सर्वप्रथम हम आयुर्वेद को लेकर उत्पन्न भ्रांतियों के काल को 3 भागों में बाँटते हैं और उस पर चर्चा करते हैं:
1. मुग़ल काल।
2. ब्रिटिश काल।
3. मल्टीनेशनल कंपनियों का काल।
1. मुग़ल काल
मुग़लों के शासन काल में यूनानी हकीमों ने मुस्लिम रोगियों को आयुर्वेद से दूर कर यूनानी की तरफ लाने के लिए यह प्रचारित किया कि इसमें गौमूत्र मिला होता है, जबकि आयुर्वेद की 100 में से मात्र 2 या 3 दवाओं में ही गौमूत्र का प्रयोग किया जाता है तथा चूर्ण तो सभी उससे मुक्त होते हैं। इस भ्रांति का अब भी अधिकांश मुस्लिमों पर प्रभाव है तथा इसी कारण वे आयुर्वेद से दूरी बनाए हुए हैं।
2. ब्रिटिश काल
इस काल में अंग्रेज़ों ने कई भ्रांतियाँ हम भारतीयों में रोपीं। बहुतसी राजनैतिक थीं, लेकिन आयुर्वेद के बारे में एक भ्रांति बनाई गई कि ये दवाएँ बे-असर होती हैं तथा यदि असर भी करती हैं तो काफी समय के बाद। इन भ्रांतियों को फैलाकर वे त्वरित असरकारक अंग्रेज़ी दवाओं को भारत में स्थापित कर गए।
3. मल्टीनेशनल कम्पनियों का काल
जैसे-जैसे लोगों में शिक्षा का स्तर बढ़ा, आयुर्वेद को लेकर लोगों की विचारधारा बदली और बहुत बड़ी संख्या में लोग इससे जुड़ने लगे। इससे भारत की अर्थव्यवस्था में उछाल आया तथा अंग्रेज़ी दवाओं से लोग दूर होने लगे। ऐसे में मल्टीनेशनल कम्पनियों ने मीडिया के साथ मिलकर आयुर्वेद को बदनाम करना शुरू किया तथा वे भ्रम फैलाए जो कि इनकी कमज़ोरियाँ थीं जैसे ‘ये दवाएँ किडनी खराब करती हैं’ को इन्होंने आयुर्वेद के साथ भी जोड़ दिया। लोग तब भी आयुर्वेद से जुड़ते रहे तो फिर इन्होंने यह शगूफ़ा छोड़ा कि आयुर्वेद की दवाओं में एलोपैथिक दवाएँ मिली होती हैं, विशेषतः ‘स्टेरॉइड्स’।
दुष्प्रचार फैलने के कारण
1. एलोपैथिक चिकित्सकों की आयुर्वेद को लेकर अज्ञानता
एलोपैथिक के चिकित्सकों को आयुर्वेद की जड़ी-बूटियों के बारे में कुछ ज्ञान नहीं होता। उन्हें केवल अदरक, हल्दी, दूध या शहद के बारे में ही दादी माँ के नुस्खे वाला ज्ञान होता है। उन्हें आयुर्वेद की दिव्यता का कदापि अनुमान नहीं है। यदि उन्हें हम विशल्यकर्णी के बारे में बताएँ कि कैसे यह युद्ध में सैनिकों के तीर निकालने में काम आती थी और एक ही दिन में घाव भर देती थी, तो उन्हें इस पर बिल्कुल यकीन नहीं होगा। उन्हंे दांत के कीड़ों को नष्ट करने के लिए उपयोग में ली जाने वाली जड़ी-बूटियों को हाथ के अगंूठे पर लेप कर नष्ट करने वाली औषधियों के बारे में रत्ती भर भी ज्ञान नहीं। उन्हें तो वायुगोला या नाभि टलने जैसी किसी बीमारी के बारे में कोई गुमान ही नहीं तो इसके लिए दी जाने वाली दवाओं और उनका चमत्कारी असर कहाँ पता होगा? उन्हें तो यह भी पता नहीं कि आयुर्वेद दवाओं से गाँठ अथवा गठान को बिना ऑपरेशन के केवल बाह्य प्रयोग द्वारा ठीक किया जा सकता है। उन्हें तो इस पर भी यकीन नहीं कि आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से हृदय के 70 प्रतिशत तक ब्लॉकेज हटाए जा सकते हैं। तो क्या उन्हें इस बात पर विश्वास होगा कि आयुर्वेद जड़ी-बूटियों से सायनोवियल फ्ल्यूड को पुनः उत्पन्न किया जा सकता है? अस्थमा के रोगी को हरिद्रा, कनक आदि औषधियों से एलर्जी के प्रभाव से मुक्त किया जा सकता है। वह रसमाणिक्य, टंकण, गंधक रसायन के बारे में क्या जाने कि यह चर्म रोगों को किस प्रकार नष्ट कर देते हैं।
अंतिम 3 उदाहरणों का वर्णन मैंने इसलिए किया है कि इन तीनों रोगों (जोड़ों का दर्द, अस्थमा और चर्मरोग) में एलोपैथिक चिकित्सक स्टेरॉइड्स का बहुतायत से प्रयोग करते है। उन्हें ऐसा लगता है कि बिना स्टेरॉइड्स के इन रोगों में लाभ नहीं पाया जा सकता, लेकिन उन्हें कौन बताए की कनक, अर्क, वातगजाकुंश रस, रसराज रस, वृह्दवात चिंतामणि, कुमारी, स्टेरॉइड्स से भी ज़्यादा असरकारक हैं तथा बिना किसी दुष्प्रभाव के इन रोगों में लाभ पहुँचा सकते हैं।
2. स्टेरॉन रिंग टेस्ट
यह टेस्ट किसी पदार्थ में उपस्थित स्टेरॉइड ग्रुप की उपस्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट के बारे में जानने से पूर्व हम यह जान लें कि स्टेरॉइड्स कितने प्रकार के होते है और किस-किस पदार्थ में पाये जाते हैं।
स्टेरॉइड्स 2 प्रकार के होते है
अ. प्राकृतिक
ब. कृत्रिम
अ. प्राकृतिक या नेचुरल या फाइटोस्टेरॉइड्स
प्राकृतिक स्टेरॉइड्स के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। यहाँ तक कि बड़े-बड़े चिकित्सकों को भी इसके बारे में पता नहीं है। आयुर्वेद चिकित्सक भी इस पर विचार नहीं करते। यही मुख्य कारण है इस भ्रांति के फैलने का कि लोगों को यह पता ही नहीं है कि सभी जड़ी-बूटियों में प्राकृतिक स्टेरॉइड्स या फाइटोस्टेरॉइड्स या हॉर्मोन उपस्थित होते हैं। यह हर पेड़-पौधे और घास में पाए जाते हैं। यहाँ तक कि तेल, घी एवं गुड़ में भी प्राकृतिक स्टेरॉइड्स पाये जाते हैं।
ब. कृत्रिम स्टेरॉइड्स
ये रसायन होते हैं। मुख्य रूप से बीटामेथासोन, डेक्सा मेथासोन आदि बहुतायत में प्रयोग किये जाते हैं। प्रत्येक एलोपैथिक चिकित्सक इन्हें कम या ज़्यादा मात्रा में संबंधित रोग से पीड़ित रोगी को देते हैं। कई ऐसी बीमारियों में जिनका कारण उन्हें पता नहीं होता उनमें भी स्टेरॉइड्स दिये जाते हैं जैसे- ऑटो इम्मयून डीसीसेस.
अब हम फिर से स्टेरॉन रिंग टेस्ट पर आते हैं। यह टेस्ट यह बताता है कि दिये गए पदार्थ में स्टेरॉइड्स हैं या नहीं । यदि रिंग आ जाती है तो स्टेरॉइड्स उपस्थित हैं। यदि रिंग नहीं आती है तो स्टेरॉइड्स नहीं हैं।
अब यदि किसी पदार्थ में जड़ी-बूटी या गुड़ की चाशनी या तैल-घी जिसमें कि प्राकृतिक स्टेरॉइड उपस्थित होता है तो उसमें भी यह रिंग टेस्ट पॉज़िटिव आता है। ऐसे में रोगी, एलोपैथिक चिकित्सक और आयुर्वेद चिकित्सक अज्ञानतावश यह समझ लेते हैं कि इस दवाई में तो स्टेरॉइड्स हैं। अतः यदि हमें प्राकृतिक या फॉयटो स्टेरॉइड के बारे में पता होगा तो हम तुरंत जवाब देंगे कि यह टेस्ट तो प्राकृतिक एवं कृत्रिम दोनों में पॉज़िटिव आता है। आप या तो और कोई विशिष्ट जाँच करें या इसके दुष्प्रभाव से हमें पता चलेगा कि यह कृत्रिम स्टेरॅाइड है या प्राकृतिक।
3. उन रोगों में आयुर्वेद के अच्छे परिणाम होना जिनमें एलोपैथिक पद्धति में कृत्रिम स्टेरॉइड्स दिये जाते हैं-
आयुर्वेद में कई रोगों का अद्भुत उपचार उपलब्ध है, लेकिन 3 रोगों में इसका विशेष प्रभाव है:
1. जोड़ों के रोग।
2. अस्थमा।
3. चर्मरोग।
अब इन तीनों रोगों में आधुनिक चिकित्सक थोड़ा या ज़्यादा स्टेरॉइड्स का डोज़ मरीज को देते हैं। जब कोई रोगी उनके पास न जाकर आयुर्वेद चिकित्सक के पास आता है और उसे लाभ मिलता है तथा जब वह रोगी यह बात अपने परिचित एलोपैथिक चिकित्सक को बताता है तो उसके मुँह से तुरंत निकलता है कि- ‘उन दवाओं में स्टेरॉइड्स मिला होगा।’
आचार्य चक्रपाणि (11वीं शताब्दी) का बताया योग ‘एक वर्ष से अधिक पुराना गुड़ और सरसों का तेल 21 दिन में अस्थमा को नष्ट कर देता है।’ अगर आप इसका स्टेरॉन रिंग टेस्ट कराएंगे तो वह भी पॉज़िटिव आयेगा क्योंकि गुड़ एवं तेल दोनों में प्राकृतिक स्टेरॉइड पाये जाते है। अब बेचारे चक्रपाणि जी 1000 साल पहले किस दवाई की दुकान से कृत्रिम स्टेरॉइड्स खरीदने गए होंगे और दवाई में मिलाया होगा और यह परिणाम मिला? ऐसे में कितनी हास्यास्पद बात है न कि इतनी आम दवाई कृत्रिम स्टेरॉइड की तुलना में अधिक असर कर रही है। ऐसे आयुर्वेद में अनगिनत योग हैं जो कृत्रिम स्टेरॉइड्स से कई गुणा अधिक असरकारक हैं।
अंत में मेरा यह कहना है कि इस भ्रांति को मिटाने के लिये हम सबको प्रयास करना होगा। लोगों का आयुर्वेद से दूर होना उनके लिए काफी हानिकारक है, क्योंकि आयुर्वेद रोगों को समूल नष्ट करता है बिना किसी अन्य रोग को उत्पन्न करे। अतः सभी चिकित्सक एवं आयुर्वेद प्रेमी इस अध्याय से शिक्षा लें एवं इसे मानवता के हित में प्रचारित एवं प्रसारित करें।
~डॉ. अबरार मुल्तानी
आयुर्वेद चिकित्सक, लेखक और चिंतक हैं तथा इनक्रेडिबल आयुर्वेदा के संस्थापक हैं।