Saturday, November 23, 2024
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Homeदुनिया मेरे आगेभूतहा गाँव उत्तराखंड के सीमावर्ती इलाक़ों की सचाई बन चुके हैं

भूतहा गाँव उत्तराखंड के सीमावर्ती इलाक़ों की सचाई बन चुके हैं

इसके लिए खलनायक वहाँ से शहरी इलाक़ों में होने वाला पलायन है .
जहां उत्तराखण्ड के विकास के बड़े बड़े दावे किए जाते हैं वहीं सचाई यह है कि इस पहाड़ी राज्य से तेज़ी से पलायन का सिलसिला जारी है. गीता सुनील पिल्लै के अनुसार 2008 से 2017 के बीच पाँच लाख और 2018 से 2022 के बीच साढ़े तीन लाख लोग उत्तराखंड छोड़ कर रोज़गार या फिर कहें बेहतर ज़िंदगी की तलाश में दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में जा चुके हैं .

नतीजा यह है कि ‘देवभूमि’ के रूप में जाना जाने वाले इस पहाड़ी राज्य में अब बहुत सारे ऐसे गाँव की संख्या तेज़ी से बढ़ी है जो पूरी तरह से ख़ाली हो चुके हैं और इन्हें भूतहा कह कर पुकारा जाने लगा है . राज्य के ग्रामीण विकास और प्रवासन रोकथाम आयोग की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार पलायन के कारण राज्य में भूतहा गांवों की संख्या लगातार बढ़ रही है. यह राज्य चीन और नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से सटा हुआ है अत: यहाँ के सीमांत क्षेत्रों में बिना आबादी वाले इलाक़े बढ़ना एक गंभीर समस्या है.

2011 तक उत्तराखंड में 1,034 निर्जन गाँव थे, 2011 और 2018 के बीच इस संख्या में 734 गाँवों और जुड़ गए , जिसके परिणामस्वरूप लगभग 1,800 गाँव निर्जन हो चुके हैं जहां शाम को रौशनी भी नहीं जलती है . राज्य कुल 17 हजार गाँव में से 10 प्रतिशत से अधिक वीरान हो चुके हैं.

राज्य में इस समस्या के मुख्य कारणों में बेहतर जीवन स्थितियों, शिक्षा या रोजगार के अवसरों की तलाश है जिसके कारण लोग सीमांत अंचलों के लोग अपना घर छोड़ रहे हैं . कई मामलों में तो पूरे परिवार ही अपने पैतृक गांवों को खाली छोड़कर बेहतर अवसरों की तलाश में दिल्ली, मुंबई, चेन्नई या बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में चले गए हैं.यही नहीं भूस्खलन, बाढ़, भूकंप और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग की वजह होने वाली चुनौतियाँ भी लोगों को गाँवों को जबरन छोड़ने के लिए भी जिम्मेदार रही हैं.

हालाँकि उत्तराखण्ड क्षेत्र में पलायन कोई नई बात नहीं है लेकिन जिस तेज़ी से पलायन में तेज़ी आई है वह ख़तरे की घंटी है . ग्रामीण विकास और प्रवासन रोकथाम आयोग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, टिहरी जनपद में नौ, चंपावत में पांच, पौड़ी और पिथौरागढ़ में तीन-तीन और अल्मोड़ा और चमोली में दो-दो गांव हैं, जो पूरी तरह से निर्जन हैं. 2018 के बाद कुल 24 गाँवों में ख़तरे की घंटी बजी है इनमें गढ़वाल के टिहरी जनपद के 9 राजस्व गाँव हैं.

गाँवों के लगातार निर्जन होने की ये घटनाएँ जहां राज्य के सामाजिक-आर्थिक विकास में गंभीर चुनौती बन कर आयी हैं वहीं राज्य में सांस्कृतिक और सामाजिक ताने बाने के लिए भी चुनौति देती प्रतीत होती लगती हैं .

महत्वपूर्ण यह है कि नीति निर्माता और हितधारक समूह इस मुद्दे को हल करने के लिए मिलकर काम करें और उन रिवर्स माइग्रेशन के लिए योजनाएँ तत्काल लागू करें .लेकिन यह समस्या केवल भारत के पहाड़ी इलाक़ों की नहीं है दुनिया के दूसरे देश भी अपने सुदूरवर्ती और पहाड़ी इलाक़ों में झेल रहे हैं और अपने अपने तरीक़े से उससे निबटने का प्रयास कर रहे हैं.

ऐसी ही एक पहल इटली की सरकार ने अपने टस्कन प्रांत के लिए की है .

टस्कन इटली का बेहद खूबसूरत पर्वतीय इलाक़ा है जो प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही क्षेत्रीय ख़ान पान के लिए बेहद मशहूर रहा है. यहाँ के छोटे छोटे क़स्बों और गाँव की आबादी बहुत कम हो गई है . इसे देखते हुए प्रशासन ने यहाँ “रेसिडेंज़ियालिटा इन मोंटागना 2024” (पहाड़ों में निवास 2024) कार्यक्रम प्रारंभ किया है जिसके अंतर्गत इस इलाक़े में बसने के इच्छुक लोगों को €10,000 से लेकर €30,000 (लगभग $32,145) तक का अनुदान देने का प्रावधान किया है जिसमें घर खरीदने और उसके नवीनीकरण की लागत भी शामिल होगी .

शुरुआती तौर पर टस्कन में बसने के लिए 76 कस्बे चिन्हित किए गए हैं और ये सभी प्राकृतिक सौदर्य के हिसाब से बेहद आकर्षक हैं. ऐसा ही खड़ी चट्टान पर बना कैस्टेलनुवो डि वैल डि सेसीना मारेम्मा पहाड़ी इलाक़े की तलहटी में एक छोटा सा मध्ययुगीन गाँव है. इस सूची में एक और क़स्बा सैन कैसियानो देई बागनी है जिसे स्पा शहर के नाम से जाना जाता है यहाँ लोग चिकित्सीय थर्मल स्नान के लिए आते हैं – जो लोग आराम तालाब ज़िंदगी की तलाश में हैं उनके लिए यह क़स्बा बड़ा सही है .एक और क़स्बा कैप्रिस माइकलएंजेलो टस्कन प्रांत में इस योजना के लिए खुला है यह माइकल एंजेलो का जन्मस्थान है .

इन पर्वतीय सामुदायिक क़स्बों और गाँव को पुनर्जीवित करने के लिए €2,800,000 की कुल निधि आवंटित की गई है जिससे टस्कनी के वीरान होते इलाक़ों में नया जीवन अपने आ जाएगा. यहाँ केवल इटली ही नहीं सारे यूरोपीय यूनियन के लोगों को आमंत्रित किया है .

इन दिनों भारत में भी अवकाश प्राप्त लोग शहरों की भीड़ भाड़ और महँगी रहन सहन लागत से दुखी हो चुके हैं उन्हें अगर उत्तराखण्ड सरकार अगर वहाँ बसने का कोई विशेष पैकेज घोषित करे साथ ही इन भूतहा गाँव के क्लस्टर में मूलभूत स्वास्थ्य , परिवहन और अन्य ज़रूरी सुविधाओं का विकास करने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दे तो रिवर्स माइग्रेशन शुरू हो सकता है .
(लेखक स्टेट बैंक के सेवा निवृत्त अधिकारी हैं और विभिन्न सामाजिक विषयों पर निरंतर लेखन करते रहते हैं)

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