गर्मियों की छुट्टी हुई तो जैसे सभी बच्चे अपने रिश्तेदारों के यहां जाते हैं तो हम भी अपनी नानी के घर गुना गए जूते पहनकर। एक दिन हमने देखा कि नानाजी जी अपने पैर की मरहम-पट्टी कर रहे हैं। तो हमने पूछा क्या हुआ?
बोले जूते ने काट लिया।
हम हैरान परेशान… तो जूता ‘काटता भी है’।
अगली छुट्टियों में फिर मामा के घर गए तो उन्हें जूते में तेल लगाते पाया। हमने पूछा क्या हुआ?
बोले ये चूं चूं करता है।
अच्छा बोलता है… कमाल है ‘जूता बोलता भी है’।
फिर अगली छुट्टियों में चाचा के घर गए तो उन्हें कहते सुना कि फ़लांना तो जूते का यार है…
ओह तो ‘जूते दोस्ती भी करते हैं’।
उससे अगली छुट्टियों में भुआजी जी के यहां गए तो फूफाजी किसी के बारे में कह रहे थे कि वह तो जूते खाये बिना मानेगा नहीं।
अरे वाह… ‘जूते खाये भी जाते हैं’ मने भूख मिटाते हैं।
फिर अगली होली में देखा कि एक आदमी को गधे पर बैठाया गया है और उसके गले में जूते पड़े हैं और लोग नाच गा रहे हैं। हमने अपने पापा जी से पूछा कि ये क्या है?
तो बोले कि इस आदमी को इस साल मूर्खाधिराज चुना गया है और इसके गले में जूतों का हार पहना कर सम्मानित किया गया है।
कमाल है …. ‘जूते सम्मान प्रदान करने के काम भी आते हैं’।
थोड़ा और बड़े हुए और फुटबॉल मैच देखने का चस्का लगा तो पता चला कि सबसे अधिक गोल स्कोर करने वाले खिलाड़ी को ‘गोल्डन बूट’ दिया जाता है।
वाह…. पुरस्कार में सोने का जूता दिया जाता है।
फिर थोड़ा और बड़े हुए तो पता चला कि वेस्टर्न टेलीविज़न और मूवीज इंडस्ट्री में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता को ‘गोल्डन बूट अवार्ड’ दिया जाता है।
कमाल है…. सम्मान अभिनेता का हो रहा है कि जूते का!!!
एक दिन देखा कि एक आदमी बेहोश पड़ा है। शायद उसे मिर्गी का दौरा आया था। उसके चारों तरफ भीड़ लगी थी। तभी भीड़ में से एक बुजुर्ग ने फरमाया… जूता मंगवाओ और इसे जूता सुंघाओ। अभी ठीक हो जाएगा।
अरे वाह… ‘जूता तो औषधी भी है’।
फिर एक शादी में गये तो वहां देखा कि वर और वधु पक्ष में कुछ सौदेबाजी हो रही है। हमने अपने मम्मी जी से पूछा कि यह क्या हो रहा है?
उन्होंने बताया कि बेटा ये दूल्हे की सालियों ने दूल्हे के जूते चुरा लिए और अब उन्हें वापस करने के लिए रुपये मांग रही हैं।
ओह नो… जूते का ‘अपहरण भी हो जाता है’।
जूता काटता है, जूता बोलता है, जूता दोस्ती यारी करता है, जूता खाया जाता है। जूता सम्मान प्रदान करता है। जूता औषधी है और तो और जूते के अपहरण का भरा-पूरा व्यवसाय है।
फिर तलेन वाले पंडित जी ने याद दिलाया कि श्री राम चन्द्र जी के वनगमन पर श्री भरत जी ने उनके जूते अर्थात खड़ाऊँ को राजगद्दी पर विराजमान करके चौदह वर्षों तक अयोध्या का राजकाज चलाया।
तो ‘जूता महाराज भी है’।
कुल मिलाकर मुझे तो लगता है कि ‘जूते में जीवन’ है।
अथ श्री जूता कथा इति समाप्त।
बोलिये जूताधिराज की जय।
अज्ञात