Thursday, December 26, 2024
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पहले सिस्टम करप्ट था अब करप्शन ही सिस्टम तो नहीं हो चला?

वेल्लूर 24 करोड़ तो दिल्ली 15 करोड़ 65 लाख। चेन्नई 10 करोड़ तो चित्रदुर्ग 5 करोड़ 70 लाख। गोवा डेढ़ करोड़ और उसके बाद मुंबई से लेकर कोलकाता और जयपुर से लेकर पुणे तक और गाजियाबाद से लेकर गुड़गांव यानी गुरुग्राम तक लाखों के नये नोट जब्त किये गये हैं। और देश के सिर्फ 16 ही नहीं बल्कि 32 जगहों से जो अवैध नये नोटों को पकड़ने का सिलसिला जारी है या कहे 500 और 2000 के नये नोट निकल कर सामने आये हैं, उसमें सवाल यही बड़ा है कि पकड़ने वालों की पीठ थपथपायी जाये या फिर नोट पहुंचाने वालों को सजा दी जाये।

संयोग से जिन्होने नोट पहुंचाये और जिन्होंने नोट पकड़े दोनों ही सरकारी मुलाजिम हैं। या कहें उसी सिस्टम का हिस्सा है जिस सिस्टम पर भरोसा कर देश को कैशलेस बनाकर बैकिंग सर्विस से जोड़कर करप्शन मुक्त या कालाधन मुक्त होने का सपना देखा दिखाया जा रहा है। तो क्या ये वाकई सपना है? क्योंकि नोटबंदी से पहले जो सिस्टम था वही करप्ट था और नोटबंदी के बाद जिस साफ सिस्टम की वकालत की जा रही है उसी में करप्शन है और बैंकिंग सर्विस में भ्रष्टाचार है, इसे पीएमओ भी अगर मान रहा है और उसे स्टिंग कराने की जरुरत पड़ रही है तो देश के तीन सच से आंखे किसी को नहीं मूंदनी चाहिये।

पहला, सिस्टम ठीक तभी होगा जब देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर होगा। दूसरा, इन्फ्रास्ट्रक्चर तभी होगा जब जनता सिस्टम का हिस्सा होगी। तीसरा, जनता सिस्टम में शामिल तभी होगी जब सत्ता जनता के बीच होगी। और ध्यान दें तो अभी तक सत्ता का मिजाज जनता को सरकार के रहमोकरम पर रखने वाला है। यानी देश का किसान मानामाल नहीं हो सकता। देश का मजदूर दो जून के लिये भटकना छोड़ नहीं सकता। 70 करोड़ की आबादी के लिये सरकार के पास सिर्फ मदद या राहत पैकेज है जिसे वही सरकारी कर्मचारी या संस्थान पहुंचाते है, जो करप्ट है। तो फिर नोटबंदी के बाद सिस्टम का दायरा जब बैंकिंग सर्विस और तकनीक पर आ टिका है और नोटों के उत्पादन से ज्यादा नोटों की मांग है तो फिर सिस्टम को और ज्यादा करप्ट होने से कौन सा सिस्टम रोक पायेगा, क्योंकि नोटबंदी से पहले सिस्टम करप्ट था। नोटबंदी के बाद करप्शन ही सिस्टम हो रहा है, क्योंकि देश के एक लाख तीस हजार बैंक शाखाओं में से पांच सौ बैंकों में स्टिंग और किसी ने नहीं पीएमओ ने कराया। और खबर आ गई कि जहां-जहां स्टिंग हुआ वहां वहां गड़बड़ी हुई है। तो अब उन्हें बख्शा नहीं जायेगा।

यानी जो भ्रष्टाचार होना नहीं चाहिये था, वह भ्रष्टाचार देश की सफाई के लिये उठाये गये सबसे बड़े कदम के दौर में वही बैंक कर रहा है, जिस बैंकिंग सर्विस पर सरकार को भरोसा है कि आने वाले वक्त में यही तरीका देश को बचा सकता है। यानी भ्रष्टाचार खत्म कैसे हो इसका उपाय किसी के पास नहीं। तो क्या देश स्टिंग ऑपरेशन के आसरे चल सकता है। ये सवाल कल भी था और आज भी है। कल केजरीवाल के लिये ये हथकंडा था और प्रधानमंत्री मोदी के लिये।

तो ये मान भी लिया जाये कि हर जगह कैमरा लगा होगा। हर जगह पर सीधे सत्ता नजर रखेगी। यानी कोई भ्रष्ट ना हो या बैंक इस तरह कैश ना बांटे जैसा स्टिंग ऑपरेशन में नजर आया होगा। तो अगला सवाल है कि कैशलेस करप्शन पर रोक के लिये कौन सा स्टिंग होगा, क्योंकि जनता का ही बैंकों में जमा रुपया कॉरपोरेट को बांटा गया। जो कैश नहीं चैक या खातों में ट्रांसफर कर दिखाया जाता है और उसी कड़ी में नॉन परफॉर्मिंग एसेट यानी एनपीए की राशि बीते 10 बरस में 10 लाख करोड़ से ज्यादा की हो चुकी है, तो क्या जिन बैंक मैनेजरों ने जिन राजनेताओं के कहने पर जिन कॉरपोरेट को करोड़ों रुपया कर्ज दिया और जो कॉरपोरेट जिन राजनेताओ के कंधे पर सवार होकर बैंकों को कर्ज की रकम नहीं लौटा रहे हैं, क्या वह करप्शन नहीं है। और है तो उसके लिये कौन सा कानून किस तरह देश में काम कर रहा है?

यानी मौजूदा वक्त में भी करीब सवा लाख बैंकों में क्या हो रहा है-इसका सरकार को कुछ पता नहीं या कहें कि सरकार चाहकर भी कुछ कर नहीं सकती, और अगर सरकार ये सोच रही है कि आने वाले वक्त में बैकिंग सर्विस के दायरे में समूचा देश होगा और बैकिंग सर्विस पर निगरानी रखकर उक्नामी के करप्शन को खत्म किया जा सकता है, तो ये नजरिया कब कैसे पूरा होगा कोई नही जानता। क्योंकि फिलहाल 97 बैंकों की 1 लाख 30 हजार शाखायें देश भर में हैं और 10 बरस पहले यानी 2005 में 284 बैंकों की 70373 शाखायें देश भर में थीं। यानी दस बरस में करीब दुगनी शाखायें देश भर में खुलीं, लेकिन देश का सच यही है कि 93 फीसदी ग्रामीण भारत में बैंक है ही नहीं। शहरों में प्रति बैंक शाखा औसतन 10 हजार लोग हैं और मौजूदा वक्त में प्रतिदिन नोट बांटने की कैपिसिटी प्रति शाखा सिर्फ 500 लोग हैं। यानी मौजूदा सिस्टम को ही पटरी पर लाने के लिये जो इन्फ्रास्ट्रक्चर चाहिये उसमें कई गुना सुधार की जरूरत है और ये जरूरत कितने दिनों में कैसे पूरी होगी कोई नहीं जानता।

तो अगला सवाल ये हो सकता है कि क्या स्टिंग ऑपरेशन सिर्फ ये बताने के लिये है कि सरकार काम कर रही है? क्योंकि सरकार को बखूबी मालूम है कि उसके पास वक्त सिर्फ 30 दिसंबर तक का है, क्योंकि फिर दांव पर प्रधानमंत्री मोदी का वचन होगा। ऐसे में अगर पीएम मोदी संसद में कहेंगे तो क्या कहेंगे और अगर राहुल गांधी ही संसद में कहेंगे तो क्या कहेंगे? जाहिर है बैकिंग सर्विस, टेक्नोलॉजी और कैशलेस पेमेंट के जरिये कालेधन, भ्रष्टाचार पर नकेल से आगे पीएम क्या कह सकते हैं? और राहुल गांधी नये हालातों में इन्हीं सब से पैदा हुये मुश्किल हालात से आगे क्या कहेगें?

यूं जब रैलियों में पीएम के तेवर के अक्स में संसद में मोदी के कहने के इंतजार करें तो मोदी सीधे देश के बिगड़े हालात के लिये नेहरु गांधी परिवार को कटघड़े में खड़ा कर सकते हैं। भ्रष्टाचार और कालेधन को आश्रय देने वाली व्यवस्था के लिये गांधी परिवार को सबसे भ्रष्ट बता सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ राहुल गांधी मुश्किल हालात में प्रधानमंत्री मोदी को जीरो करार दे सकते हैं, जो देश के जलने पर ईमानदारी की बांसुरी बजा रहे हैं। क्योंकि देश के राजनेताओ की भाषा तो फिलहाल यही हो चली है। लेकिन सवाल यह भी है कि संसद में क्या कोई नेता ये कहने की हिम्मत दिखाएगा कि संसद ही जिस जमीन पर खड़ी है और उसमें बैठकर देश के नाम संबोधन का जो जुमला हर राजनीतिक दल गढ़ रहा है क्या उस जमीन से जमता का वाकई कुछ लेना देना है।

यानी सवाल सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी या राहुल गांधी भर का नहीं है। सवाल है कि बीते 34 दिनों में क्या किसे ने ईमानदारी से संसद में बताया कि उनकी राजनीतिक पार्टी चलती कैसे है। कॉरपोरेट को अरबों रुपये की टैक्स रियायत क्यो दी जाती है? और गरीबों के लिये सिर्फ सरकारी पैकेज ही क्यों चलता-दौडता है? यानी जिस कालेधन और भ्रष्टाचार की खोज नोटबंदी के बाद कतारों में खड़े लोगो के मुश्किलों में टटोला जा रहा है उसके भीतर का सच यही है कि राजनीतिक व्यवस्था ने खुद को जनता के प्रति जिम्मेदार माना ही नहीं है। कॉरपोरेट या निजी पूंजी की इकनॉमी का इन्फ्रास्ट्रक्चर ही देश चला रहा है।

सत्ता पूंजी के आसरे व्यवस्था चलाती है ना कि मानव-संसाधन के आसरे। यानी भ्रष्टाचार कौन करता है ये बताने के लिये किसी सिस्टम की जरूरत नहीं है और कालाधन किसके पास है ये जानने के लिये बैंकिंग सर्विस की जरूरत भी नहीं है। जरूरत सिर्फ इस सच के साथ खड़े होने की है कि कानून और संवैधानिक संस्धान अपनी जगह अपना काम करें, जो है नहीं तो करप्शन ही सिस्टम कैसे हो जाता है ये कहां किसी से छुपा है।

(साभार: वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी के ब्लॉग http://prasunbajpai.itzmyblog.com/ से)

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