‘मैं 202 चिंतरंजन एवेन्यू में तीन कमरे के फ्लैट में पैदा हुआ और पला। हम पांच लोग थे और केवल एक ही शौचालय था। मुझे आज भी याद है वह त्रासद दौर जब हर सुबह हम पांचों शौचालय के बाहर पंक्तिबद्घ खड़े अपनी बारी की प्रतीक्षा करते थे। अब ग्रेटर कैलाश के हमारे घर के हर कमरे में शौचालय है। मैंने वो दिन देखे हैं। मुझे याद है कैसे मैंने घर छोड़ दिया था क्योंकि पिता चाहते थे कि मैं परिवार के कारोबारी काम में हाथ बंटाऊं। मेरे पास कुछ नहीं था। जब मैं 28 साल का था तो मैंने पहली बार अपने लिए सूट सिलवाया। वे 10 साल बहुत संघर्ष के थे इसलिए मैं किसी चीज से नहीं डरता। सबसे बुरा क्या हो सकता है? मैं उन्हीं दिनों में वापस लौट जाऊंगा। तो क्या हुआ? मैं उन दिनों में भी तो जी ही चुका हूं।’ ऐसा लगता नहीं कि ये शब्द ग्लैमर की जगमग से घिरे पुराने किंगमेकर और राजनीतिक संभावनाओं के जनक अमर सिंह की जुबान से निकल रहे हैं। सिंह अपनी दूसरी राजनीतिक पारी के लिए तैयार हैं।
मुलायम सिंह यादव के जोर देने पर वह दोबारा राज्यसभा में जा रहे हैं और इस तरह वह पुन: राजनीति के केंद्र में हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस के मित्र और समर्थक के रूप में की। वह माधवराव सिंधिया के खास सहयोगी थे लेकिन अन्य नेताओं की सफलता के साये में थे।
हिंदी प्रदेशों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के शहर कस्बों में सन 2000 के दशक के आरंभ में कारोबारियों और उद्यमियों ने जमकर डीमेट अकाउंट खोले। उनके लिए सिंह एक प्रतीक हैं कि क्या कुछ हासिल किया जा सकता है। इन इलाकों में उनको ऐसे व्यक्ति के रूप में जाना जाता है जो कोई भी काम बना सकता है। उनका काम करने का तरीका सामंती है लेकिन जरूरत पडऩे पर वह पर्याप्त उदारता बरतते हैं।
सिंह कभी अपनी क्षमताओं को लेकर कम मुखर नहीं रहे। उनका पहला यादगार सौदा वाम ऑर्गेनिक्स के लिए था जहां वह काम करते थे। वह कहते हैं, ‘अल्कोहल आधारित रासायनिक उद्योग तब तक उछाल पर थे जब तक मैं वहां था।’ उत्तर प्रदेश सरकार इस कारोबार पर सख्त नियंत्रण रखती है। ऐेसे माहौल में उनको कारोबारी सफलता कैसे मिली? वह कहते हैं कि ऐसा नौकरशाही और राजनीतिक नेटवर्किंग के जरिये हुआ।
तब से अब तक उन्होंने लंबा सफर तय किया है। सन 1980 के दशक में सिंह को कांग्रेस पार्टी से धोखे का सामना करना पड़ा। उन्हें मध्य प्रदेश से राज्य सभा सीट देने का वादा किया गया था जो अधूरा रहा। वह समाजवादी पार्टी में इसलिए आए क्योंकि उनके पास सपा के लिए कुछ था और बदले में सपा उन्हें कुछ दे सकती थी। मुलायम सिंह ने उनकी खूबी पहचान ली थी परिणामस्वरूप उन्होंने कभी पार्टी के लिए सिंह के किसी काम में दखलंदाजी नहीं की।
बतौर राजनेता उनका जन्म देश में आर्थिक सुधारों के दूसरे दौर के साथ हुआ। सन 1990 के दशक के आखिर में देश में अस्थिर सरकारें बनीं। आधे अधूरे सुधारों के बीच अनूठे अवसर बन रहे थे। सिंह ने यादव को इनका लाभ लेना सिखाया। लेकिन उत्तर प्रदेश में उनकी राजनीति जारी रही। जब सपा वहां सत्ता में आई तो सिंह ने बहुत उत्साह और जोरशोर से एक प्रशासनिक ढांचा जारी किया जो उनके मुताबिक प्रदेश की तकदीर बदलने वाला था। उन्होंने व्यवस्था के आधुनिकीकरण की कोशिश की। एकल खिड़की प्रणाली, निजीकरण, उत्तर प्रदेश विकास परिषद आदि को उनकी पहल माना जाता है। लेकिन ये उपाय कारगर नहीं रहे। अत्यधिक हस्तक्षेप, तात्कालिक राजनीतिक जरूरत, उत्तर प्रदेश के विरोधाभास और दूरगामी दृष्टिï न होने के कारण ऐसा हुआ। सन 2003 में मुलायम सिंह यादव ने बतौर मुख्यमंत्री 24 सरकारी चीनी मिलों का निजीकरण किया लेकिन ये प्रकरण विवाद में आ गया क्योंकि सभी मिलें एक खास औद्योगिक घराने को सौंपी गईं जो अब देश का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक बन चुका है। सिंह सहमत नहीं होते लेकिन उत्तर प्रदेश एक ध्वंसावशेष बनकर रह गया क्योंकि सिंह के चलते शुरू हुआ मुलायम सिंह का आधुनिकीकरण से शुरु हुआ कार्यकाल आखिर में यादव परिवार की राजनीति और कुप्रबंधन के कारण थम गया।
इस बीच सिंह ने अपना दायरा बॉलीवुड सितारों तक फैला लिया। एक वक्त था जब अमिताभ बच्चन उनको अपना भाई बताते थे। खबरों के मुताबिक बच्चन परिवार के प्रोडक्शन हाउस एबीसीएल को उबारने में उनकी भूमिका थी। हालांकि सिंह इससे इनकार करेंगे लेकिन धीरे-धीरे उनकी रुचि भी उत्तर प्रदेश में बदलाव लाने में खत्म हो गई।
समाजवादी पार्टी की राजनीति के शक्तिशाली केंद्र जिनमें आजम खान, जनेश्वर मिश्र और बेनी प्रसाद वर्मा ने यादव से उनकी नजदीकी और राष्ट्री्य राजनीति में उनके उभार का विरोध करना शुरू कर दिया। सिंह ने माकपा नेता हरकिशन सिंह सुरजीत के जरिये मुलायम सिंह को सोनिया गांधी से मिलवाया। सपा और कांग्रेस के बीच तब तक रिश्ते ठीक नहीं थे। इस बीच वोट के बदले नकदी घोटाले में सिंह का नाम तेजी से उछला। इस मामले में भाजपा के तीन सांसदों ने आरोप लगाया था कि कथित तौर पर तत्कालीन संप्रग सरकार को बचाने के लिए उन्हें पैसे दिए गए। उस वक्त माकपा कांग्रेस का समर्थन कर रही थी लेकिन भारत अमेरिका नाभिकीय समझौते के मुद्दे पर वह अपना समर्थन वापस लेने वाली थी। लगभग उसी समय सिंह ने इस मुद्दे पर सरकार की मदद के लिए सपा को मना लिया।
बहरहाल, कुछ भी साबित नहीं हुआ लेकिन इस बीच अमर सिंह के रिश्ते मुलायम सिंह और अमिताभ बच्चन दोनों से खराब हो चुके थे। अब वह राजनीति के बियाबान में अकेले थे। अब जबकि उनकी एक और राजनीतिक पारी शुरू होने वाली है तो यकीनन राज्य सभा उनके चलते और अधिक रोचक नजर आएगी।
साभार- http://hindi.business-standard.com/ से