न कभी चुनाव लड़ा, न कोई सदस्य। न ही कोई ठीक ठाक पता और न किसी पदाधिकारी की पहचान। फिर भी हमारे देश में वे राजनीतिक पार्टी के रूप में रजिस्टर्ड। चुनाव आयोग ने ऐसी ढाई सौ से ज्यादा राजनीतिक पार्टियों को अपनी सूची से बाहर निकाल दिया है। लेकिन सिर्फ इतने भर से क्या होगा। इन पार्टियों पर कारवाई भी होनी चाहिए।
हमारे नेता तो अजब – गजब होते ही हैं। उनकी पार्टियां भी अजब होती हैं। लेकिन उनकी पार्टियों के पते और नाम तो और भी गजब होते हैं। ये पार्टियां न चुनाव लड़ती हैं और न ही इनके कोई सदस्य भी हैं। फिर भी देश में चुनाव आयोग इनकी तीमारदारी करने को मजबूर है। लेकिन, अब चुनाव आयोग ने इस बोझ को सर से उतारकर फेंकने की तैयारी कर ली है। चुनाव आयोग ने सभी रजिस्टर्ड राजनीतिक पार्टियों की समीक्षा करने के बाद करीब ढाई सौ से ज्यादा राजनीतिक पार्टियों को डी-लिस्ट करने का फैसला किया। वैसे, तो किसी भी राजनीतिक दल का रजिस्ट्रेशन रद्द करने का फिलहाल चुनाव आयोग को अधिकार नहीं है। लेकिन इस मामले में सावधानी बरतते हुए चुनाव आयोग ने एक गली निकाल ली और जिन राजनीतिक पार्टियों ने सन 2005 से 2015 के बीच आम चुनाव या विधानसभा चुनाव में अपना एक भी उम्मीदवार नहीं उतारा था, उन 255 राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग ने अपनी सूची से निकाल दिया दिया है। चुनाव आयोग ने यह सूची केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को भी भेज दी है और इनके खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने के लिए कहा है। क्योंकि अब इन्हें रजिस्टर्ड राजनीतिक पार्टी के नाम पर कोई टैक्स छूट नहीं मिल सकती। चुनाव आयोग को यह भी शक है कि इन पार्टियों का इस्तेमाल काले धन को सफेद बनाने में किया जाता है। इस दिशा में ही इनकी जांच जरूरी है। देश की को पता होना चाहिए कि आखिर उसके भले के लिए गठित राजनीतिक पार्टियां किस तरह के गोरखधंधे करके देश को धोखा दे रही है।
चुनाव आयोग ने सभी रजिस्टर्ड राजनीतिक पार्टियों की गहन समीक्षा करने के बाद यह फैसला लिया है। दरअसल, इन डी-लिस्ट राजनीतिक पार्टियों और इनके पीछे मौजूद लोगों की पड़ताल के दौरान कई हैरान करने वाली जानकारियां सामने आई है। सारे के सारे ये दल कागजी घोड़े हैं। माना जा रहा है कि चुनाव के मौके पर बड़ कॉर्पोरेट समूहों से बड़ी राजनीतिक चंदा लेकर काले धन को सफेद करने के गोरखधंधे में ये राजनीतिक पार्टियां शामिल हैं। चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों को डी-लिस्ट करने का फैसला किया है, उनमें से एक हैं – ऑल इंडिया प्रोगेसिव जनता दल। इस पार्टी से जुड़ी अन्य कोई जानकारी मौजूद नहीं है। लेकिन इस पार्टी का रजिस्टर्ड पता है – 17, अकबर रोड, नई दिल्ली। असल में 17 अकबर रोड़ बंगले में गृहमंत्री राजनाथ सिंह रहते हैं, जो देश के गृह मंत्री के नाते उनका अधिकारिक आवास है। इसी तरह पवित्र हिंदुस्तान कड़गम नाम की एक पार्टी है, जिसका पता 11, हरीश चंद्र माथुर लेन, नई दिल्ली है। न तो इस पार्टी का कोई अस्तित्व है और न ही कोई और जानकारी। बस, पता भर है, लेकिन यह भी गलत। नई दिल्ली में 11, हरीश चंद्र माथुर लेन में तो जम्मू-कश्मीर सीआईडी का दफ्तर है। इसी तरह राष्ट्रीय युवा लोकतांत्रिक पार्टी का पता चेंबर-461, न्यू चेंबर कॉम्पलेक्स, पटियाला हाउस कोर्ट दर्ज है। इस पार्टी का पंजीकरण एडवोकेट लता गोस्वामी के छोटे भाई राधेमोहन उपाध्याय ने कराया था। लेकिन अपने छोटे भाई से लता का किसी भी तरह का कोई संबंध नहीं है। सगी बहन ने अपने भाई को फर्जी बताते हुए करते हुए राधे मोहन उपाध्याय की पार्टी को एक तरह की बहुत बड़ी जालसाजी बताया। एक और पार्टी है – राष्ट्रीय मातृभूमि पार्टी। गुड़गांव का इसका पता है। किसी डाक्टर ने इसका रजिस्ट्रेशन करवाया था। लेकिन पैसे नहीं थे, सो पार्टी कंगाल हो गई। पता किया, तो कहानी सामने आई कि एक होम्योपैथिक डॉक्टर साहब इस पार्टी के कर्ताधर्ता हैं। पैसे की कड़की में डाक्टर साहब पार्टी को भूल गए। राजनीति करने के लिए माल जरूरी है। सो, कुछ साल से पार्टी ठप है। सवा सौ करोड़ लोगो के इस देश में राष्ट्रीय मातृभूमि पार्टी कुल जमा नौ सदस्य ही बन पाए। राष्ट्रीय मातृभूमि पार्टी को बंद हुए कोई पांच – छह सल बीत गए। लेकिन चुनाव आयोग के कागजों में यह पार्टी जिंदा है। राजनीतिक दलों के पंजीकरण में फर्जीवाड़े की कहानी यहीं तक सीमित नहीं है। एक है राष्ट्रीय मानव कल्याण संघ नाम की पार्टी। चुनाव आयोग के रजिस्टर में इस पार्टी का पता दिल्ली के द्वारका का दर्ज है। यह दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के एक कर्मचारी का घर है। बीते करीब 10 साल से इस घर में रहने लोगों का कहना है कि इस पार्टी का पता उनका घर होने के कारण राष्ट्रीय मानव कल्याण संघ के नाम से यहां पत्र और पत्रिकाएं आती थीं। लेकिन कभी कोई उस पार्टी के बारे में पूछताछ करने के लिए कोई नहीं आया। डीडीए के इस कर्मचारी के पोस्ट ऑफिस में बाद में कई बार शिकायत करके इस पार्टी के नाम से पोस्ट भेजने से मना करने के बाद साल भर पहले पोस्ट ऑफिस ने राष्ट्रीय मानव कल्याण संघ पार्टी के नाम से इस पते पर डाक भेजना बंद कर दिया है। लेकिन चुनाव आयोग में पार्टी का यही पता दर्ज है।
ऐसी अनेक पार्टियां चुनाव आयोग में दर्ज हैं, जिनका कोई माई बाप तक नहीं है। और गलती से कोई माई बाप निकलकर सामने भी आ जाए, तो उस पार्टी का कोई सदस्य तक नहीं है। उंगलियों पर गिने जा सकनेवाले सदस्य मिल भी गए, तो पैसा नहीं है। कुछ पैसा मिला, तो किसी ने कोई चुनाव नहीं लड़ा। इन पार्टियों का अब, यह तो सीन है। फिर इन्हें डी-लिस्ट न किया जाए तो क्या किया जाए। चुनाव आयोग ने ज काम अब किया ह, वह उसे हर साल करना चाहिए, ताकि राजनीतिक भ्रष्टाचार की इस गंगोत्री का कुछ तो सफाया हो।
हमारे देश में दरअसल, बहुत सारे राजनीतिक दल है, जिनका अता, पता, ठिकाना जहां का है, वहीं उनका नामोनिशान तक नहीं है। कोई सक्रिय है, तो कोई बरसों से बंद पड़ा है। चुनाव आयोग द्वारा डी-लिस्ट करने के लिए जिन पार्टियों की सूची बनाई गई है, उन कागजी पार्टियों में सबसे ज्यादा 52 पार्टियां दिल्ली में हैं। इसके बाद नंबर आता है उत्तर प्रदेश का, जहां कुल 41 कागजी पार्टियां हैं। इसी तरह से तमिलनाडु में कुल 39 और महाराष्ट्र में 24 पार्टियां फर्जीवाड़े के बूते पर खड़ हैं, जिनको चुनाव आयोग ने निशाने पर ले लिया है। हर किसी खास काम को करने के लिए जिस तरह स किसी को भी अतिरिक्त ताकतों का इस्तेमाल करना पड़ता है। उसी तरह चुनाव आयोग ने भी संविधान के अनुच्छेद – 324 के तहत प्रदत्त अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग करते हुए कुल 255 राजनीतिक पार्टियों को रजिस्टर्ड पार्टियों की सूची से बाहर कर दिया है। अब इनके खिलाफ जांच भी की जानी चाहिए कि असल में इन राजनीतिक पार्टियों को उद्देश्य क्या था। जब चुनाव लड़ने, उसमें खड़े होने और पार्टी के खर्चे उठाने की ही क्षमता नहीं थी, तो मतलब साफ है कि किसी और का मतलब साधने के साधन बने इन दलों पर गाज तो गिरनी ही थी। जरूरत यह भी है कि इन पार्टियों के कर्ताधर्ताओं की कमाई के जरिए की जांच भी की जाए, तभी पता चलेगा कि हमारे देश में राजेता, राजनीति और राजनीतिक पार्टियों के नाम पर किस किस तरह के गोरखधंधे चलते हैं !
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)