विज्ञान की दुनिया से राष्ट्रपति के पद पर पहुंचने वाले डॉ. अबुल पकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम ने एक कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने से मना कर दिया था। उनका तर्क था कि उनकी कुर्सी के साथ रखी गई दूसरी कुर्सियां आकार में छोटी थीं, इसलिए वह उसपर नहीं बैठेंगे।
ऎसी कई घटनाएं हैं जो पूर्व राष्ट्रपति से जुड़ी हुई थी जो यह बताती हैं कि वह कितना सादगी पसंद थे। यही वजह है कि वह लोगों में इतने लोकप्रिय थे। आईआईटी (बीएचयू) के दीक्षांत समारोह में कलाम मुख्य अतिथि थे। स्टेज पर पांच कुर्सियां थीं और बीच वाली कुर्सी राष्ट्रपति के लिए थी। अन्य चार कुर्सियां युनिवर्सिटी के शीर्ष अधिकारियों के लिए थी।
कलाम ने जब देखा की उनकी कुर्सी अन्य कुर्सियों से बढ़ी है तो उन्होंने उसपर बैठने से मना कर दिया। उन्होंने अपनी कुर्सी पर उपकुलपति को बैठने के लिए कहा, जिन्होंने उसपर बैठने से मना कर दिया। इसके तुरंत बाद "जनता के राष्ट्रपति" के लिए दूसरी कुर्सी का इंतजाम किया गया।
एक बार पूर्व राष्ट्रपति ने वह सुझाव मानने से मना कर दिया था जब एक इमारत की दीवार पर टूटे कांच लगाने के लिए कहा गया था। उनका मानना था कि कांच चिडियों के लिए हानिकारक साबित होंगे। उस वक्त वह डीआरडीओ में कार्यरत थे। इमारत की सुरक्षा के लिए उनकी टीम ने यह सुझाव दिया था। लेकिन, कलाम का कहना था कि ऎसा करने से कोई भी चिडिया दीवार पर नहीं बैठ पाएगी।
एक बार युवाओं और किशोरों ने कलाम से मिलने के लिए समय मांगा। उन्होंने न सिर्फ मिलने के लिए समय दिया, बल्कि ध्यानपूर्वक उनके विचारों को भी सुना। जब 2002 में इस बात की घोषणा की गई की कलाम देश के अगले राष्ट्रपति होंगे, तो वह एक छोटे से स्कूल में भाषण देने चले गए। इस दौरान वह अपने साथ ज्यादा सुरक्षा भी नहीं लेकर गए। यही नहीं, जब स्कूल में बिजली चली गई तो उन्होंने स्थिति को संभाल लिया।
करीब 400 विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कलाम ने इस बात का ध्यान रखा कि बिजली कटौती के कारण कार्यक्रम में कोई असर नहीं पड़े। वह बच्चों के बीच में चले गए और उनसे कहा कि वे उन्हें घेर लें। इस दौरान उन्होने बिना माइक के विद्यार्थियों को संबोधित किया।
डीआरडीओ में कलाम के अधीन काम करने वाला एक सहयोगी जब अपने बच्चों को काम के दबाव के कारण प्रदर्शनी में नहीं ले जा पाए, तो पूर्व राष्ट्रपति खुद उन्हें वहां लेकर गए। राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार केरल के दौरे पर गए कलाम ने राजभवन में मेहमानों में जिस व्यक्ति को बुलाया वह था सड़क किनारे बैठने वाला मोची। उस मोची का एक छोटा से होटल भी था जहां कलाम राष्ट्रपति बनने से पहले अक्सर भोजन करते थे।
दस साल पहले तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की ओर से एक छोटी बच्ची की सामान्य शिकायत पर की गई कार्रवाई ने साबित कर दिया था कि डॉ. कलाम के लिए बच्चे कितने महत्वपूर्ण हैं। एक बच्ची की शिकायत पर डॉ. कलाम ने कंपनी को इस कदर आड़े हाथों लिया कि कंपनी को लिखित रूप से माफी मांगनी पड़ी और उस बच्ची के लिए नई किताब भी भेजनी पड़ी।
इलाहाबाद की अग्निपथ कॉलोनी में रहने वाली अनुश्री शुक्ला इग्नू में बीकॉम द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं। बात सन् 2004 की है, जब वह सेंट मेरीज कॉन्वेंट कॉलेज में कक्षा चार में पढ़ती थीं। उस वक्त फ्रैंक ब्रदर्स एंड कंपनी (पब्लिशर्स) लिमिटेड नई दिल्ली से प्रकाशित ‘फ्रैंक सोशल स्टडीज’ नाम की पुस्तक कोर्स में शामिल थी। उसकी बाइंडिंग काफी खराब थी।
अनुश्री और साथ पढ़ने वाली छात्राओं की किताबें फटने लगी थीं। उन्हें दिक्कत होती थी। अनुश्री ने 17 दिसंबर 2004 को कुरियर के जरिये तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. कलाम को शिकायती पत्र भेजा।
अनुश्री ने पत्र में लिखा कि पुस्तक की खराब बाइंडिंग के कारण उसे और अन्य छात्राओं को पढ़ने में दिक्कत हो रही है। अनुश्री ने सोचा भी नहीं होगा कि उसकी यह शिकायत डॉ. कलाम के लिए कितना महत्व रखती है।
एक माह बाद ही अनुश्री के घर नई पुस्तक पहुंची। साथ में डॉ. कलाम का एक पत्र था, जिसके जरिये अनुश्री को पत्र और उसकी सोच के लिए राष्ट्रपति ने धन्यवाद दिया था और अच्छे से पढ़ाई करने के लिए भी कहा था। साथ ही अभिभावकों और टीचर्स के लिए शुभकामना संदेश भी था।
इसके साथ ही राष्ट्रपति भवन से जारी वह पत्र था, जिसमें बताया गया था कि शिकायत पर कंपनी से सीधे बात की गई है। राष्ट्रपति के स्तर से हुई कार्रवाई का नतीजा था कि कंपनी ने भी अलग से पत्र भेजकर अनुश्री से माफी मांगी और इसके लिए जिम्मेदार बाइंडिंग हाउस के खिलाफ कार्रवाई की बात कही।
साथ ही सुधार का आश्वास देते हुए अनुश्री के लिए नई पुस्तक भी भेजी। दस बाद भी उसके पास इससे संबंधित हर दस्तावेज सुरक्षित रखे हैं। अनुश्री के लिए ये दस्तावेज अनमोल हैं।