सकोगे। यमराज के शिकंजे तुम्हे बहुत पहले ही अपने बाहुपाश में कस चुके होंगे। तुम बच न सकोगे।

सुनो, सुनो ! यमराज का अट्टाहस सुनो। क्या तुम मुझे नहीं सुन रहे ? सुनो। आज नही ंतो कल सुनना होगा। हा हा हा…सुनो !

ब्रह्म
अब समय नहीं, पर सुनते जाओ।
मैं हूं शुभेच्छु तुम सबका।
वर्तमान तुम्हे ललकार रहा
जो बैठे मंडप तले यहां।
जिनमें पौरुष अभी बाकी हो,
उनका पौरुष जाने ये जहां।
बांधों नालो को खेतों तक,
बांधो उर्वरकों को फसलों तक।
बांधो, जो बांध सको तो आबादी,
रोको, जो रोक सको तो पलायन।
वरना् तुम बच न पाओगे,
रोज पियोगे जहर का प्याला,
मर जायेंगे गर्भ के शिशु,
बच जायेंगे हो विकलांग,
फैली होगी मैली चादर
स्याह बनेंगे शहर श्मशान।

याद रखो,
एक-एक तिनका जोङकर बनाई रचना कहीं टूट न जाये। कहीं छूट न जाये मेहनत की रोटी। जरा सोचो, यदि स्वस्थ शरीर ही बीमार हो गया, तो बाकी कमाई क्या काम आयेगी।

कृष्ण
मैं कृष्ण हूं ; गीता का कृष्ण, महाभारत का कृष्ण ! गोपिन का कृष्ण, मथुरा-वृंदावन का कृष्ण ! अर्धांगिनी कृष्णा का कृष्ण !!
मैं सब देख रहा हूं; जीवन भी, मृत्यु भी; अर्थ भी, अनर्थ भी; न्याय भी, अन्याय भी। अर्धागिनी कृष्णा के.. यमुना के कष्ट भी, उपकार भी; मानव का स्वार्थ भी, स्वांग भी और संस्कार भी।
मैं देख रहा हूं कि तुम भूल चुके कि यमुना तुमको जल देती है, जीवन देती है। तुम भूल चुके, यमुना तुम को सेती है।
तुम यह भी भूल गये कि तुम्हारे प्रिय कृष्ण की अंर्धागिनी है, कृष्णा।
मैं सब देख रहा हूं। मैं कुछ नहीं भूला।
तुम मेरी कृष्णा के प्रवाह को खा गये। तुमने मेरी कृष्णा का श्रृंगार नष्ट कर दिया। चूस लिया तुमने कृष्णा का यौवन।
कृष्ण मित्र नहीं तुम। व्याभिचार के दोषी हो तुम। मेरी अर्धांगिनी का रोज चीरहरण करते हो तुम।
भूल गये, जब चीर लुटा द्रौपदी का ? भूल गये तुम अंत कू्रर दुशासन का।
अब और नहीं। अंतिम क्षण है यह। अब भी चेतो। वरना, कालचक्र जब घूमेगा, काल बचेगा, मृत्यु बचेगी और न कोई होगा। एक अकेला चक्र सुदर्शन काट रहा होगा मृत्यु की फसलें। यमराज अकेला पीता होगा खून। कृष्णा हित में अब तो प्रण लो, वरना् हो जाओगे मौन।

***

संपर्क
अरुण तिवारी
amethiarun@gmail.com
09868793799

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