भारत में जैन धर्म के अनेक अतिशय क्षेत्र हैं। इनके प्रति जैनियों की पूरी श्रद्धा हैं और वे इनके दर्शन के लिए नियमित जाते रहते हैं। न केवल जैनियों वरन पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं। विस्मयकारी कलात्मक मन्दिर पर्यटन केंद्र भी बन गए हैं। यहां आपको राजस्थान के प्रमुख प्राचीन जैन तीर्थों की जानकारी दे रहे हैं।
श्रीशांतिनाथ झालरापाटन- श्रीशांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, झालरापाटन, जिला झालावाड–झालावाड़ जिला मुख्यालय से 8 किमी दूर झालरापाटन शहर के मध्य स्थित है। उन्नत शिखर वाला भगवान शांतिनाथ जी का भव्य मंदिर के गर्भगृह में 12 फुट की शांतिनाथ जी खडगासन प्रतिमा विराजमान है। मंदिर के द्वार पर दो विशाल श्वेत हाथी बने हैं। मंदिर के तीनों ओर बरामदों में 15 वेदियां बनी हैं। झालरापाटन में 4 जैन मंदिर और बने हैं। झालावाड़ एवं झालरापाटन मार्ग के मध्य में किले की तलहटी में जूनी नसियां में अतिशय क्षेत्र पाश्र्वगिरी का निर्माण किया गया है।
चांदखेड़ी (खानपुर)- श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र चांदखेड़ी, पोस्ट खानपुर, जिला झालावाड़– झालावाड़ जिले में ही झालावाड़ से 35 किमी पर यह क्षेत्र स्थित है। यहां मंदिर में भगवान आदिनाथ की भव्य लाल पाषाण की साढ़े छह फीट प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा विशाल तलघर में स्थापित है। तलघर के ऊपर भगवान महावीर की मूर्ति स्थापित है, जिस पर 55 जिनबिम्ब उत्कीर्ण हैं। यहां गंधकुटी, 5 वेदियां तथा कई छोटी-छोटी वेदियां बनी हैं तथा पूरे मंदिर परिसर में 900 से अधिक जिनबिम्ब स्थापित हैं। मंदिर के पीछे के हिस्से में सुंदर समोशरण मंदिर बनाया गया है। मूल मंदिर के सामने मान स्तम्भ स्थापित है।
केशवरायपाटन- श्री मुनि सुव्रतनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, केशवरायपाटन, जिला बून्दी– बून्दी जिले में जिला मुख्यालय से 45 किमी पर स्थित चम्बल नदी के किनारे केशवराय पाटन अतिशय क्षेत्र प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ भी है। यहां क्षेत्र पर भगवान मुनि सुव्रतनाथ की प्रतिमा तलघर में स्थापित की गई है। गर्भगृह 16 स्तम्भों पर बना है तथा मूल वेदी पर शिखर बनाया गया है। यहां धर्मशाला में ठहरने व भोजन की व्यवस्था है। यह क्षेत्र कोटा से रंगपुर होते हुए नदी मार्ग से 10 किमी तथा सड़क मार्ग से 20 किमी है। यहां केशवराय जी का उन्नत शिखर वाला भव्य मंदिर दूर से ही दिखाई देता है। यह मंदिर अपनी स्थापत्य एवं मूर्तिकला के कारण दर्शनीय है। यहां कार्तिक पूर्णिमा पर प्रतिवर्ष भव्य मेले का आयोजन स्थानीय नगर पालिका द्वारा किया जाता है।
चमत्कारजी (सवाईमाधोपुर)- श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, चमत्कारजी, सवाईमाधोपुर- सवाई माधोपुर के समीप आलनपुर ग्राम में भगवान आदिनाथ की स्फटिक मणि की अतिशय मूर्ति चमत्कारजी के नाम से प्रसिद्ध है और इसी कारण इसका नाम चमत्कारजी पड़ा। मुख्य मंदिर के प्रमुख द्वार पर लाल छतरी बनी है। सवाई माधोपुर में 8 भव्य जिनालय हैं, जहां सैंकड़ों प्राचीन मूर्तियां हैं। क्षेत्र से 15 किमी दुर्ग में 2000 वर्ष प्राचीन भगवान संभवनाथ की प्रतिमा है।
श्रीमहावीरजी- श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, श्रीमहावीरजी, तहसील हिण्ड़ौन, जिला करौली–करौली जिले की हिण्डौन तहसील में क्षेत्र पर 5 मंदिर बने हैं। कटला के मध्य मूल मंदिर ऊंचे प्लेटफार्म पर स्थित है, जिसका मुख्य द्वार विशाल है और सामने मान स्तम्भ स्थापित है। भगवान महावीर की लाल पत्थर की पाषाण प्रतिमा स्थापित है। गर्भगृह के आसपास की वेदियों में अनेकों मूर्तियां लगी हैं। मुख्य मंदिर के तलघर में कीमती मूर्तियां हैं। मंदिर के पीछे भगवान की चरण छतरी है। भारतवर्ष में प्रसिद्ध इस क्षेत्र पर महावीर जयंती एवं निर्वाण दिवस विशेष समारोह के साथ आयोजित किए जाते है। यहां देश का प्रसिद्ध शोध संस्थान जैन विद्या संस्थान संचालित है। यहां दीपावली के अवसर पर देश के कोने-कोने से लोग निर्वाण लाडू चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं। श्रीमहावीर जी स्टेशन पर दर्शनार्थियों के लिए बसें उपलब्ध रहती हैं। यह स्थल दिल्ली-मुम्बई रेल मार्ग पर श्रीमहावीर जी रेलवे स्टेशन से 7 किमी है। श्रीमहावीर जी जयपुर से 140 किमी, आगरा से 165 किमी, दिल्ली से 262 किमी, मथुरा चैरासी से 145 किमी है।
तिजारा- श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र तिजारा (देहरा) जिला अलवर–यह क्षेत्र दिल्ली-राजस्थान की सीमा पर धारूहेड़ा से भिवाड़ी होते हुए 38 किमी पर है। अलवर से यह क्षेत्र 55 किमी है। दिल्ली से 113 किमी, भरतपुर से 115 किमी, श्रीमहावीर जी से 200 किमी व जयपुर से 151 किमी है। यहां सुविधायुक्त धर्मशाला है, जहां सशुल्क नियमित भोजनशाला संचालित है। यहां भगवान चन्दाप्रभू की विशाल मूर्ति स्थापित है। मंदिर का बाहरी शिल्प दर्शनीय है। यहां तीन मंदिर बने हुए हैं, जिनमें श्री पार्श्वनाथ जी का भी महत्वपूर्ण मंदिर है।
विराट नगर- श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन नसियां अतिशय क्षेत्र विराट नगर, जिला अलवर –यह क्षेत्र अलवर से 74 किमी, सरिस्का से 27 किमी तथा तिजारा से 110 किमी दूर स्थित है। यहां दो मंदिर बने हैं। एक मंदिर का विशाल द्वार फतेहपुर सीकरी की कला के समान है तथा यहां मुगलकाल में सिक्के ढाले जाते थे। विराट नगर महाभारत कालीन मत्स्य देश की राजधानी रहा। यह क्षेत्र शुभचंद स्वामी की तपोभूमि एवं मुनि विमलसूरी जी जन्मस्थली रही है। विराट नगर मंे जैन मंदिरों के साथ-साथ बौद्ध एवं हिन्दु मंदिर भी बने हैं। यहां ठहरने के लिए धर्मशाला की सुविधा उपलब्ध है।
चूलगिरी (खानियांजी)- श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री पाश्र्वनाथ, चूलगिरी, आगरा रोड, जयपुर–जयपुर से 5 किलोमीटर आगरा रोड पहाड़ी पर यह क्षेत्र स्थित है। जयपुर रेलवे स्टेशन से 11 किमी तथा बस स्टेण्ड से 10 किमी दूर है। क्षेत्र में एक मंदिर तथा तलहटी में राणाजी की नसियां बनी है। नसियां की स्वर्ण कारीगरी दर्शनीय है। यहां पार्श्वनाथ की 7.5 फीट ऊंची प्रतिमा के साथ-साथ भगवान महावीर की 22 फुट प्रतिमा तथा एक गुफा मंे चैबीसी एवं रत्न प्रतिमाओं का जिनालय है। पहाड़ी पर होने से आसपास का वातावरण मनोरम है। यहां ठहरने व भोजन की व्यवस्था के लिए धर्मशाला उपलब्ध है।
चन्द्रगिरी बैनाड़- श्रीदिगम्बर जैनचन्द्रप्रभू अतिशय क्षेत्र चन्द्रगिरी, ग्राम बैनाड़, तहसील आमेर, जिला जयपुर–
इस क्षेत्र में चन्दाप्रभू के साथ-साथ बाहुबली की मूर्ति स्थापित की गई है। यह क्षेत्र जयपुर से झोटवाड़ा होते हुए 15 किमी पर स्थित है। (सम्पर्क: 0142-234802)
संधिजी सांगानेर- श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र संधिजी, सांगानेर, जिला जयपुर– यहां क्षेत्र पर 8 मंदिर बने हैं। खजुराहो शैली के शिखर वाले मंदिर में आदिनाथ भगवान की भव्य एवं कलात्मक प्राचीन प्रतिमा है। यहां एक वानप्रस्थ आश्रम भी बना है। यह स्थान जयपुर स्टेशन से 15 किमी, सांगानेर 5 किमी व जयपुर हवाई अड्डे 2.5 किमी है।
श्री पदमपुरा (बाड़ा)- श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पदमपुरा, जयपुर– पदमपुरा के जैन मंदिरों में मूल खड़ी प्रतिमा पदमप्रभू भगवान की है। गोलाकार मंदिर अपने प्रकार का अनूठा मंदिर है। शिखर सहित मंदिर 140 फीट ऊंचा है। मंदिर परिसर में ही धर्मशाला व भोजनशाला बने हैं। दशहरे के समय यहां बड़े पैमाने पर मेला आयोजित किया जाता है। मंदिर के विशाल दरवाजे में बसें व कारें मंदिर तक पहुंचती हैं। यह क्षेत्र सवाई माधोपुर-जयपुर रेलवे मार्ग पर शिवदासपुरा रेलवे स्टेशन से 6 किमी, जयपुर से 34 किमी, सांगानेर से 22 किमी है। समीपवर्ती स्थलों में मेहंदवास, सांखना एवं सरवाड़ के जैन मंदिर दर्शनीय हैं।
नारैली (अजमेर)- श्री दिगम्बर जैन ज्ञानोदय तीर्थ, नारौली, जिला अजमेर– अजमेर शहर से ब्यावर-किशनगढ़ मार्ग पर 10 किमी है। मंदिर का विशाल परिसर पहाड़ी पर दूर से ही नजर आता है। क्षेत्र में 30 मंदिर बने हैं। यहां भगवान आदिनाथ का भव्य जिनालय परिसर का निर्माण आर.के.मार्बल्स, किशनगढ़ द्वारा कराया गया है। यहां आकर्षक फव्वारे व लाईटें लगाई गई हैं। मंदिरों का स्थापत्य जैन कला के अनुरूप है तथा मूर्ति शिल्प दर्शनीय है। इस ज्ञानोदय तीर्थ का नामकरण आचार्य ज्ञानसागर जी के नाम पर किया गया है। यहां धर्मशाला, संत निवास, आर्यिका भवन व वृद्धाश्रम संचालित हैं। मंदिर व धर्मशाला एक ही परिसर में हैं, जहां भोजनशाला भी बनाई गई है। यह क्षेत्र किशनगढ़ से 25 किमी, नसीराबाद से 25 किमी एवं पुष्कर से 25 किमी है। समीपवर्ती क्षेत्रों में पुष्कर में दो जैन मंदिर तथा नसीराबाद में आचार्य ज्ञानसागर जी समाधि स्थल है। समीप में प्राचीन समय में जैनियों का प्रमुख नगर नरेना है, जहां खुदाई में 11 मूर्तियां प्राप्त हुई थे, जिन्हें स्थानीय महावीर स्वामी मंदिर में स्थापित कर दिया गया है। अजमेर से 135 किमी पर लूणंवा में जैन मंदिर व धर्मशाला है। लूणंवा से कुचामन एवं डीडवाना होकर लाडनूं पहुंचा जा सकता है। लाडनूं में प्रसिद्ध जैन विश्व भारती संस्थान में दिगम्बर मंदिर में सरस्वती की मूर्ति आकर्षक एवं दर्शनीय है।
बघेरा- श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बघेरा, तहसील केकड़ी, जिला अजमेर– यहां आमने-सामने दो मंदिर हैं। यहां जमीन से 20 सेमी से 3 मीटर की तक की अनेक प्रतिमाएं मिली हैं। शांतिनाथ मंदिर में मूलनायक शांतिनाथ जी की साढ़े आठ फुट की प्रतिमा के साथ अनेक मूर्तियां हैं। अनेक कलात्मक मूर्तियों को एक कमरे में रखा गया है। शांतिनाथ मंदिर के सामने आदिनाथ मंदिर स्थित है, जिसमें त्रिकाल चैबिसी का निर्माण किया गया है। यहां आवास व भोजन व्यवस्था उपलब्ध है। यह क्षेत्र देवली-अजमेर मार्ग पर 19 किमी पर है। अजमेर से यह क्षेत्र 86 किमी है।
आवां (दूनी)- श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र सुदर्शनोय, आवां, जिला टोंक– क्षेत्र पर एक मंदिर व गांव में दो प्राचीन मंदिर हैं। क्षेत्र पर बने मंदिर में 7 फीट ऊंची सहस्त्रफणी पाश्र्वनाथ, इतनी ही ऊंचाई की आदिनाथ तथा 11 फीट ऊंची शांतिनाथ की प्रतिमाएं ऊंचे प्लेटफार्म पर विशाल हाॅल में स्थापित की गई हैं। हाॅल का भव्य द्वार 25 फुट ऊंचा है। इसके तीन तरफ त्रिकाल चैबिसी का निर्माण कराया गया है। यहां ठहरने की व्यवस्था है तथा आग्रह पर भोजन सुविधा उपलब्ध है। गांव में शांतिनाथ भगवान का प्राचीन मंदिर बना है। यह क्षेत्र जयपुर-कोटा राष्ट्रीय राजमार्ग पर टोंक से 48 किमी एवं देवली से 36 किमी है।
चंवलेश्वर पाश्र्वनाथ- श्री चंवलेश्वर पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र चंवलेश्वर (कोटा-मांडलगढ़-कछोला होकर एनएच-27 पर 140 किलोमीटर पर)– पर तीन मंदिर हैं, जिनमें से दो मंदिर पहाड़ी पर बने हैं। पहाड़ पर बने मंदिर में पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित है। यह क्षेत्र देवली से 66 किमी, मांडलगढ़ से 41 किमी तथा केकड़ी से 60 किमी है।
बिजौलिया पार्श्वनाथ -श्री दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र बिजौलिया, जिला भीलवाड़ा– भीलवाड़ा जिले में स्थित क्षेत्र पर 9 मंदिर एवं 2 मान स्तम्भ हैं। क्षेत्र पर प्राचीन देवालय अत्यन्त कलात्मक हैं तथा मूर्ति शिल्प दर्शनीय है। यहां पाश्र्वनाथ मंदिर के अलावा 4 कोनों पर 4 देवरियां हैं। भव्य चैबिसी एवं समोशरण रचना भी बनी है। गर्भगृह में पंचायतन शैली में निर्मित है। राष्ट्रीय राजमार्ग 27 के समीप रेवा नदी के तट पर विश्व का सबसे बड़ा शिलालेख है, जिसमें 292 श्लोक अंकित हैं। नगर में 3 मंदिर व एक धर्मशाला है। यह क्षेत्र बून्दी से 45 किमी, भीलवाड़ा से 85 किमी, चंवलेश्वर से 65 किमी, चित्तौड़गढ़ से 251 किमी है। कोटा-चित्तौड़-बून्दी से नियमित बस सेवा उपलब्ध है।
अणिन्दा पाश्र्वनाथ- श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र अणिन्दा पाश्र्वनाथ, जिला उदयपुर– चित्तौड़गढ़-उदयपुर मार्ग पर उदयपुर से 40 किमी पहले भटेश्वर गांव में होते हुए वरडदा से मोडी होते हुए मोडी से 10 किमी पर यह क्षेत्र स्थित है। क्षेत्र पर 6 मंदिर, एक मान स्तम्भ, नंदीश्वर मंदिर एवं धर्मशाला विशाल परिसर में स्थित हैं। यहां कैलाश पर्वत, पदमावती सुमेरू पर्वत, 72 जिनालय, पद्म सरोवर पाश्र्वनाथ आदि दर्शनीय स्थल हैं। यह क्षेत्र मुनिश्री कंुथसागर जी महाराज की प्रेरणा से विकसित हो रहा है।
बमोत्तर शांतिनाथ- श्री जैन अतिशय क्षेत्र शांतिनाथ, पोस्ट बमोत्तर (सिद्धपुर), जिला चित्तौड़गढ़– यह क्षेत्र चित्तौड़गढ़ जिले में चित्तौड़ से 110 किमी पर है। यहां शांतिनाथ जी का मंदिर बना है, जिसका भव्य द्वार बनाया गया है। शांतिनाथ भगवान की 1.5 मीटर की प्रतिमा स्थापित की गई है। प्रतापगढ़ जैन बाहुल्य प्राचीन शहर है, जहां श्वेताम्बरों के 9 एवं दिगम्बरों के 7 भव्य एवं विशाल मंदिर स्थापित हैं। यह स्थल उदयपुर से 80 किमी, डूंगरपुर से 55 किमी पर है।
ऋषभदेव (केसरियाजी)- श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र ऋषभदेव (केसरियाजी), जिला उदयपुर– क्षेत्र में 4 मंदिर व एक चैत्यालय निर्मित है। मुख्य मंदिर के गर्भगृह में पद्मासन मुद्रा में श्याम वर्ण की ऋषभदेव जी की प्रतिमा स्थापित है। गर्भगृह के तीन ओर मंदिरों पर 52 शिखर हैं। इस मूर्ति को लोग चमत्कारिक मानकर भी पूजते हैं। मूर्ति पर केसर चढ़ने के कारण इसे केसरियाजी भी कहा जाता है। यह क्षेत्र उदयपुर से अहमदाबाद मार्ग पर 55 किमी, डूंगरपुर से 28 किमी, अहमदाबाद से 190 किमी तथा खैरवाड़ा से 16 किमी है।
नागफणी-पाश्र्वनाथ- श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र नागफणी, पोस्ट मदार, तहसील एवं जिला डूंगरपुर–क्षेत्र पर भगवान पाश्र्वनाथ मंदिर है। गर्भगृह के आगे मण्डप बना है। सप्तफणी पाश्र्वनाथ के तीन फण खंडित हैं। तपोवन जैसा यह क्षेत्र अत्यन्त रमणीक और श्रृद्धा का केन्द्र है। यह क्षेत्र उदयपुर-अहमदाबाद मार्ग पर खैरवाड़ा से 12 किमी पर बिछीवाड़ा कस्बे से 10 किमी है। यहां धर्मशाला व भोजनशाला की व्यवस्था उपलब्ध है। यह क्षेत्र डूंगरपुर जिले में डूंगरपुर से 35 किमी है।
अरथूनिया (अरथूना)-श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र अरथूना, जिला बांसवाड़ा– बांसवाड़ा जिले में स्थित यह क्षेत्र एक सुरम्य पहाड़ी पर स्थित है, जहां जैन मंदिर बना है। यहां अनेकों खडगासन प्रतिमाएं खुदाई में मिली हैं। अरथूना के प्राचीन एवं ऐतिहासिक क्षेत्र में कई हिन्दू व जैन मंदिरों के अवशेष मिले हैं। चन्दाप्रभू का एक विशाल मंदिर भी यहां स्थित है। यह क्षेत्र बांसवाड़ा से परतापुर-गढ़ी होते हुए 55 किमी है।
नौगामा नसियां- श्री दिगम्बर नसियांजी नौगामा, जिला बांसवाड़ा– बांसवाड़ा जिले में बांसवाड़ा से 24 किमी पर स्थित इस क्षेत्र पर दो मंदिर हैं। एक नौगामा में, दूसरा नसियां में। मंदिर प्राचीन एवं कलात्मक हैं। नसियां क्षेत्र में कलात्मक फव्वारे व आकर्षक उद्यान भी विकसित किए गए हैं।
अन्देश्वर पार्श्वनाथ-श्री अन्देश्वर पार्श्वनाथ- अतिशय क्षेत्र अन्देश्वर, जिला बांसवाड़ा– बांसवाड़ा जिले में छोटी सी पहाड़ी पर स्थित दो मंदिर हैं और दोनों ही मंदिर भगवान पाश्र्वनाथ को समर्पित हैं। हाॅल में चैबिसी, मान स्तम्भ व कांच मंदिर का निर्माण किया गया है। समीप में एक पार्क व धर्मशाला बनाई गई है। चमत्कारों में विश्वास रखने वाले लोगों की आस्था का यह प्रमुख स्थल है। यह क्षेत्र बांसवाड़ा से 30 किमी पर है।