आज आशाएं करवट लेने लगी हैं,
सुप्त,सोए,सलौने सपने,
ओस में अलाव सेंकने लगे हैं,
क्षितिज चूमने का वक्त मयस्सर न हुआ,
नूतन-वर्ष कि बेला में सपने फिर बिम्बित होने लगे हैं।
उजाड़ घरौंदों से परिंदे शहर उड़ चुके थे,
बीते वर्ष के कुछ पदचिन्ह छोड़ चुके थे,
उम्मीदों के तिनके लिए फिर लोटने लगे हैं,
नव-वर्ष में नव-उड़ान भरने लगे हैं,
नूतन-वर्ष की बेला में घरौंदें फिर बिम्बित होने लगे हैं।
गत वर्ष कंपकंपाती बर्फीली हवाओं में,
प्रेम के कुछ दरख़्त ठूंठ बन चुके थे,
आस की शाखाओं से फिर गुले-गुलज़ार होने लगे हैं,
आगामी वर्ष में लम्हे घड़ी देखने लगे हैं,
नूतन-वर्ष की बेला में प्रेम-प्रसून फिर से बिम्बित होने लगे हैं।
गुज़रे कल वृद्धाश्रम में भीड़ बढ़ चुकी थी,
आपसी तकरारों की बर्फ जम चुकी थी,
बागों के माली अपने आशियानों में वापस आने लगे हैं,
नव-जीवन नव-चित्रहार बनाने लगे हैं,
नूतन-वर्ष में आंनद के अश्रू फिर बिम्बित होने लगे हैं।
संपर्क
एफ 6, ओल्ड हाउसिंग बोर्ड, शास्त्री नगर,
भीलवाड़ा (राजस्थान)