(स्वर्गीय राजीव दीक्षित जी के ‘अँग्रेजी भाषा की गुलामी’ वाले व्यख्यान से उद्धृत)
1) English अंतराष्ट्रीय भाषा है?
2) English विज्ञान और तकनीकी की भाषा है?
3) English जाने बिना देश का विकास नहीं हो सकता?
4) English बहुत समृद्ध भाषा है!
पहले आप एक खास बात जानें ! कुल 70 देश है पूरी दुनिया मे जो भारत से पहले और भारत से बाद आजाद हुए हैं । भारत को छोड़ कर उन सब मे एक बात सामान्य हैं कि आजाद होते ही उन्होने अपनी मातृ भाषा को अपनी राष्ट्रीय भाषा घोषित कर दिया ! लेकिन शर्म की बात है कि भारत आजादी के 65 साल बाद भी यह नहीं कर पाया । आज भी भारत मे सरकारी स्तर की भाषा वस्तुत: अँग्रेजी है !
अँग्रेजी के पक्ष में तर्क और उसकी सच्चाई :
1. अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है :- दुनिया में इस समय 204देश हैं और मात्र 12 देशों में अँग्रेजी बोली, पढ़ी और समझी जाती है। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। पूरी दुनिया में जनसंख्या के हिसाब से सिर्फ 3% लोग अँग्रेजी बोलते हैं। इस हिसाब से तो अंतर्राष्ट्रीय भाषा चाइनीज़ हो सकती है क्यूंकी ये दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है और दूसरे नंबर पर हिन्दी हो सकती है।
2. अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है:- किसी भी भाषा की समृद्धि इस बात से तय होती है की उसमें कितने शब्द हैं और अँग्रेजी में सिर्फ 12,000 मूल शब्द हैं बाकी अँग्रेजी के सारे शब्द चोरी के हैं, या तो लैटिन के, या फ्रेंचके, या ग्रीक के, या फिर दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ देशों की भाषाओं के हैं। आपने भी काफी बार किसी अँग्रेजी शब्द के बारे मे पढ़ा होगा ! ये शब्द यूनानी भाषा से लिया गया है ! ऐसे ही बाकी शब्द भी हैं !
उदाहरण: अँग्रेजी में चाचा, मामा, फूफा, ताऊ सब UNCLE चाची, ताई, मामी, बुआ सब AUNTY क्यूंकी अँग्रेजी भाषा में शब्द ही नहीं है। जबकि गुजराती में अकेले 40,000 मूल शब्द हैं। मराठी में 48000+ मूल शब्द हैं जबकि हिन्दी में 70000+ मूल शब्द हैं। कैसे माना जाए अँग्रेजी बहुत समृद्ध भाषा है ?? अँग्रेजी सबसे लाचार/पंगु/ रद्दी भाषा है क्योंकि इस भाषा के नियम कभी एक से नहीं होते। दुनिया में सबसे अच्छी भाषा वो मानी जाती है जिसके नियम हमेशा एक जैसे हों, जैसे: संस्कृत। अँग्रेजी में आज से 200 साल पहले This की स्पेलिंग Tis होती थी।
अँग्रेजी में 250 साल पहले Nice का मतलब बेवकूफ होता था और आज Nice मतलब अच्छा होता है। अँग्रेजी भाषा में Pronunciation कभी एक सा नहीं होता। Today को ऑस्ट्रेलिया में Todie बोला जाता है जबकि ब्रिटेन में Today. अमेरिका और ब्रिटेन में इसी बात का झगड़ा है क्योंकि अमेरीकन अँग्रेजी में Z का ज्यादा प्रयोग करते हैं और ब्रिटिश अँग्रेजी में S का, क्योंकि कोई नियम ही नहीं है और इसीलिए दोनों ने अपनी अपनी अलग अलग अँग्रेजी मान ली।
अँग्रेजी नहीं होगी तो विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई नहीं हो सकती :- दुनिया में 2 देश इसका उदाहरण हैं की बिना अँग्रेजी के भी विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई होटी है- जापान और फ़्रांस । पूरे जापान में इंजीन्यरिंग, मेडिकल के जीतने भी कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं सबमें पढ़ाई”JAPANESE” में होती है, इसी तरह फ़्रांस में बचपन से लेकर उच्चशिक्षा तक सब फ्रेंच में पढ़ाया जाता हैहमसे छोटे छोटे, हमारे शहरों जितने देशों में हर साल नोबल विजेता पैदा होते हैं लेकिन इतने बड़े भारत में नहीं क्योंकि हम विदेशी भाषा में काम करते हैं और विदेशी भाषा में कोई भी मौलिक काम नहीं किया जा सकता सिर्फ रटा जा सकता है।
ये अँग्रेजी का ही परिणाम है की हमारे देश में नोबल पुरस्कार विजेता पैदा नहीं होते हैं, क्योंकि नोबल पुरस्कार के लिए मौलिक काम करना पड़ता है और कोई भी मौलिक काम कभी भी विदेशी भाषा में नहीं किया जा सकता है। नोबल पुरस्कार के लिए P.hd, B.Tech, M.Tech की जरूरत नहीं होती है। उदाहरण: न्यूटन कक्षा 9 में फ़ेल हो गया था, आइंस्टीन कक्षा 10 के आगे पढे ही नही और E=hv बताने वाला मैक्स प्लांक कभी स्कूल गया ही नहीं। ऐसी ही शेक्सपियर, तुलसीदास, महर्षि वेदव्यास आदि के पास कोई डिग्री नहीं थी, इन्होने सिर्फ अपनी मात्र भाषा में काम कियाजब हम हमारे बच्चों को अँग्रेजी माध्यम से हटकर अपनी मात्र भाषा में पढ़ाना शुरू करेंगे तो इस अंग्रेज़ियत से हमारा रिश्ता टूटेगाक्या आप जानते हैं जापान ने इतनी जल्दी इतनी तरक्की कैसे कर ली ? क्योंकि जापान के लोगों में अपनी मातृभाषा से जितना प्यार है उतना ही अपने देश से प्यार है। जापान के बच्चों में बचपन से कूट- कूट कर राष्ट्रीयता की भावना भरी जाती है। जो लोग अपनी मातृभाषा से प्यार नहीं करते वो अपने देश से प्यार नहीं करते सिर्फ झूठा दिखावा करते हैं।
दुनिया भर के वैज्ञानिकों का मानना है की दुनिया में कम्प्युटर के लिए सबसे अच्छी भाषा ‘संस्कृत’ है। सबसे ज्यादा संस्कृत पर शोध इस समय जर्मनी और अमेरिका में चल रहा है। नासा ने ‘मिशन संस्कृत’ शुरू किया है और अमेरिका में बच्चों के पाठ्यक्रम में संस्कृत को शामिल किया गया है। सोचिए अगर अँग्रेजी अच्छी भाषा होती तो ये अँग्रेजी को क्यूँ छोड़ते और हम अंग्रेज़ियत की गुलामी में घुसे हुए है। कोई भी बड़े से बड़ा तीस मार खाँ अँग्रेजी बोलते समय सबसे पहले उसको अपनी मात्र भाषा में सोचता है और फिर उसको दिमाग में Translate करता है फिर दोगुनी मेहनत करके अँग्रेजी बोलता है। हर व्यक्ति अपने जीवन के अत्यंत निजी क्षणों में मात्र भाषा ही बोलता है। जैसे: जब कोई बहुत गुस्सा होता है तो गाली हमेशा मातृभाषा में ही देता हैं।
अत: मातृभाषा पर गर्व करो…..अँग्रेजी की गुलामी छोड़ो
प्रेषक
डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई
vaishwikhindisammelan@gmail.com
वेबसाइट- वैश्विकहिंदी.भारत / www.vhindi.in
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