भारत को भारत की दृष्टि से देखने-समझने और समझाने वाले अनूठे प्रधानमंत्री थे- भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी। उन्होंने भारत और भारतीयता पर गर्व करना सिखाया। एक ऐसे दौर में जबकि निष्ठा चंद नोटों के बदले बिकती हो, सक्षम-समर्थ-असाधारण होते हुए भी अपना पूरा जीवन विपक्ष की राजनीति करते हुए बिता देना एक दुर्लभ उदाहरण है। उन्होंने सत्ता के लिए कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। विचारधारा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता दृढ़ थी। वे समन्वयवादी तो थे, पर समर्पणवादी नहीं थे। उन्होंने जनता पार्टी के शासनकाल में विदेश मंत्री रहते हुए दोहरी सदस्यता के प्रश्न पर त्यागपत्र देना स्वीकार किया, किंतु संघ की पृष्ठभूमि को छोड़ना नहीं। संघ की शाखा और संस्कृति पर उन्हें सदैव गर्व रहा। पर विरोध की राजनीति करते हुए भी उन्होंने देश हित की टेक कभी ना छोड़ी। इतने लंबे समय तक विपक्ष की राजनीति करते हुए भी अटल बिहारी वाजपेयी जी ने एक भी ऐसा वक्तव्य नहीं दिया, जिसका राष्ट्र विरोधी तत्व या भारत के शत्रु-देश दुरुपयोग कर सकें। आज सत्ता तक पहुंचने के लिए आतुर-उतावली विपक्षी पार्टियों को अटल जी के जीवन और दर्शन से यह सीखना चाहिए कि राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर विपक्षी दलों और नेताओं की क्या और कैसी भूमिका होनी चाहिए?
उन्हें अपने हिंदू होने का भी गौरव-बोध था। तभी तो वे कहते हैं:-
होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा
है कर लूँ सबको गुलाम?
मैंने तो सदा सिखाया है
करना अपने मन को गुलाम
गोपाल-राम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किया
कोई बतलाए काबुल में जाकर कितनी मस्जिदें तोड़ीं?
भूभाग नहीं, शत-शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय।
हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू मेरा परिचय।
अपनी तमाम विशेषताओं के बावजूद हिंदू होने का उनका यह आग्रह ही उन्हें औरों से भिन्न और विशिष्ट बताता है। अन्यथा भारत में राजनीति करने वाले राजनेता तो कई हुए, पर अटल जैसी लोकप्रियता किसी को नहीं प्राप्त हुई। अटल की इस लोकप्रियता का मर्म यह हिंदू तन-मन ही था। इसलिए जो लोग हिंदू और हिंदुत्व का नाम सुनकर ही नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं उन्हें अटल से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए।
वे सही मायनों में आधुनिक भारत के शिल्पी थे। उन्होंने अपने संक्षिप्त कार्यकाल में भारतवर्ष के विकास की आधारशिला रखी और। आर्थिक उन्नति की सुदृढ़ नींव खड़ी की। सड़कों का संजाल बिछाने और संचार क्रांति लाने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। विकास और सुशासन उनके दो मंत्र रहे।
वे एक ऐसे राष्ट्रवादी थे जो जानते थे कि परमाणु शक्ति संपन्न बने बिना दुनिया में भारत की कहीं कोई सुनवाई नहीं होगी। इसीलिए उन्होंने तमाम दबाव झेल कर भी भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाया।
वे जानते थे कि अपनी भाषा के बिना कोई भी राष्ट्र गूंगा ही रह जाता है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ में बोलते हुए उन्होंने संवाद के लिए हिंदी भाषा को चुना। विदेश मंत्री के रूप में दुनिया के तमाम देशों के साथ उन्होंने जिस तरह से रिश्ते बनाए, वे उन्हें एक वैश्विक राजनेता के रूप में स्थापित करने के लिए पर्याप्त हैं।
प्रख्यात वैज्ञानिक डॉक्टर ए.पी.जे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बना कर उन्होंने यह साबित किया कि मुस्लिम समाज से हमें कैसे नायकों का चयन करना चाहिए?
उनका पूरा जीवन समाज और राष्ट्र की सेवा में समर्पित था। उनसे हमें शक्ति और संकल्प की प्रेरणा लेनी चाहिए। उनकी कविताएँ राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत हैं। देशभक्ति उनके रग-रग में लहू बनकर दौड़ती थी। तभी तो उन्होंने राष्ट्र को व्यक्त करते हुए कहा कि:-
”राष्ट्र कोई जमीन का टुकड़ा नहीं, यह एक जीता जागता राष्ट्रपुरुष है। हिमालय पर्वत राष्ट्र का मस्तक है, गौरीशंकर इसकी शिखाएँ हैं। पावस के काले-काले मेघ इसकी केश राशि हैं, दिल्ली दिल है, विंध्याचल कटि और नर्मदा करधनी है। पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट इसकी दो विशाल जंघाएँ हैं। कन्याकुमारी इसके पंजे हैं। समुद्र ऐसे राष्ट्र-पुरुष के चरण पखारता है, सूरज और चंद्रमा इसकी आरती उतारते हैं। यह भारत भूमि वीरों की भूमि है। यह अर्पण की भूमि है, तर्पण की भूमि है। इसका कंकड़-कंकड़ हमारे लिए शंकर है, इसका बिंदु-बिंदु हमारे लिए गंगाजल है। हम जिएंगे तो इस राष्ट्र के लिए और मरेंगे तो इसके लिए और मरने के बाद भी हमारी अस्थियाँ जब समुद्र में विसर्जित की जाएँगीं तो एक ही आवाज आएगी- भारत माता की जय, भारत माता की जय।”
(प्रणय कुमार सामाजिक, राजनीतिक व राष्ट्रवादी विषयों पर लिखते हैं)