लघुत्व मूलं च किमर्थितैव
गुरुत्व बीजं यदयाचनं किम् ।
जातो हि को यस्य पुनर्न जन्म
को वा मृतो यस्य पुनर्न मृत्युः ॥
मूकोऽस्ति को वा बधिरश्च को वा
वक्तुं न युक्तं समये समर्थः ।
तथ्यं सुपथ्यं न शृणोति वाक्यं
विश्वासपात्रं न किमस्ति नारी ॥
तत्त्वं किमेकं शिवमद्वितीयं
किमुत्तमं सच्चरितं यदस्ति ।
त्याज्यं सुखं किं स्त्रियमेव सम्यग्
देयं परं किं त्वभयं सदैव ॥
शत्रोर्महाशत्रु तमोऽस्ति को वा
कामःसकोपानृत लोभतृष्णः ।
न पूर्यते को विषयैः स एव
किं दुःखमूलं ममताभिधानम् ॥
#शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||
प्रश्न – छोटेपन की जड़ क्या है ?
उत्तर– याचना , किसी के आगे हाथ फैलाना।
प्रश्न – बड़प्पन की जड़ क्या है ?
उत्तर –कुछ भी न माँगना, किसी के आगे हाथ न फैलाना।
प्रश्न – किसका जन्म सराहनीय है ?
उत्तर – जिसका पुनर्जन्म न हो ।
प्रश्न – किसकी मृत्यु सराहनीय है ?
उत्तर – जिसकी मृत्यु फिर न हो ।
प्रश्न – गूँगा कौन है ?
उत्तर – जो समय पर उचित वचन कहने में समर्थ नहीं है ।
प्रश्न – बहरा कौन है ?
उत्तर – जो यथार्थ और हितकर वचन नहीं सुनता ।
प्रश्न – विश्वास के योग्य कौन नहीं है ?
उत्तर – नारी ।
प्रश्न – एक तत्त्व क्या है ?
उत्तर – परमात्मा ।
प्रश्न – सबसे उत्तम क्या है ?
उत्तर – उत्तम आचरण ।
प्रश्न – कौन सा सुख त्याग देना चाहिए ?
उत्तर –स्त्री सुख ।
प्रश्न – देने योग्य उत्तम दान क्या है ?
उत्तर – अभयदान ।
प्रश्न – शत्रुओं में सबसे बड़ा शत्रु कौन है ?
उत्तर – क्रोध, झूठ, लोभ और तृष्णासहित काम ।
प्रश्न – विषयभोगों से कौन तृप्त नहीं होता ?
उत्तर – काम ।
प्रश्न – दु:ख की जड़ क्या है ?
उत्तर – ममता , माया।
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विषाद्विषं किं विषयाः समस्ता
दुःखी सदा को विषयानुरागी ।
धन्योऽस्ति को यस्तु परोपकारी
कः पूजनीयो शिवतत्त्वनिष्ठः ॥
प्रश्न – विष से भी बड़ा विष क्या है ?
उत्तर – विषयभोग।
प्रश्न – सदा दु:खी कौन रहता है ?
उत्तर – जो संसार के भोगों में आसक्त है ।
प्रश्न – धन्य कौन है ?
उत्तर – जो परोपकारी है।
प्रश्न – पूजनीय कौन है ?
उत्तर – परमात्मतत्त्व में स्थित महात्मा।
सर्वास्ववस्थास्वपि किं न कार्यं
किंवा विधेयं विदुषा प्रयत्नात् ।
स्नेहं च पापं पठनं च धर्मः
संसारमूलं हि किमस्ति चिन्ता ॥
प्रश्न – विद्वानों को क्या नहीं करना चाहिए और क्या करना चाहिए ?
उत्तर – विद्वानों को संसार से स्नेह और पाप नहीं करना तथा सद्ग्रन्थों का पठन और धर्म का पालन करना चाहिए ।
प्रश्न – संसार में जड़ क्या है ?
उत्तर – चिन्ता (माया) ।
#शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||
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विज्ञान्महाविज्ञतमोऽस्ति को वा
नार्या पिशाच्या न च वञ्चितो यः ।
का शृङ्खला प्राणभृतां हि नारी
दिव्यं व्रतं किं च समस्त दैन्यम् ॥
ज्ञातुं न शक्यं हि किमस्ति सर्वै-
र्योषिन्मनो यच्चरितं तदीयम् ।
का दुस्त्यजा सर्वजनैर्दुराशा
विद्याविहीनः पशुरस्ति को वा ॥
वासो न सङ्गः सह कैर्विधेयो
मूर्खैश्च नीचैश्च खलैश्च पापैः ।
मुमुक्षुणा किं त्वरितं विधेयं
सत्सङ्गतिर्निर्ममतेश भक्तिः ॥
प्रश्न – समझदारों में सबसे ज्यादा समझदार कौन है ?
उत्तर – जो (भ्रष्ट)स्त्रीरूप पिशाचिनी से नहीं ठगा गया है ।
प्रश्न – प्राणियों के लिए साँकल क्या है ?
उत्तर – नारी ।
प्रश्न – श्रेष्ठ व्रत क्या है ?
उत्तर – पूर्णरूप से विनयभाव ।
प्रश्न – सब किसी के लिये क्या जानना सम्भव नहीं है ?
उत्तर – स्त्री का मन और उसका चरित्र ।
प्रश्न – सब लोगों के लिए क्या त्यागना अत्यन्त कठिन है ?
उत्तर – बुरी वासना (विषयभोग और पाप की इच्छाएँ)।
प्रश्न – पशु कौन है ?
उत्तर – जो सद्विद्या से रहित (मूर्ख) है ।
प्रश्न – किन-किन के साथ निवास और संग नहीं करना चाहिए ?
उत्तर – मूर्ख, नीच, दुष्ट और पापियों के साथ ।
प्रश्न – मुक्ति चाहने वालों को तुरंत क्या करना चाहिए ?
उत्तर – सत्संग, ममता का त्याग और परमेश्वर की भक्ति।
#शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||
को वा दरिद्रो हि विशाल तृष्णः
श्रीमांश्च को यस्य समस्ति तोषः ।
जीवन्मृतो कस्तु निरुद्यमो यः
कोवाऽमृतः स्यात्सुखदा निराशा ॥
प्रश्न – दरिद्र कौन है ?
उत्तर – भरी तृष्णावाला।
प्रश्न – और धनवान् कौन है ?
उत्तर – जो सन्तोषी है ।
प्रश्न –जीते-जी मरा कौन है ?
उत्तर – जो पुरुषार्थहीन है।
प्रश्न – अमृत क्या है ?
उत्तर – सुख देने वाली निराशा (आशा से रहित होना)।
पाशो हि को यो ममताभिधानः
संमोहयत्येव सुरेव का स्त्री ।
को वा महान्धो मदनातुरो यो
मृत्युश्च को वापयशः स्वकीयम् ॥
– मणिरत्नमाला ,
(स्वामी श्रीशंकराचार्यरचित)
#शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||
प्रश्न – वास्तव में फाँसी क्या है ?
उत्तर – ‘मैं’ और ‘मेरापन ’ ।
प्रश्न – मदिरा की तरह कौन मोहित कर देती है ?
उत्तर – नारी ।
प्रश्न – अन्धा कौन है ?
उत्तर – जो कामासक्त है ।
प्रश्न – मृत्यु क्या है ?
उत्तर – अपयश।
#शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||
को वा गुरुर्यो हि हितोपदेष्टा
शिष्यस्तु को यो गुरु भक्त एव ।
को दीर्घ रोगो भव एव साधो
किमौषधिं तस्य विचार एव ॥
–मणिरत्नमाला #शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||
प्रश्न – गुरु कौन है ?
उत्तर –जो केवल हित का ही उपदेश करने वाला है ।
प्रश्न – शिष्य कौन है ?
उत्तर – जो गुरु का समर्पित भक्त है ।
प्रश्न – बड़ा भारी रोग क्या है ?
उत्तर – बार-बार जन्म लेना ।
प्रश्न –उसकी दवा क्या है ?
उत्तर – परमात्मा के स्वरूप का मनन ।
किं भूषणाद्भूषणमस्ति शीलं
तीर्थं परं किं स्वमनो विशुद्धम् ।
किमत्र हेयं कनकं च कान्ता
श्राव्यं सदा किं गुरुवेदवाक्यम् ॥
–मणिरत्नमाला , #शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||
प्रश्न – भूषणों में उत्तम भूषण क्या है ?
उत्तर – उत्तम चरित्र ।
प्रश्न –सबसे उत्तम तीर्थ क्या है ?
उत्तर – विशुद्ध निर्विकार मन।
प्रश्न – इस संसार में त्यागने योग्य क्या है ?
उत्तर – काञ्चन और कामिनी ।
प्रश्न – सदा (मन लगाकर) सुनने योग्य क्या है ?
उत्तर – वेद और गुरु का वचन , उपदेश।
आचार्य शंकर प्रश्नोत्तरी
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#शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||
के हेतवो ब्रह्म गतेस्तु सन्ति
सत्सङ्गतिर्दानविचार तोषाः ।
के सन्ति सन्तोऽखिल वीतरागा
अपास्तमोहाः शिवतत्त्वनिष्ठाः ॥
जिज्ञासा – परमात्मा की प्राप्ति के क्या क्या साधन हैं ?
समाधान – सत्संग, सात्त्विक दान, परमेश्वर के स्वरूप का मनन, भजन और संतोष ।
जिज्ञासा–महात्मा कौन है ?
समाधान– सम्पूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गयी है, जिनका अज्ञान नाश हो चुका है और जो कल्याणरूप परमात्म-तत्त्व में स्थित हैं , वही महात्मा हैं।
को वा ज्वरः प्राणभृतां हि चिन्ता
मूर्खोऽस्ति को यस्तु विवेकहीनः ।
कार्या मया का शिव विष्णु भक्तिः
किं जीवनं दोष विवर्जितं यत् ॥
–
जिज्ञासा– प्राणियों के लिए वास्तव में ज्वर क्या है ?
समाधान– चिन्ता ।
जिज्ञासा – मूर्ख कौन है ?
समाधान –जो विचारहीन है।
जिज्ञासा – करने योग्य क्रिया क्या है ?
समाधान – शिव और विष्णु की भक्ति ।
जिज्ञासा – वास्तव में जीवन कौन सा है।
समाधान – जो सर्वथा निर्दोष है । –
#शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||
संसार हृत्क: श्रुतिजात्म बोधः
को मोक्ष हेतुः कथितः स एव ।
द्वारं किमेकं नरकस्य नारी
का स्वर्गदा प्राणभृतामहिंसा ॥
–मणिरत्नमाला #शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||
प्रश्न – संसार को हरने वाला कौन है ?
उत्तर – वेद से उत्पन्न आत्मज्ञान ।
प्रश्न – मोक्ष का कारण क्या कहा गया है ?
उत्तर – आत्मज्ञान ।
प्रश्न – नरक का प्रधान द्वार क्या है ?
उत्तर – नारी ।
प्रश्न – स्वर्ग को देनेवाली कौन है ?
उत्तर – जीवमात्र की अहिंसा।
#शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||
शेते सुखं कस्तु समाधिनिष्ठो
जागर्ति को वा सदसद्विवेकी ।
के शत्रवः सन्ति निजेन्द्रियाणि
तान्येव मित्राणि जितानि कानि ॥
प्रश्न – सुख से वास्तव में कौन सोता है ?
उत्तर – जो परमात्मा के स्वरूप में स्थित है ।
प्रश्न – और कौन जगता है ?
उत्तर – सत् और असत् के तत्त्व को जानने वाला ।
प्रश्न –(हमारा) शत्रु कौन है ?
उत्तर – अपनी इन्द्रियाँ;
परन्तु जो जीती हुई हैं तो वही मित्र हैं।
आचार्य शंकर प्रश्नोत्तरी
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के हेतवो ब्रह्म गतेस्तु सन्ति
सत्सङ्गतिर्दानविचार तोषाः ।
के सन्ति सन्तोऽखिल वीतरागा
अपास्तमोहाः शिवतत्त्वनिष्ठाः ॥
जिज्ञासा – परमात्मा की प्राप्ति के क्या क्या साधन हैं ?
समाधान – सत्संग, सात्त्विक दान, परमेश्वर के स्वरूप का मनन, भजन और संतोष ।
जिज्ञासा–महात्मा कौन है ?
समाधान– सम्पूर्ण संसार से जिनकी आसक्ति नष्ट हो गयी है, जिनका अज्ञान नाश हो चुका है और जो कल्याणरूप परमात्म-तत्त्व में स्थित हैं , वही महात्मा हैं।
को वा ज्वरः प्राणभृतां हि चिन्ता
मूर्खोऽस्ति को यस्तु विवेकहीनः ।
कार्या मया का शिव विष्णु भक्तिः
किं जीवनं दोष विवर्जितं यत् ॥
जिज्ञासा– प्राणियों के लिए वास्तव में ज्वर क्या है ?
समाधान– चिन्ता ।
जिज्ञासा – मूर्ख कौन है ?
समाधान –जो विचारहीन है।
जिज्ञासा – करने योग्य क्रिया क्या है ?
समाधान – शिव और विष्णु की भक्ति ।
जिज्ञासा – वास्तव में जीवन कौन सा है।
समाधान – जो सर्वथा निर्दोष है ।
#शास्त्र_संस्कृति_प्रवाह||