राजपथ पर योग के प्रदर्शन के बाद भारत अब अपनी विरासत की ताकत का अहसास दूसरे मुल्कों में भी कराने की तैयारी में है। इस हफ्ते के आखिर में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की अगुवाई में भारत से 250 संस्कृत विद्वान थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक पहुंच सकते हैं। ये विद्वान इस पड़ोसी मुल्क में होने वाले विश्व संस्कृत सम्मेलन में हिस्सा लेंगे।
सुषमा स्वराज इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि होंगी। इस मौके पर वह संस्कृत में भाषण देंगी। यह इस बात का संकेत होगा कि सरकार इस कार्यक्रम को कितना तवज्जो दे रही है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब भारत सरकार ने इस कार्यक्रम को इतनी तवज्जो दी है। संस्कृत सम्मेलन पहली बार दिल्ली में 1972 में हुआ था और इसके बाद हर तीन-चार साल बाद यह दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में होता रहा है।
अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में पिछली एनडीए सरकार के दौरान भी यह सम्मेलन दो बार हुआ था। पिछली एनडीए सरकार के दौरान यह 2000 और 2003 में हुआ था। इस बार भारतीय टीम में आरएसएस की संस्था संस्कृत भारती की 30 सदस्य की टीम भी इसमें शामिल होगी। संस्कृत भारती की टीम संगठन के अध्यक्ष चंद किरण सलूजा की अगुवाई में होगी। संस्कृत भारती का मकसद इस पुरानी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है, जो करीबी तौर पर हिंदू धर्म से जुड़ी है।
संस्कृत भारती के अखिल भारतीय संगठन सचिव दिनेश कामथ को उम्मीद है कि इस बार संस्कृत को अपना सम्मान मिलेगा। उन्होंने बताया, 'इस तरह के सम्मेलन पहले भी हुए हैं। हालांकि, पहली बार संस्कृत की विद्वता का दावा करने वाले लेकिन भारतीय संस्कृति को लेकर विकृत राय रखने वाले पश्चिमी जानकारों को इस इवेंट में प्रमोट नहीं किया जा रहा है।'
विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि विदेश मंत्री निजी तौर पर इस सम्मेलन की तैयारियों का जायजा ले रही हैं और इसमें बैंकॉक स्थित भारतीय दूतावास से उन्हें काफी सहयोग मिल रहा है। बैंकॉक की महारानी और संस्कृत की विद्वान महा चकरी एस इस संस्कृत सम्मेलन की संरक्षक हैं। इसमें 60 देशों के 550 संस्कृत विद्वान हिस्सा ले रहे हैं। जर्मनी, जापान और थाइलैंड से क्रमश: 50-50 संस्कृत विद्वान इसमें हिस्सा ले रहे हैं। सम्मेलन के शुरुआती और समापन समारोहों के दौरान भारत की तरफ से दो संस्कृत नाटक-कर्णाभरम और प्रभावती पेश किए जाएंगे। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के संदेश भी प्रसारित किए जाएंगे।
साभार- इकॉनामिक टाईम्स से