Thursday, December 26, 2024
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भारत का वो सच जिसे एक विदेशी इतिहासकार ने बताया

इतिहासकार अर्नाल्ड जे. टायनबी ने कहा था कि विश्व के इतिहास में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़छाड़ की गई है, तो वह भारत का इतिहास ही है। भारतीय इतिहास का प्रारम्भ कथित रूप से सिन्धु घाटी की सभ्यता से होता है, इसे हड़प्पा कालीन सभ्यता या सारस्वत सभ्यता भी कहा जाता है। बताया जाता है कि वर्तमान सिन्धु नदी के तटों पर 3500 BC (ईसा पूर्व) में एक विशाल नगरीय सभ्यता विद्यमान थी। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि इस सभ्यता के नगर थे।

पहले इस सभ्यता का विस्तार सिंध, पंजाब, राजस्थान और गुजरात आदि तक बताया जाता था, किन्तु अब इसका विस्तार समूचा भारत, तमिलनाडु से वैशाली बिहार तक, आज का पूरा पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान तथा पारस (ईरान) का हिस्सा तक पाया जाता है। अब इसका समय 7000 BC से भी प्राचीन पाया गया है।

इस प्राचीन सभ्यता की मुहरों, टेबलेट्स और बर्तनों पर जो लिखावट पाई जाती है उसे सिन्धु घाटी की लिपि कहा जाता है। कथित इतिहासकारों का दावा है कि यह लिपि अभी तक अज्ञात है, और पढ़ी नहीं जा सकी। जबकि सिन्धु घाटी की लिपि से समकक्ष और तथाकथित प्राचीन सभी लिपियां जैसे इजिप्ट, चीनी, फोनेशियाई, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई आदि सब पढ़ ली गयी हैं।

आजकल कम्प्यूटरों की सहायता से अक्षरों की आवृत्ति का विश्लेषण कर मार्कोव विधि से किसी भी प्राचीन भाषा को पढ़ना सरल हो गया है। सिन्धु घाटी की लिपि को जानबूझकर नहीं पढ़ा गया, और न ही इसको पढ़ने के सार्थक प्रयास किए गए। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (Indian Council of Historical Research) जिस पर पहले अंग्रेजों और फिर नकारात्मकता से ग्रस्त स्वयंसिद्ध वामपंथी इतिहासकारों का आधिपत्य रहा, ने सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ने की कोई भी विशेष योजना नहीं चलायी।

क्या था सिन्धु घाटी की लिपि में? अंग्रेज और स्वयंसिद्ध इतिहासकार क्यों नहीं चाहते थे, कि सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ा जाए?

अंग्रेज और स्वयंसिद्ध इतिहासकारों की दृष्टि में सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ने के निम्नलिखित खतरे थे…

1. सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ने के बाद उसकी प्राचीनता और अधिक पुरानी सिद्ध हो जाएगी। इजिप्ट, चीनी, रोमन, ग्रीक, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई से भी पुरानी, जिससे पता चलेगा कि यह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है। भारत का महत्व बढ़ जाएगा जो अंग्रेज और स्वयंभू इतिहासकारों को बर्दाश्त नहीं होगा।

2. सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ने से अगर वह वैदिक सभ्यता साबित हो गई तो अंग्रेजों और स्वयंसिद्ध इतिहासकारों द्वारा फैलाए गए आर्य-द्रविड़ युद्ध वाले प्रोपेगंडा के ध्वस्त हो जाने का डर है।

3. अंग्रेज और स्वयंसिद्ध इतिहासकारों द्वारा दुष्प्रचारित, “आर्य बाहर से आई हुई आक्रमणकारी जाति है और इसने यहाँ के मूल निवासियों अर्थात सिन्धु घाटी के लोगों को मार डाला, भगा दिया और उनकी महान सभ्यता नष्ट कर दी। वे लोग ही जंगलों में छुप गए, दक्षिण भारतीय (द्रविड़) बन गए, शूद्र, आदिवासी बन गए”, आदि आदि गढ़ी गई धारणा गलत साबित हो जाएगी।

कुछ इतिहासकार सिन्धु घाटी की लिपि को सुमेरियन भाषा से जोड़कर पढ़ने का प्रयास करते रहे, तो कुछ इजिप्शियन भाषा से, कुछ चीनी भाषा से, कुछ इनको मुंडा आदिवासियों की भाषा, और तो और, कुछ इनको ईस्टर द्वीप के आदिवासियों की भाषा से जोड़कर पढ़ने का प्रयास करते रहे। ये सारे प्रयास असफल साबित हुए।

सिन्धु घाटी की लिपि को पढनें में निम्नलिखित समस्याएँ बताई जाती हैं…

सभी लिपियों में अक्षर कम होते हैं, जैसे अंग्रेजी में 26, देवनागरी में 52 आदि, मगर सिन्धु घाटी की लिपि में लगभग 400 अक्षर चिन्ह हैं। सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ने में यह कठिनाई आती है कि इसका काल 7000 BC से 1500 BC तक का है, जिसमें लिपि में अनेक परिवर्तन हुए, साथ ही लिपि में स्टाइलिश वेरिएशन बहुत पाया जाता है। ये निष्कर्ष लोथल और कालीबंगा में सिन्धु घाटी एवं हड़प्पा कालीन अनेक पुरातात्विक साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद निकला।

भारत की प्राचीनतम लिपियों में से एक लिपि है – ब्राह्मी लिपि – इस लिपि से ही भारत की अन्य भाषाओँ की लिपियां बनीं। यह लिपि वैदिक काल से गुप्त काल तक उत्तर पश्चिमी भारत में उपयोग की जाती थी। संस्कृत, पाली, प्राकृत के अनेक ग्रन्थ ब्राह्मी लिपि में प्राप्त होते हैं।

सम्राट अशोक ने अपने धम्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए ब्राह्मी लिपि को अपनाया। अशोक स्तम्भ और शिलालेख ब्राह्मी लिपि में संस्कृत आदि भाषाओं में लिखे गए और भारत में लगाए गए।

सिन्धु घाटी की लिपि और ब्राह्मी लिपि में अनेक आश्चर्यजनक समानताएँ हैं। साथ ही ब्राह्मी और तमिल लिपि का भी पारस्परिक सम्बन्ध है। इस आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ने का सार्थक प्रयास सुभाष काक और इरावाथम महादेवन ने किया। सुभाष काक ने तो बहुत शोध पत्र तैयार किया एवं सिंधु घाटी की लिपि को लगभग हल कर लिया था, परंतु प्रकाशित करने के एक दिन पहले रहस्यमय ढ़ंग से उनकी मृत्यु हो गई। ये भी शास्त्री जी वाली कहानी थी।

सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 400 अक्षरों के बारे में यह माना जाता है कि इनमें कुछ वर्णमाला (स्वर-व्यंजन मात्रा संख्या), कुछ यौगिक अक्षर और शेष चित्रलिपि हैं। अर्थात यह भाषा अक्षर और चित्रलिपि का संकलन समूह है। विश्व में कोई भी भाषा इतनी सशक्त और समृद्ध नहीं जितनी सिन्धु घाटी की भाषा है। यह बाएँ से दाएँ लिखी जाती है, उसी प्रकार ब्राह्मी लिपि भी दाएँ से बाएँ लिखी जाती है। सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 3000 टेक्स्ट प्राप्त हैं।

इनमें वैसे तो 400 अक्षर चिन्ह हैं, लेकिन 39 अक्षरों का प्रयोग 80 प्रतिशत बार हुआ है। और ब्राह्मी लिपि में 45 अक्षर है। अब हम इन 39 अक्षरों को ब्राह्मी लिपि के 45 अक्षरों के साथ समानता के आधार पर मैपिंग कर सकते हैं और उनकी ध्वनि पता लगा सकते हैं।

ब्राह्मी लिपि के आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि पढ़ने पर सभी संस्कृत के शब्द आते है जैसे; श्री, अगस्त्य, मृग, हस्ती, वरुण, क्षमा, कामदेव, महादेव, कामधेनु, मूषिका, पग, पंच मशक, पितृ, अग्नि, सिन्धु, पुरम, गृह, यज्ञ, इंद्र, मित्र आदि।

निष्कर्ष यह है कि…

1. सिन्धु घाटी की लिपि ब्राह्मी लिपि की पूर्वज लिपि है।
2. सिन्धु घाटी की लिपि को ब्राह्मी के आधार पर पढ़ा जा सकता है।
3. उस काल में संस्कृत भाषा थी जिसे सिन्धु घाटी की लिपि में लिखा गया था।
4. सिन्धु घाटी के लोग वैदिक धर्म और सनातन संस्कृति मानते थे।
5. वैदिक धर्म अर्थात् सनातन धर्म अत्यंत प्राचीन है। और विश्व का एकमात्र धर्म है।

वैदिक सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन और मूल सभ्यता है, यहां के लोगों का मूल निवास सप्त सैन्धव प्रदेश (सिन्धु सरस्वती क्षेत्र) था, जिसका विस्तार ईरान से सम्पूर्ण भारत देश था। वैदिक धर्म को मानने वाले कहीं बाहर से नहीं आये थे और न ही वे आक्रमणकारी थे। आर्य द्रविड़ जैसी कोई भी दो पृथक जातियाँ अथवा समूह नहीं थे, जिनमें परस्पर युद्ध हुआ हो।

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