हर उम्र, हर वर्ग के काव्य रसिकों के लिए पद्मश्री गोपालदास ‘नीरज’ नाम भर ही रोमांचित कर देता है । अपने जीवन काल में ही नीरज जी किंवदंती बन गए थे । कवि सम्मेलनों में उनकी उपस्थिति ही सफलता की गारंटी रही है । ‘दर्द दिया है’ की भूमिका में नीरज ने लिखा है कि जब लिखने के लिए लिखा जाए तो वह गद्य है और जब लिखने से रहा न जाए और खुद ही लिखा जाए तो वह कविता है । मैंने जीवन में कभी कविता लिखी नहीं है—लिख गई है तभी नीरज जी कहते थे कि अब ज़माने को खबर कर दो कि ‘नीरज’ गा रहा है । ऐसी कालजयी और दिल से ‘लिख गई’ रचनाओं को नीरज जी की हस्तलिपि में देखना,पढ़ना और उसका स्पर्श सुख उठाना नीरज जी के किस श्रोता, पाठक को आल्हादित नहीं करेगा ? तभी तो आज भी नीरज जी के प्रशंसक देश-विदेश में फैले हुए हैं जो बहुत शिद्दत से उन्हें याद करते हैं । नीरज जी के ऐसे पाठकों, श्रोताओं के लिए देश की ख्यातिप्राप्त शायरा प्रज्ञा शर्मा ने दुर्लभ, कष्टसाध्य कार्य किया है, जिसकी निश्चित रूप से प्रशंसा होनी चाहिए । प्रज्ञा शर्मा ने अलीगढ़ जाकर भाग-दौड़ कर किसी तरह उम्रदराज़ और अस्वस्थ, मूडी नीरज से उनकी रचनाऍं लिखवाईं और उन्हें प्रकाशित कर संजोने का नायाब काम किया है ।
‘गोपालदास ‘नीरज’ की हस्तलिखित कविताएं’ नाम से लगभग 120 पृष्ठों में सिमटी इस पुस्तक में एक तरफ नीरज जी के हाथों लिखी रचनाएं और उसी के साथ मुद्रित रूप में भी प्रकाशित किया है । प्रज्ञा शर्मा ने संभवत: ऐसा पाठकों की सुविधा के लिए किया होगा कि पढ़ने में आसानी हो,कारण अंतिम समय में नीरज जी के हाथ कंपकपाते थे।
पुस्तक की भूमिका में नीरज जी ने बड़ी मार्मिक अपील की है कि मैं यह हस्तलिखित प्रति अपने पाठकों को इसलिए भेंट कर रहा हूँ कि जब मैं नहीं रहूँ तो वे इस पुस्तक को मेरी याद के रुप में अपने पास सुरक्षित रखें।
हास्य व्यंग्य कवि पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा ने इस पुस्तक में बताया है कि नीरज जी के अनुसार मेरे प्रस्थान के बाद इस पुस्तक का आगमन हो। प्रज्ञा जी ने नीरज जी की भावनाओं का सम्मान करते हुए उनकी प्रथम पुण्य तिथि पर यह पुस्तक प्रकाशित की है ।
श्री सुरेंद्र शर्मा ने सटीक लिखा है कि नीरज जी की कविताओं को सुनकर रात-रात भर श्रोताओं को झूमते देखा है । उन्होंने अपने मृत्यु की कामना भी कई गीतों में की है जिस पर श्रोताओं की अश्रुधारा देख उन्हें अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था तभी उन्होंने ‘मृत्युगीत’ लिखा होगा।
अपने जीवन काल में ही नीरज जी किंवदंती बन गए थे । कवि सम्मेलनों में उनकी उपस्थिति ही सफलता की गारंटी रही है । उनकी कालजयी रचनाओं को नीरज जी हस्तलिपि में देखना,पढ़ना नीरज के किस श्रोता, पाठक को रोमांचित नहीं करेगा ? । ख्यातिनाम शायरा प्रज्ञा शर्मा ने नीरज की हस्तलिखित रचनाऍं प्रकाशित करने का अद्भुत काम किया है ।
‘गोपालदास ‘नीरज’ की हस्तलिखित कविताएं’ नामक 120 पृष्ठों की पुस्तक में एक तरफ नीरज की हस्तलिखित रचनाएं और उसे मुद्रित रूप में भी प्रकाशित किया है ।
पुस्तक में नीरज जी के मुक्तक, गीत, हाइकू, ग़ज़लें सभी कुछ है ग़ज़लगो प्रज्ञा शर्मा के अनुसार पुस्तक की समस्त रचनाऍं नीरज जी द्वारा ही चयनित हैं इसलिए इन रचनाओं का वज़न बढ़ जाता है । कवियत्री प्रज्ञा शर्मा के अथक प्रयासों से आई इस पुस्तक में नीरज जी के लता जी, देवानंद, अमरीश पुरी,एस डी बर्मन, ओशो और खुद नीरज जी की दुर्लभ तसवीरें भी हैं जो शशांक प्रभाकर द्वारा उपलब्ध करवाई गई हैं ,
नीरज जी ने प्रज्ञा शर्मा से बातचीत में एक रहस्योद्घाटन किया है—दुर्भाग्य से मुझे श्रृंगार का कवि मान लिया गया, मेरे बारे में ठीक से अध्ययन नहीं हुआ । ग़ज़लगो प्रज्ञा शर्मा के अनुसार इस पुस्तक में संकलित समस्त हस्तलिखित रचनाऍं नीरज जी द्वारा ही चयनित और सृजित हैं इसलिए इन रचनाओं का महत्व और बढ़ जाता है । नीरज जी के प्रशंसकों के जेहन में यह उत्सुकता अवश्य होगी कि नीरज जी की दृष्टि में उनकी श्रेष्ठ रचनाऍं कौनसी हैं । यह पुस्तक इसका समाधान कर सकती है ।
इसे कवियत्री प्रज्ञा शर्मा की इसे हठधर्मिता या जि़द ही कहेंगे कि उनके अथक प्रयासों से यह नायाब पुस्तक पाठकों के समक्ष आ पाई है । पुस्तक की एक उपलब्धि यह भी है कि इसमें नीरज जी के लता जी, देवानंद, अमरीश पुरी,एस डी बर्मन, ओशो और खुद नीरज जी की दुर्लभ तसवीरें हैं जो संग्रहणीय है । समस्त तसवीरें नीरज जी के पुत्र शशांक प्रभाकर जी ने उपलब्ध करवाई हैं , वे भी आभार के हकदार हैं । पुस्तक का यह तथ्य बिलकुल सही है कि नीरज जी जैसे काव्य के महासागर को कुछ पृष्ठों की अँजुरी में नहीं समेटा जा सकता । तभी तो दिनकर जी ने ‘नीरज’ को ‘हिंदी काव्य की वीणा’ कहा तो भदंत आनंद कौसल्यायन ने ‘हिंदी का अश्वघोष कहा ।
कुल-मिलाकर नीरज जी जैसे व्यक्तित्व पर इस तरह की पुस्तक का स्वागत होना चाहिए और कालजयी रचनाकारों को इस तरह याद करना भी शुभ लक्षण है , इसके लिए रचनाकार प्रज्ञा शर्मा को खूब सारी बधाई ।
पुस्तक में नीरज जी के दोहे आज भी ताज़ा तरीन लगते हैं –
राजनीति के खेल यह, समझ सका है कौन
बहरों को भी बँट रहे , अब मोबाइल फोन
नीरज जी के मुक्तक बहुत सराहे गए हैं । उन्होंने उर्दू रूबाइयों की तर्ज़ पर मुक्तक लिखे हैं इनमें हिंदी की सोंधी खुश्बू थी तो उर्दू का लज़ीज तड़का भी था । पुस्तक में उनके मुक्तकों के तेवर देखें-
चाह तन मन को गुनहगार बना देती है
बाग़ के बाग़ को बीमार बना देती है ।
भूखे पेटों को देशभक्ति सिखाने वालों
भूख इंसान को गद्दार बना देती है ।।
नीरज जी के गीत तो हमेशा संवेदनाओं से लबालब रहे हैं ।गीतों की सार्थकता पर नीरज जी ने कभी लिखा था—
दुनिया के घावों पर मरहम जो न बने
उन गीतों का शोर मचाना पाप है
पुस्तक में नीरज जी के कुछ शानदार गीत भी संकलित हैं-
गीत तो अस्तित्व का नवगीत है
ध्वनि रहित, ध्वनि का अमर संगीत है
नीरज जी ने शानदार ग़ज़लें भी लिखी हैं,उनका यह फ्लेवर भी देखें-
अपनी तकदीर जानने के लिए खंडहरों तक महल गये होंगे
जि़क्र नीरज का जब हुआ होगा, कितने ही लोग जल गये होंगे
‘नीरज की पाती’ में इन पंक्तियों को देखें-
आज की रात तुझे आखि़री ख़त और लिख दूँ
कौन जाने ये दीया सुबह तक जले-न-जले ?
बन-बारूद के इस दौर में अब ऐ हमदम
ऐसी रंगीन हवा फिर कभी चले न चले
‘मृत्युगीत’ में तो जैसे उन्होंने सबको अंतिम बिदाई ही दे दी हो—
देखो लिपटी है राख चिता की पैरों में
अंगार बना जलता है रोम-रोम मेरा,
है चिता सदृश धू-धू करती सारी देही
है कफ़न बँधा सिर पर, सुधि को तम ने घेरा
पुस्तक में नीरज के कुछ रोचक हाइकू भी संकलित हैं-देखें-
आए हैं पत्थर
वहॉं से जहॉं पे थे
दोस्तों के घर
पुस्तक का नाम-‘गोपालदास ‘नीरज’ की हस्तलिखित कविताऍं’
प्रस्तुति- प्रज्ञा शर्मा
पृष्ठ 119, मूल्य -पॉंच सौ रूपये
प्रकाशक- प्रभात प्रकाशन, दिल्ली
समीक्षक का पता-
डॉ. अनंत श्रीमाली
हास्य व्यंग्य कवि/मंच संचालक/कवि सम्मेलन संयोजक
(पूर्व सहायक निदेशक, भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग)
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