Friday, November 22, 2024
spot_img
Homeराजनीतिभाजपा को नये रास्ते बनाने होंगे

भाजपा को नये रास्ते बनाने होंगे

जबसे पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की कमजोर स्थिति सामने आयी है, एक शीर्ष वर्ग पार्टी के भीतर थोड़ा ठहरकर अपने बीते दिनों के आकलन और आने वाले दिनों के लिये नये धरातल को तैयार करने की वकालत करने लगा है। इन पांच राज्यों के चुनाव के परिणाम एवं लोकसभा चुनाव की दस्तक जहां भाजपा को समीक्षा के लिए तत्पर कर रही है, वही एक नया धरातल तैयार करने का सन्देश भी दे रही है। इस दौरान संघ के वरिष्ठ अधिकारी किशोर तिवारी ने संघ प्रमुख मोहन भागवत को पत्र लिखकर मांग की है कि भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पार्टी की बागडोर केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को सौंपी जानी चाहिए। वरिष्ठ भाजपा नेता संघप्रिय गौतम ने भी मांग की है कि मौजूदा पार्टी नेतृत्व को तीन राज्यों में हार की जिम्मेदारी लेकर पद छोड़ देना चाहिए। लेकिन यह तो भविष्य की रचनात्मक समृद्धि का सूचक नहीं है। वर्तमान को सही शैली में, सही सोच के साथ सब मिलजुलकर जी लें तो विभक्तियां विराम पा जाएंगी। मोहरे फेंकना ही नहीं, खेलना भी सिखना होगा। एक महासंग्राम की तैयारी पर ऐसा कुछ सोच सकते हैं जिसे परम्परा मानी जा सके। ऐसा कुछ कर सकते हैं जिसे इतिहास बनाया जा सके और ऐसा कुछ जीकर दिखाया जा सकता है जो औरो के लिये उदाहरण बन सके। गड्डरी प्रवाह में आदमी भागता अवश्य है मगर सही रास्ता नहीं खोज पाता। भाजपा को सही रास्ता खोजना है, प्रतिकूल हवाओं को अनुकूल करना है तो नये रास्ते बनाने ही होंगे।

संघ के नेताओं की मांग हो या केन्द्रीय मंत्री श्री नितीन गडकरी के स्वर हो या अन्य नेताओं के बयान- भाजपा में लोकसभा चुनाव से पूर्व व्यापक बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है। पार्टी में संगठन मंत्री रहे संजय जोशी को सक्रिय करने की कोशिशें भी जोर पकड़ रही है। इन बढ़ती चर्चाओं एवं स्वरों का अर्थ पार्टी में अन्तर्कलह या विद्रोह की स्थिति को कत्तई नहीं दर्शा रहा है, बल्कि आने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी की स्थिति सुदृढ़ बने, इसकी जद्दोजहद ही दिख रही है। उद्देश्यों को सुरक्षा देने वाली उन दीवारों से भाजपा को सुदृढ़ बनाने का प्रयत्न करना होगा जो हर आघात को झेलने की शक्ति दे।

इन दिनों नितिन गडकरी चर्चाओं में हैं। वे मोदी सरकार के महज एक मंत्री भर नहीं हैं। वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं और उस परिवार से आते हैं, जिसकी जड़ें आरएसएस से जुड़ी रही हैं। एक वक्त वे अपने निजी व्यवसाय की वजह से मीडिया की सुर्खियों में रहे और उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद गंवाना तक पड़ा था। इस वक्त वे अपने बयानों की वजह से चर्चा में हैं। उन्हें अपने हर बयान पर सफाई देनी पड़ रही है। लेकिन उनके बयान भाजपा के लिये अतीत को खंगालने का एवं भविष्य के लिए नये संकल्प बुनने की आवश्यकता को उजागर कर रहे हैं। देखना यह है कि उनके बयान क्या संदेश देकर जा रहा है और उस संदेश का क्या सबब है।

गडकरी ने पंडित नेहरू की तारीफ करते हुए कहा कि सिस्टम को सुधारने के लिए दूसरों की बजाए पहले खुद को सुधारना चाहिए। खुद को सुधारने का अर्थ है कि पार्टी एवं सरकार में नया धरातल एवं सोच तैयार हो। गडकरी ने असहिष्णुता को लेकर भी अपने विचार रखे और कहा कि सहनशीलता और विविधता में एकता भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण पहलू है। जवाहर लाल नेहरू कहते थे- इंडिया इज नॉट नेशन, इट इज ए पॉपुलेशन। उनका यह भाषण गडकरी बहुत पसंद है। उनका मानना है कि अगर कोई सोचता है कि उसे सब पता है तो वह गलत है। विश्वास और अहंकार में फर्क होता है। आपको खुद पर विश्वास रखना चाहिए, लेकिन अहंकार से दूर रहना चाहिए।

गडकरी ने यह भी कहा कि राजनीति सामाजिक आर्थिक बदलाव का कारक है। उन्होंने कहा कि चुनाव जीतना महत्वपूर्ण है, लेकिन अगर सामाजिक आर्थिक बदलाव नहीं होता है, देश और समाज की प्रगति नहीं होती है तो आपके सत्ता में आने और सत्ता से जाने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। उन्होंने कहा कि लोगों को साथ लेकर चलना चाहिए। आप बहुत अच्छे और बहुत प्रभावशाली हो सकते हैं, लेकिन अगर आपके साथ लोगों का समर्थन नहीं है तो आपके अच्छे या प्रभावशाली होने का कोई मतलब नहीं है। आजादी के सात दशक की यात्रा में न केवल देश की अस्मिता एवं अस्तित्व पर ग्रहण लगा बल्कि लोकतंत्र भी अंधकार की ओट में आ गया।

राष्ट्र में ये ग्रहणपूर्ण स्थितियां मनुष्य जीवन के घोर अंधेरों की ही निष्पत्ति कही जा सकती है। यहां मतलब है मनुष्य की विडम्बनापूर्ण और यातनापूर्ण स्थिति से। दुःख-दर्द भोगती और अभावों-चिन्ताओं में रीतती उसकी हताश-निराश जिन्दगी से। उसे इस लम्बे दौर में किसी भी स्तर पर कुछ नहीं मिला। उसकी उत्कट आस्था और अदम्य विश्वास को राजनीतिक विसंगतियों, सरकारी दुष्ट नीतियों, सामाजिक तनावों, आर्थिक दबावों, प्रशासनिक दोगलेपन और व्यावसायिक स्वार्थपरता ने लील लिया था। लोकतन्त्र भीड़तन्त्र में बदल गया था। दिशाहीनता और मूल्यहीनता बढ़ती रही है, प्रशासन चरमरा रहा था। भ्रष्टाचार के जबड़े खुले थें, साम्प्रदायिकता की जीभ लपलपा रही थी और दलाली करती हुई कुर्सियां भ्रष्ट व्यवस्था की आरतियां गा रही थीं। उजाले की एक किरण के लिए आदमी की आंख तरस रही थी और हर तरफ से केवल आश्वासन बरस रहे थें। सच्चाई, ईमानदारी, भरोसा और भाईचारा जैसे शब्द शब्दकोषों में जाकर दुबक गये थें। व्यावहारिक जीवन में उनका कोई अस्तित्व नहीं रह गया था। इस विसंगतिपूर्ण दौर में भाजपा पर लोगों ने विश्वास किया, इस विश्वास का खंडित होना आज भाजपा को गंभीर मंथन के लिये विवश कर रहा है। आखिर ऐसे क्या कारण बने? उन कारणों को खोजकर उन्हें दूर करना होगा।

सचाई यह है कि, अभी देश दुश्मनों से घिरा हुआ है, नाना प्रकार के षडयंत्र रचे जा रहे हैं। देश को बचाने के लिये नैतिकता से काम नहीं चलेगा, उसके लिये सशक्त एवं विजनरी सत्ता जरूरी है। बिना सत्ता के कुछ भी संभव नहीं हैं। आज चुनावी महासंग्राम में विभिन्न राजनीतिक दल जिस तरह से संविधान, नैतिकता एवं धर्म की बात कर रहे है तो लग रहा है जैसे हम पुनः महाभारत युग में आ गए हैं। जरूरी है कि जिस तरह महाभारत में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को नहीं चूकने दिया था, देश की जनता, संघ एवं भाजपा श्रीकृष्ण बनकर नरेन्द्र मोदी रूपी अर्जुन को भी नहीं चूकने दे।
भाजपा ने अपनी विचारधारा में व्यापक बदलाव किये हंै, जो उसके स्थायित्व के लिये जरूरी भी है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा को मिली हार से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का चिंतित होना स्वाभाविक है। आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर संघ नेतृत्व निश्चिंत नहीं है। वह भाजपा की जीत का फार्मूला तलाश करने के लिए लगातार मंथन कर रहा है। इसी सिलसिले में दिल्ली स्थित संघ मुख्यालय में क्षेत्र प्रचारकों के साथ सरकार्यवाह भैयाजी जोशी की बैठक हो चुकी है।

संघ को चिंता है कि किसानों की हालात को लेकर क्या कदम उठाए जा सकते हैं जिनका लाभ अगले दो से तीन महीने में दिखने लगे। रोजगार के अवसरों की कमी को लेकर युवाओं में व्याप्त बेचैनी को कैसे दूर किया जा सकता है? राम जन्मभूमि मंदिर मामले को कितना आगे ले जाया जा सकता है? क्या संगठन में बदलाव लाने की जरूरत है? संघ के अधिकारियों की भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से भी लगातार बात हो रही है। संघ का मानना है कि तीन राज्यों के चुनाव परिणामों से जाहिर है कि केंद्र सरकार के मौजूदा कामकाज के आधार पर लोकसभा चुनाव जीतना कठिन है। भाजपा नेता हालांकि इस बात से सहमत नहीं हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राम मंदिर मुद्दे को तूल दिए जाने पर सवाल उठाए। सरसंघचालक मोहन भागवत ने नागपुर में, सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने दिल्ली के रामलीला मैदान पर और सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने उसी दिन बंगलूरू में मंदिर बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा तुरंत कानून बनाए जाने की मांग की। जबकि भाजपा का मानना है कि राम मंदिर का मुद्दा उठाते ही नरेंद्र मोदी सरकार की पांच सालों की उपलब्धियाँ नेपथ्य में चली जाएंगी। सरकार की सारी योजनाएं, सारी मेहनत बेमानी हो जाएंगी। वैसे भी मामला अभी सुप्रीम कोर्ट के सामने है, इसलिए भाजपा चुनाव से ठीक पहले इस मामले पर कानून बनाने या अध्यादेश लाने के खिलाफ है।
भाजपा को अपनी हैसियत को नहीं भूलना है। उसे भूलने का अर्थ होगा अपने कत्र्तृत्व के कद को छोटा करना, स्वयं की क्षमताओं से बेपरवाह रहकर औरों के हाथों का खिलौना बनना। प्रेषक

 

 

 

 

 

 

(ललित गर्ग)
बी-380, निर्माण विहार, दूसरा माला दिल्ली-110092
मो, 9811051133

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार