मुस्लिम धर्म से जुड़े ही कई लोग रमज़ान के महीने में पूरे रोज़े नहीं रखते ऐसे में समाज सेवी आशा देवी मल्लाह नियम विधि से पिछले 6 साल से पूरे माह रोज़े रख कर इस्लाम धर्म के प्रति आस्था की मिसाल प्रतुत करती हैं। इसी प्रकार कई हिंदू माता के दोनों नवरात्रा में नौ दिन तक व्रत नहीं करते परंतु यह पूरी श्रद्धा से व्रत रख कर हिंदू धर्म के प्रति अपनी आस्था को प्रकट करती हैं। अजमेर के गरीब नवाज़ की चौखट पर सजदा करती हैं तो माता के दरबार में भी हाजरी लगाती हैं। क्षमावाणी पर्व पर जानी – अनजानी गलतियों के लिए क्षमा मांग कर जैन धर्म का सम्मान करती हैं।
आज के माहोल में देश में कई बार जाति और धर्म के नाम पर हिंसा के दृष्टांत देखने को मिलते हैं। लोगों में असहिष्णुता साफ दिखाई देती है। ऐसे में धार्मिक और जातिय एकता की अनूठी मिसाल बन कर आशा देवी समाज सेवा से समाज का कर्ज भी चुकाती नजर आती हैं।
सामाजिक समरसता के भाव उनके दिल में गहराई तक समाए हैं। रोज़े रखने का भाव मन में कैसे आया इस पर वह बताती हैं कि एक पीर बाबा के सम्पर्क में आने के बाद उन्होंने जाना कि रोज़े से सुकून मिलता है। रोज़े अनुशासन ,धैर्य ,संयम ,और सब्र का पैगाम देते हैं। दूसरे की भूख के दर्द का अहसास होता है। तब से वे बराबर नियमित रोज़े रखने लगी हैं। क्षमावाणी पर्व को वे इसलिए महत्वपूर्ण मानती हैं कि इससे मानव में अहंकार की भावना समाप्त होती है और क्षमा मांगने और झुकने से स्वभाव में विनम्रता और गलत काम नहीं करने के भाव उदय होते हैं।
आशा जी स्वभाव से अत्यंत विनम्र परंतु बोल्ड और निडर हैं। उन्हें जिद्द थी कि वे न केवल अपने पैरों पर खड़ी होंगी वरन परिवार के लिए आर्थिक रूप से भी मददगार होंगी। इसी जिद्द से जब जुनून के रूप में काम किया तो सफलता ने भी उनके कदम चूमे। आज वे न केवल स्वयं आत्मनिर्भर बनी वरन भाई – बहनों को पढ़ाने और परिवार की आर्थिक मदद कर समाज में जिम्मेदारी का एक श्रेष्ठ उद्धरण प्रस्तुत किया। पहले स्टाम्प वेंडर बनी और अब ई मित्र केंद्र संचालित कर अर्थोपर्जन में लगी हैं।
इन्होंने कोटा से पूर्व अलवर और दौसा में भी समाजसेवा के कार्य किए। आपने अप्रैल 1999 से एक वर्ष तक अलवर जिले में दिल्ली की सोसायटी फॉर डोवलपमेंट स्टेडिज के माध्यम से सुपरवाइजर के रूप में नगरीय आवास विकास का कार्य स्वयं सहायता समूह के माध्यम से किया। उत्थान संस्थान अलवर के माध्यम से जून 2004 तक दो वर्ष स्वच्छता अभियान में सेवाएं प्रदान की। वर्ष 2006 से दो वर्ष तक राष्ट्र मानव विकास समिति दौसा के माध्यम से काउंसलर के रूप में एड्स नियंत्रण कार्यक्रम में कार्य किया।
इसके बाद आप कोटा आ गई और निजी रोजगार शुरू करने के साथ – साथ समाज सेवा से जुड़े रहने के लिए 1 अक्टूबर 2008 को ” कृष्णा मानव विकास संस्थान का पंजीकरण करवाया। इसके माध्यम से महिला शिक्षा और स्वरोजगार हेतु व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन, विशेष रूप से विधवा, परित्यक्त, अनाथ, अशक्त,वृद्ध एवम बाल श्रमिकों को शिक्षित करने के साथ – साथ उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाना, ग्रामीण महिलाओं और श्रमिकों के लिए विकासात्मक कार्यक्रमों का संचालन, केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का विविध माध्यमों से प्रचार, दहेज उन्मूलन, बाल विवाह रोकथाम, जनसंख्या नियंत्रण, एड्स नियंत्रण, रक्तदान, जल संरक्षण, स्वच्छता आदि के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के लिए दीवारों पर नारा लेखन, संगोष्ठी, रैली, महिला समूहों में चर्चा, साहित्य प्रकाशन आदि विविध आयोजन किए।
सम्मान और पुरस्कार : अलवर में नवंबर 2005 में प्लस पोलियो अभियान में उत्कृष्ठ सेवाओं के लिए तत्कालीन कलेक्टर ने प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया।* रक्तदान के क्षेत्र में जयपुर में “स्वेच्छिक रक्तदान प्रमाणपत्र” से सम्मानित किया गया।* अलवर में स्वयं सेवी संस्था के साथ सम्पूर्ण स्वच्छता एवं इको डेवलपमेंट के क्षेत्र में कार्य करने पर प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया। *जल संरक्षण अभियान में कला जत्थे के रूप में जागरूकता के लिए उप खंड अधिकारी द्वारा प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया।* वर्ष 2006 में जयपुर की संभागीय जल अभियान समिति द्वारा उत्कृष्ठ कार्य करने पर संभागीय आयुक्त द्वारा ” जल मित्र” पुरस्कार से सम्मानित किया गया। * फरवरी 2008 में कोटा में समिति के माध्यम से सर्व श्रेष्ठ पल्स पोलियों बूथ संचालन के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया।* कोटा में वर्ष 2008 -09 में आपको उल्लेखनीय परिवार कल्याण गतिविधियों के श्रेष्ठ संचन के लिए सम्मानित किया गया।
आपका जन्म 8 जुलाई 1979 को अलवर में हुआ और स्नातक ( पार्ट प्रथम) तक शिक्षा प्राप्त की है। बहुमुखी प्रतिभा की धनी आशा देवी मल्लाह स्वाभिमान और स्वावलंबन की प्रेरक व्यक्तित्व की जीवंत मिसाल हैं। इनके जीवन के संघर्षों की एक लंबी दास्तान है। अपने सारे दुख: दर्द भुला कर अलमस्त होकर अपनी ही धुन में अपने काम और सेवा में लगी रह कर कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रही हैं जो समाज के सामने एक अनुकरणीय उदाहरण है।
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार, कोटा