बेंगलूरु। भारत की समृद्ध पहचान को स्थापित करने के लिए विगत 70 वर्षों में कोई ध्यान नहीं दिया गया । भारत क्या है, भारतीयता क्या है, भारतीय संस्कृति क्या है, हमारी राष्ट्रीय पहचान क्या है, इस चिंतन को ध्यान में रखकर अगर आजादी के बाद कार्य होता, तो आज दिखाई देने वाली अनेक समस्याएं नहीं होतीं ! यह विचार करना चाहिए कि आखिर स्वतंत्रता के बाद भारतीय विचारदर्शन को आगे क्यों नहीं बढ़ाया गया? इसका कारण साफ़ है ! उस समय का राजनीतिक और बौद्धिक नेतृत्व मानता था कि भारतीय संस्कृति और विचार के बोझ के कारण देश आगे नहीं बढ़ सकता था। वह भारतीय संस्कृति और उसके विचारदर्शन को निरर्थक मानते थे। स्वतंत्रता मिलने पर इन्हीं आत्मविस्मृत लोगों ने कहा था कि भारत एक राष्ट्र बन रहा है। भारत का इतिहास अंग्रेजी मानसिकता के इन्हीं लोगों ने लिखा। आज आवश्यकता है कि हम अपनी राष्ट्रीय पहचान को आगे रखें।
बेंगलूरु स्थित आर्ट ऑफ लिविंग संस्था के आश्रम में जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र द्वारा आयोजित ‘राष्ट्रीय विद्वत संगम’ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नंदकुमार ने उक्त उद्गार व्यक्त किये ! कार्यक्रम का आयोजन आचार्य अभिनवगुप्त की सहस्त्राब्दी वर्ष के अंतर्गत किया गया था ! इस आयोजन की सहयोगी संस्थाओं में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, श्री श्री विश्वविद्यालय, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र एवं भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् शामिल हैं।
श्री नन्द कुमार ने कहा कि पिछले वर्ष तक देश में आचार्य अभिनवगुप्त के बारे में शोधार्थियों को भी अधिक जानकारी नहीं थी। परंतु, जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र के प्रयास से देश में आचार्य अभिनवगुप्त का विचारदर्शन चर्चा का विषय बना है, जिन्होंने भारतीय ज्ञान-परंपरा को सामान्य जन तक पहुंचाने के लिए महत्त्वपूर्ण रचनाएं की हैं। इस अवसर पर आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर की विशेष उपस्थिति रही।
‘राष्ट्रीय विद्वत संगम’ के उद्घाटन समारोह में श्री नंदकुमार ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि यह विडम्बना है कि विदेशों में आचार्य अभिनवगुप्त पर काम हो रहा है, लेकिन हमने उन्हें विस्मृत कर दिया। विदेशी विद्वान अपनी दृष्टी और अपनी सीमा में रहकर भारतीय दर्शन को प्रस्तुत करते हैं। कई बिंदुओं पर विदेशी विद्वानों ने आचार्य अभिनवगुप्त को गलत ढंग से प्रस्तुत किया है। इन कारणों से भारत की ज्ञान परंपरा अपने वास्तविक रूप में प्रकट नहीं हो पाती है। हमारा दायित्व है कि आचार्य अभिनवगुप्त के संदर्भ में शोध आधारित कार्य से हम भारतीय ज्ञान पंरपरा को उसके वास्तविक रूप में दुनिया के सामने रखें।
हमें पढ़ाया जाता है कि भारत की सभ्यता सिंधू सभ्यता से प्रारंभ होती है, जबकि नवीनतम शोध यह सिद्ध करते हैं कि भारत की सभ्यता और संस्कृति सिंधू सभ्यता के पहले से है। हिंदू संस्कृति का विस्तार सिंधू नदी के आगे तक था।
श्री नंदकुमार ने कहा कि भारतीय संस्कृति वेद, तंत्र एवं योग की त्रिवेणी है और आचार्य अभिनवगुप्त इसी संगम के हिस्सा थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति के नवोत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। देश में जब-जब भारतीय संस्कृति के सामने संकट खड़ा होता है, तब-तब कोई न कोई महापुरुष सामने आता है। शंकराचार्य से लेकर स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों की लम्बी शृंखला है, जिन्होंने भारतीय ज्ञान-परंपरा को सामयिक बनाकर प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि यह दुर्भाग्य है कि आचार्य अभिनवगुप्त के विचार की जो चर्चा होनी चाहिए थी, वह हुई नहीं।
उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि एवं जम्मू-कश्मीर के उप मुख्यमंत्री डॉ. निर्मल सिंह ने कहा कि देश में भारत विरोधी ताकतें सक्रिय हैं। उनकी सक्रियता के कारण ही जम्मू-कश्मीर में शासन का राज ठीक तरह से नहीं चल पा रहा है। खासकर वहां के वर्ग को यह ताकतें अपने चंगुल में ले चुकी हैं, जो बड़ी चिंता की बात है। इसके कारण ही वहां धार्मिक कार्य प्रभावित हैं। साथ ही जम्मू-कश्मीर में सत्तासीन रहीं पिछली तीन सरकारों ने भी वहां की जनता को दिग्भ्रमित करने का काम किया है। उन्होंने बताया कि कश्मीर में अब भी युवाओं को मुख्यधारा में लाने और वहां अच्छा माहौल बनाने की असीम संभावनाएं हैं।
डॉ. निर्मल सिंह ने कहा कि आज भी आचार्य अभिनवगुप्त के जीवन पर उतना अनुसंधान नहीं हुआ है, जितना होना चाहिए। इस अवसर पर आचार्य अभिनवगुप्त सहस्त्राब्दी समारोह के अंतर्गत वर्षभर हुए कार्यक्रमों की जानकारी आयोजन समिति के सचिव रजनीश शुक्ला ने प्रस्तुत की। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री जवाहरलाल कौल भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन आशुतोष भटनागर ने किया।
उल्लेखनीय है कि यह विद्वत संगम जम्मू-कश्मीर के महान भारतीय दार्शनिक आचार्य अभिनवगुप्त की सहस्राब्दी समारोह को मनाने के लिए आयोजित इस कार्यक्रम में भारत के 29 राज्यों से प्रतिभागी शामिल हुए हैं, इनमें150 विश्वविद्यालयों/ शिक्षण संस्थानों से शोधार्थी, 70 अधिवक्ता/ न्यायमूर्ति, 50 से अधिक मीडिया शिक्षक एवं पत्रकार और64 विषय विशेषज्ञ शामिल हैं।
आचार्य अभिनवगुप्त विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक और शैव परंपरा के महानतम प्रतिपादक थे। आज से 1000 वर्ष पहले, यह कहा जाता है कि 1200 शिष्यों के साथ वे जम्मू-कश्मीर में भीरवाह की एक गुफा में गये और शिव में लीन हो गये। आज दुनियाभर में 50 विश्वविद्यालयों में आचार्य अभिनवगुप्त के ऊपर शोध कार्य हो रहा है। राष्ट्रीय विद्वत संगम में आठ विषयों पर पांच-पांच समानांतर सत्रों का आयोजन किया गया जिसमें निम्न विष्य शामिल थे।
1. जम्मू कश्मीर का कानूनी और संवैधानिक दर्जा
इतिहास में जम्मू-कश्मीर
हिमालय क्षेत्र की भू-राजनीति
आचार्य अभिनवगुप्त एवं संचार और मीडिया
आचार्य अभिनवगुप्त और भारतीय साहित्य : शास्त्रीय और लोक
आचार्य अभिनवगुप्त और सांस्कृतिक अध्ययन
आचार्य अभिनवगुप्त और सभ्यता अध्ययन
आचार्य अभिनवगुप्त और दर्शन, अध्यात्म और साधना
साभार- http://samvad.in/ से