कुछ दिनों से इंदौर में बारिश ने अपनी दस्तक दे दी।
अहा ! क्या कहूँ…!
यूँ ही खिड़की किनारे लगे अपने पौधों को निहार रही थी। सोच ही रही थी कि गर्मी में कितने झुलस जाते हैं । पानी से उनको तरोताजा करने की सोच ही रही थी कि अचानक से मौसम_बेईमान हो गया । इंसानों को बदलते तो देखा था पर मौसम …???
अरे नहीं नहीं … ये मौसम की बेईमानी वैसी नहीं हैं, यह तो हमें पसंद हैं। वो बादलों का घुमड़ घुमड़ करना , रूई सी शक्ल वाले इन बादलों ने कुछ ही देर में अपना मेकअप इस कदर कर लिया मानो मिशन_ए_बारिश की पूर्ण तैयारी हैं ।
ब्लैक_से_व्हाइट होते तो सुना था पर आज व्हाइट से ब्लैक भी देख लिया । हम बार – बार हथेली को फेला रहे थे ये देखने के लिए कि बरखा रानी पधारी या नहीं , क्योंकि उनके लिए रेड कारपेट तो हम सभी ने कब से बिछा रखा था पर इनके नखरे हैं कि ख़त्म होते नहीं।
निराश होकर मैं हाथ अंदर खींच ही रही थी कि अचानक से जोर का झटका लगा ,( सेम वैसा जो अक्सर फिल्मों में होता हैं ) मेरी हथेली पर जोर से एक गोल मटोल बूंद आकर गिरी जो बहुत गुस्से में थी । मैंने पूछा क्यों भई , ” काहे लाल पीली हो रही हो ? इतना अच्छा तो स्वागत का इंतजाम किया हैं।”
कहने लगी ,” इतने ऊपर से गिरूंगी तो मेरी हड्डी पसली न एक हो जाएगी , तुम्हारे लिए मजा है पर मेरे लिए तो सजा हैं, इतना कहकर वो मेरी हथेली से कूद गई l
उसके ऐसा करते ही दूसरी बूंद टपक पड़ी मानो पहली के कूदने का ही इंतजार कर रही थी। होता है होता है ऐसा भी …!
बारिश आने के पहले , बारिश के समय और बारिश के बाद वाकई मौसम सुहावना हो जाता हैं । चारों ओर प्रकृति ऐसी लगती हैं मानो #नव_दुल्हन श्रृंगार किए हुए हो।
हर कोई इन पलों को , इन नजारों को अपने अपने हिसाब से देखता हैं । किसी की कलम लिखने को आतुर हो उठती हैं तो किसी का दिल मधुर मिलन के गीत गुनगुनाने लगता हैं । कोई शायरी में इसे ढालता हैं तो किसी की कल्पना अदृश्य का चित्रण करने लगती हैं। सच में, मानसून_का_आना_प्यार_का_आना_है।बहुत कुछ हैं लिखने को तो पर यहीं विराम देती हूँ वरना तीसरी बूंद पता नहीं सवालों का कौनसा तीर छोड़ेगी !!
मोहिनी गुप्ता
राजगढ़ ( ब्यावरा )
मध्य प्रदेश