Thursday, December 26, 2024
spot_img
Homeदुनिया मेरे आगेपुस्तकें हमारे अंदर आत्मविश्वास पैदा करती है

पुस्तकें हमारे अंदर आत्मविश्वास पैदा करती है

मुंबई।  किसी क्लब का नाम सुनते ही मन में एक ऐसी जगह की छवि उभरती है जहाँ खेलकूद और पार्टियों का माहौल बना रहता है, लेकिन गोरेगाँव स्पोर्ट्स क्लब इस मायने में एकदम अलग नई छवि गढ रहा है। यहाँ खेलकूद भी है पार्टियों का दौर भी होता है लेकिन साथ ही भारतीय वार त्यौहार, उत्सव व साहित्यिक कार्यक्रमों का भी आयोजन निरंतर होता रहता है। होली और गणगौर से लेकर महिला दिवस पर महिलाओं के लिए महिलाओं द्वारा ही आयोजित रंगारंग कार्यक्रम ने अपनी अलग पहचान बनाई। इसी क्रम में विश्व पुस्तक दिवस पर आयोजित कार्यक्रम अपने आप में अनूठा और यादगार रहा।
विश्व पुस्तक दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में जाने माने फिल्म निर्माता निर्देशक जेडी मजीठिया और जानी मानी लेखिका रीता राममूर्ति गुप्ता की उपस्थिति में पुस्तकों की दुनिया पर रोचक चर्चा हुई।

फिल्म अभिनेता संजीव कुमार के जीवन पर पुस्तक लिखने वाली रीता राममूर्ति गुप्ता ने कहा कि वो संजीव कुमार से कभी मिली नहीं लेकिन उनके परिवार के लोगों के साथ ही उन सभी लोगों से मिली जो संजीव कुमार से परिचित थे या उनके संपर्क में थे। परिवार के लोगों से उनकी आदतों के बारे में जाना, उनके व्यक्तित्व को जानने या समझने का प्रयास किया। अमिताभ बच्चन और परेश रावल से भी मिलने का मौका मिला और उनसे भी संजीव कुमार के बारे में बहुत कुछ जाना। जब संजीव कुमार पर शोध शुरु किया तो उन पर लिखे 6 भाषाओं में 1200 लेख मिले। मुझे खुद को 6 भाषाएँ आती है इसलिए मुझे ये सभी लेख पढ़ने और समझने में परेशानी नहीं आई।

किसी के जीवन पर पुस्तक लिखने को लेकर रीता जी ने कहा, किसी भी व्यक्ति की जीवनी आने वाली कई पीढ़ियों के लिए एक दस्तावेज की तरह होती है। यदि इसमें एक भी बात गलत होती है तो उस व्यक्ति का पूरा व्यक्तित्व खंडित हो जाता है और आने वाली पीढ़ियाँ भी उसके बारे में गलत धारणा बना लेती है। उन्होंने कहा कि जीवनी लिखने वाला लेखक जो भी लिखना चाहता है उसे उसको सत्यापित करके ही लिखना चाहिए। संजीव कुमार के परिवार के पास उनको लिखे गए कई प्रेम पत्र थे, लेकिन ये सब उनकी जीवनी का हिस्सा नहीं बनाए गए।

उन्होंने कहा कि आप अगर मात्र 6 मिनट ही पुस्तक पढ़ने की आदत डाल लेंगे तो आप पुस्तकों से प्रेम करने लगेंगे। बच्चों में पुस्तक पढ़ने की आदत डालने को लेकर रीता जी ने कहा कि बच्चों के सामने उनकी अलमारियों में किताबें रखिए मगर उन पर पुस्तक पढ़ने का दवाब मत डालिये, पुस्तकों की नजदीकी ही उनको पढ़ने के लिए प्रेरित करेगी। पुस्तकें पढ़ने से पाठक की सोच और दृष्टि भी बदलती है और कल्पनाशक्ति भी। पुस्तक का एक एक शब्द पाठक को रोमांचित करता है। हमारे अनुभव बहुत सीमित होते हैं जबकि पुस्तकें हमें सैकड़ों अनुभवों से समृध्द कर देती है।

जाने माने अभिनेता निर्माता निर्देशक जेटी मजीठिया ने अपने रोचक और चुटेली अंदाज में श्रोताओं से संवाद स्थापित किया। उन्होंने कहा कि समझदारी और समझ आने में बहुत समय लगता है। फिक्शन और जीवनी में बहुत अंतर होता है।

उन्होंने फिल्म और टीवी धारावाहिक निर्माण से जुड़ी यादों को साझा करते हुए बताया कि सिया के राम नामक एक धारावाहिक रामायण पर बनाया गया था, लेकिन 60 -70 एपिसोड बनने के बाद भी उसकी टीआरपी नहीं आ रही थी उसके 40 एपिसोड बचे थे। जब ये बात लेखक को बताई तो उसने कहा कि इसमें एक नया एंगल डाल देते हैं कि प्रभु  राम जब वनवास पर गए तो अयोध्या में दशरथ के महल में मौजूद चार भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न की बहुओं में आपस में क्या बात हो रही होगी, अगर ऐसा कुछ बताएंगे तो टीआरपी आ जाएगी। हालाँकि ये प्रयोग नहीं किया गया मगर फिल्मी दुनिया में एक अलग तरह की सोच चलती है।

मजीठिया जी ने बताया कि मैने जब अपनी बेटी को समझाया कि महाभारत में पूरी दुनिया की कहानी छुपी है। उसी समय टीवी पर एक नया महाभारत धारावाहिक शुरु होने जा रहा था तो इस महाभारत में पहले दृश्य की शुरुआत ही द्रौपदी के चीरहरण से हुई, इस पर मेरी बेटी ने आश्चर्य से कहा कि क्या यही आपकी महाभारत है- अब मैं उसको क्या जवाब देता।

जेडी मजीठिया और रीता राममूर्ति गुप्ता ने कहा कि बच्चों को किसी तरह की पुस्तक पढ़ने का सुझाव मत दो, उसे जिस विषय पर पुस्तक पढ़ना होगी वो खुद खोजकर पढ़ लेगा। जो बच्चा पुस्तकें पढ़ने लगता है वो अपनी खुद की एक नई दुनिया बना लेता है। पुस्तक पढ़ना बैंक में पैसे जमा करना जैसा है। उन्होंने कहा कि जिंदगी की हर समस्या का हल किसी न किसी पुस्तक में है और आप अपनी समस्या में उलझे हैं तो आप ऐसी पुस्तक तक पहुँच ही जाएंगे जिसमें आपकी समस्या का हल छुपा हो।

सुश्री रीता रामकृष्ण गुप्ता ने कहा कि पुस्तकें आपको जिम्मेदार बनाती है।

श्री जेडी मजीठिया ने कहा कि पुस्तक आपमें आत्मविश्वास पैदा करती है। उन्होंने कहा कि माता-पिता की बातें किसी भी पुस्तक से ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि वो हमें जो भी कुछ कहते हैं उसमें उनका कई साल का अनुभव छुपा होता है, लेकिन हम उसे समझ नहीं पाते हैं और उनकी बात को अनसुना कर देते हैं।

दोनों अतिथियों ने उपस्थित श्रोताओं से संवाद किया और श्रोताओं के सवालों के जवाब भी दिए।

कार्यक्रम के सूत्रधार फिल्म अभिनेता करण ओबेरॉय वक्ताओं और श्रोताओं के बीच तालमेल स्थापित नहीं कर पाए, वे अपनी बात क्रिकेट कमेट्री की शैली में इतनी जल्दबाजी में कहते रहे कि उनकी हर बात श्रोताओं के सिर के ऊपर से निकलती रही।

कार्यक्रम के आयोजन में कार्यक्रम के संयोजक व प्रोजेक्ट चैअरमैन भरत गाला, विटी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन की श्रीमती रैना विनय जैन, श्री प्रदीप बंका की प्रमुख भूमिका रही।

सभी अतिथियों को श्री मितेश गायवाला ने पौधे भेंट किए।

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार