बासंती रुत की आहट है
हरी भरी सरसों की हथेली पे
जैसे रच दी पीली सजावट है
गुनगुनाती धूप में
नए नवेले रूप में
पर्वत के विस्तार पर
कोहरे की थकावट है
बासंती रुत की आहट है
नदियों के आँचल में
चरागाहों के प्रांगण में
ओस की बूँदों से अंकित
ऋचाओं की लिखावट है
बासंती रुत की आहट है
बिन धूप कोहरे से
कंपकंपाते चेहरे पे
थोड़ी सी राहत है
बासंती रुत की आहट है
बिना डरे बर्फीली हवा के थपेड़ों से
हरियाली विहीन पेड़ों पे
लो फूलों को खिलने की चाहत है
बासंती रुत की आहट है
शहर की वीरान सड़कों में
कोने में अलाव सेकते लड़कों में
सर्दी से लड़ने की सुगबुगाहट है
बासंती रुत की आहट है
(कवि कविता के साथ साथ विभिन्न विषयों पर लिखते रहते हैं।)