हाल ही में सार्वजिनक किए गए नेता जी से जुड़े दस्तावेजों से इस बात की पुष्टि हुई है कि आजाद हिंद फौज का खजाना चुराया गया था। साल 1951 से 1955 के दौरान भारत और जापान के बीच हुई बातचीत से जाहिर होता है कि तत्कालीन नेहरू सरकार को इस खजाने के गबन के बारे में पता था, लेकिन ऐसा मालूम पड़ता है कि इस मामले को दूसरी तरह से डील किया।
नैशनल आर्काइव की गोपनीय फाइलों से पता चलता है कि सरकारी अधिकारियों को नेता जी के दो पूर्व सहयोगियों पर शक था। उनमें से एक सहयोगी को सम्मान दिया गया और नेहरू की पंचवर्षीय योजना कार्यक्रम का पब्लिसिटी अडवाइजर बनाया गया। आजाद हिंद फौज के खजाने को उस समय सात लाख डॉलर के बराबर आंका गया था। आजाद हिंद फौज के खजाने के गबन के बारे में सबसे पहले अनुज धर ने अपनी किताब में विस्तार से जिक्र किया था। साल 2012 में छपी इस किताब का नाम ‘इंडियाज बिगेस्ट कवर-अप’ था।
21 मई, 1951 को तोक्यो मिशन के हेड के. के. चित्तूर ने राष्ट्रमंडल मामलों के सचिव बी. एन. भट्टाचार्य को सुभाष चंद्र बोस के दो सहयोगियों- प्रॉपेगैंडा मिनिस्टर एस. ए. अय्यर और तोक्यो में आजाद हिंद फौज के हेड मुंगा रामामूर्ति के बारे में संदेह जाहिर करते हुए लिखा था, ‘जैसा कि आपको बेशक पता होगा, इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के फंड के बेजा इस्तेमाल को लेकर रामामूर्ति के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। इसमें स्वर्गीय सुभाष चंद्र बोस की निजी संपत्ति भी शामिल है, जिसमें बड़ी मात्रा में हीरे, जूलरी, सोना और अन्य कीमती चीजें हैं। यह सही हो या गलत लेकिन अय्यर का नाम भी इन आरोपों से जोड़ा जा रहा है।’
के. के. चित्तूर ने 20 अक्टूबर, 1951 को जापानी सरकार द्वारा मिशन को दी गई गोपनीय जानकारी के हवाले से लिखा, ‘बोस के पास बड़ी मात्रा में गोल्ड जूलरी और कीमती रत्न थे, लेकिन उस दुर्भाग्यपूर्ण फ्लाइट में उन्हें केवल दो सूटकेस के साथ यात्रा करने की इजाजत दी गई।’ तोक्यो मिशन के हेड की रिपोर्ट में लिखा गया गया है, ‘रामामूर्ति और अय्यर ने जो चीजें हमें सुपुर्द की हैं, बोस के पास यकीनन उससे बहुत ज्यादा होगा। और यहां तक कि विमान हादसे से खजाने को हुए नुकसान के लिए मुआवजे से भी ज्यादा रहा होगा।’
रिपोर्ट कहती है कि नेता जी का खजाना उनके अपने वजन से भी ज्यादा था। रिपोर्ट में एक ऐसे व्यक्ति का भी जिक्र है, जिसने अय्यर के कमरे में नेता जी के खजाने के संदूकों देखा था। वह बक्से से कुछ चीजें खरीदने के लिए पहुंचा था। रिपोर्ट में लिखा गया है, ‘बाद में इसके बाद इन संदूकों का क्या हुआ, यह एक रहस्य ही है क्योंकि अय्यर के पास से हमें सिर्फ 300 ग्राम सोना और 260 रुपये नकद मिला।’ एक नवंबर, 1955 को इस बारे में एक और गोपनीय रिपोर्ट विदेश मंत्रालय ने प्रधानमंत्री के लिए तैयार की। प्रधानमंत्री को इस मामले की हर बात शुरू से पता थी।
रिपोर्ट का टाइटल था, ‘आजाद हिंद का खजाना और अय्यर और रामामूर्ति द्वारा इसका इस्तेमाल।’ रिपोर्ट लिखने वाले आर. डी. साठे ने इस बात की पुष्टि की, ‘जापान में अय्यर की गतिविधियां संदिग्ध थीं।’ साठे के लिखे नोट पर प्रधानमंत्री के दस्तखत थे और पांच नवंबर, 1951 की तारीख दर्ज है और विदेश सचिव की नोटिंग दर्ज है, ‘प्रधानमंत्री ने नोट देखा है।’
रामामूर्ति जापान में फलते-फूलते रहे और अय्यर को दिल्ली लौटने पर प्रधानमंत्री ने गर्मजोशी से स्वागत किया। आजाद हिंद फौज के खजाने के गबन में अय्यर का नाम होने के बावजूद नेहरू ने उन्हें 1953 पंचवर्षीय योजना कार्यक्रम का पब्लिसिटी अडवाइजर बना दिया।
साभार- टाईम्स ऑफ इंडिया से