भारत के इतिहास के प्राचीन काल में कई प्रकार के ऋषि , महऋषि , देवऋषि आदि कई रुपों में इन की चर्चा सुनने को मिलती है । किसी साधु के लिए , किसी संन्यासी के लिए इतने सम्बोधन क्यों ? जब हम इस की महीनता से जांच करते हैं तो हम पाते हैं कि यह आज की ही भान्ति विभिन्न प्रकार की योग्याताओं सम्बन्धी उपाधियां ही होती थीं जैसे कोई शिक्षा का दान करने वाला है , कोई वैज्ञानिक है , कोई सी. ए, है तो कोई चिकित्सक है । इस प्रकार ही ऋषि , महर्षि , देवऋषि , ब्रह्मऋषि आदि उपाधियाँ , उनकी योग्यता के आधार पर उनके कार्य, उनके व्यवसाय के आधार पर होती थीं । यह भी अध्यापक, चिकित्सक, वैज्ञानिक आदि विभिन्न स्तरों पर होते थे । इन में महिला और पुरुष दोनों प्रकार के लोग आज की ही भान्ति होते थे ।
कुछ इस प्रकार की ही अवस्था में हम एक बहुत बड़े ऋषि अत्रि के सम्बन्ध में पाते हैं । उनके प्रभाव व प्रयास का परिणाम हुआ कि उनकी सुपुत्री ने वेद पर अत्यधिक कार्य किया और उसने ऋग्वेद के अष्टम मण्डल के सुक्त संक्या ९१ पर अत्यधिक कार्य किया । इसकी ऋचा संख्या १ से ले कर सात तक खूब चिन्तन मनन किया तथा इतना अधिक कार्य किया कि उसका कार्य अन्यतम हो गया । इस कारण ऋग्वेद के अष्टम मण्डल सूक्त ९१ की ऋचा १ से ७ तक के सब मन्त्रों की उसे ऋषि स्वीकार किया गया और आज तक वह इन मन्त्रों की ऋषि चली आ रही है ।
अत्रि ऋषि के इस अत्रि वंश में ही आगे चलकर एक अन्य विदुषी कन्या भी उत्पन्न हुई इस कन्या का नाम विश्ववारा था । इस कन्या की भी वेद में अत्यधिक रुचि थी । मेधावी तो यह थी ही । इस की विशेष रुचि अतिथि सत्कार के समबन्ध में थी । इसलिए इस ने ऋग्वेद के अतिथि सत्कार सम्बन्धी मन्त्रों को पकड़ा तथा इन मन्त्रों पर कार्य करने लगी । उसने इन मन्त्रों पर भरपूर चिन्तन किया , भरपूर मनन किया तथा इन मन्त्रों को पूरी भान्ति से आत्मसात् कर लिया । उसके इस चिन्तन – मनन , उसके इस पुरुषार्थ का यह परिणाम हुआ कि उसने ऋग्वेद के पांचवें मण्डल द्वितीय अनुवाक के अठ्ठाइसवें सूक्त का साक्षात् दर्शन करते हुए , इसके गहन रहस्यों से साक्षात् किया , इन्हें समझा तथा इन की विषद् व्याख्या की । इस कारण इसे भी अपाला की ही भान्ती इस सूक्त का ऋषि पद प्राप्त हो गया ।
विश्ववारा ने अपने प्रयोगों के द्वारा जाना कि किस विधि से एक स्त्री को अपने घर आये अतिथि का सावधानी पूर्वक सत्कार करना चाहिये । अतिथि सत्कार के साथ ही एक अन्य रहस्य से भी इस विश्ववारा ने पर्दा उठाते हुए स्पष्ट किया कि यज्ञ के लिए कौन सी तथा कैसे हविष्य पदार्थ दिए जावें तो इस के क्या परिणाम निकलेंगे । उसने यह भी बताया कि यज्ञ में विभिन्न उपयोगों के लिए कौन – कौन सी सामग्री का प्रयोग किया जावे , जिस से हमारा यह यज्ञ का कार्य , यज्ञ का उद्देश्य सिद्ध हो । इसके साथ उसने इस तथ्य को भी भली – भान्ति समझ कर स्पष्ट किया कि अपने पति के प्रजापत्य अग्नि की भी रक्षा पत्नी को ही करनी चाहिये । जब वह पति के प्रजापत्य की रक्षा करती है तो वह उतम, सन्तान की अधिकारी भी बन जाती है ।
डॉ.अशोक आर्य
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Sent: Wed, 27 May 2020 14:13:25
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