‘अमृत बाजार पत्रिका’ एक ऐसा अखबार जिसकी गणना देश के सबसे पुराने अखबारों में की जाती है। इसका पहला प्रकाशन 20 फरवरी 1868 को हुआ था और आज यह अखबार अपने 150 वर्ष पूरे कर रहा है। अंग्रेजी सरकार में किसी राष्ट्रवादी अखबार का निकालना उन दिनों हिम्मत की बात थी। इतना ही नहीं अंग्रेजी सरकार जब इस बंगाली अखबार के दमन के लिए एक कड़ा प्रेस कानून लाई तो इसके प्रकाशकों ने रातों रात इसे बंगाली से अंग्रेजी अखबार में तब्दील कर दिया था। आज ये बंगाली में तो निकलता ही है, अंग्रेजी भाषा में भी निकलता है।
इस अखबार की स्थापना दो भाइयों शिषिर घोष और मोतीलाल घोष ने की थी। उनकी मां का नाम अमृतमयी देवी और पिता का नाम हरिनारायण घोष था जो एक धनी व्यापारी थे। यह पत्रिका पहले साप्ताहिक रूप में आरम्भ हुई। पहले इसका सम्पादन मोतीलाल घोष करते थे जिनके पास विश्वविद्यालय की डिग्री नहीं थी। बाद में इसके सम्पादन की जिम्मेदारी दूसरे बेटे शिशिर कुमार घोष ने संभाली। यह पत्र अपने ईमानदारी व तेज-तर्रार रिपोर्टिंग के लिए प्रसिद्ध था। उस वक्त उनका प्रतिद्वंदी अखबार था ‘बंगाली’, जिसे उस वक्त बंगाल के दिग्गज नेता सुरेन्द्र नाथ बनर्जी निकालते थे।
अमृत बाजार पत्रिका इतना तेजस्वी समूह था कि भारत के राष्ट्रीय नेता सही सूचना के लिए इस पर भरोसा करते थे और इससे प्रेरणा प्राप्त करते थे।
बताया जाता है कि 1878 में जब अंग्रेजी सरकार देसी अखबारों को कुचलने के लिए देसी पत्र अधिनियम लेकर आई तो रातों रात अमृत बाजार पत्रिका को 21 मार्च 1878 से अंग्रेजी के अखबार में बदल दिया गया था। 19 फरवरी 1891 से ये पत्रिका साप्ताहिक की जगह दैनिक बन गई। सन 1919 में दो सम्पादकियों के लिखने कारण अंग्रेज सरकार ने इस पत्रिका की जमानत राशि भी जब्त कर ली थी। ये दो सम्पादकीय थे- ‘टु हूम डज इंडिया बिलांग?’ (19 अप्रैल) और ‘अरेस्ट ऑफ मिस्टर गांधी : मोर आउटरेजेज?’ (12 अप्रैल)।
1928 से लेकर 1994 तक जीवनपर्यन्त तुषार कान्ति घोष इसके सम्पादक रहे। उनके कुशल नेतृत्व में पत्र ने अपना प्रसार बढ़ाया और बड़े पत्रों की श्रेणी में आ गया था। इस समूह ने 1937 से ‘युगान्तर’ नामक बंगला दैनिक भी निकालना आरम्भ किया। बहुत अधिक ऋण में दब जाने और श्रमिक आन्दोलन के चलते 1996 से इसका प्रकाशन बन्द हो गया था, लेकिन 2016 के अंत में इसका प्रकाशन पुनः प्रारम्भ किया गया था।
साभार- http://samachar4media.com/ से