रेल मंत्री सुरेश प्रभु के पास इस सरकार में सबसे चुनौती भरा काम है और वह काम है बेहद कम वित्तीय संसाधनों में भारी भरकम रेल को चलाना और अतिरिक्त क्षमता तैयार करना। बिजनेस स्टैंडर्ड के पत्रकारों के साथ बातचीत में प्रभु ने बताया कि रेलवे प्रणाली में वह किस तरह बदलाव लाएंगे। प्रमुख अंश:
भारतीय रेल की माली हालत के बारे में और उसका कायाकल्प करने के बारे में आप क्या सोचते हैं?
रेलवे को बेहतर बनाना अलग किस्म की चुनौती है। यदि कोई मंत्रालय स्वतंत्र होता है तो उसे अधिक बजट सहायता नहीं मिलती। हम अपनी रेल की तुलना जापान, चीन, कोरिया और यूरोप की वैश्विक रेल प्रणाली से करते हैं। यह ठीक नहीं है क्योंकि वे पिछले 30 साल की अपनी मेहनत की वजह से आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं। हमें रेलवे के लिए एक दृष्टिï की जरूरत है। बुनियादी ढांचा वहां बनाया जाना चाहिए, जहां उससे कोई मकसद पूरा हो सके। मिसाल के तौर पर तिब्बत से लद्दाख की सीमा पर लाइन बिछाने का क्या फायदा? इसीलिए हमने लाइनों को दोहरी और तिहरी करने का फैसला किया। हमें एलआईसी से कम ब्याज दर पर 1.5 लाख करोड़ रुपये मिले हैं। हम जरूरत के मुताबिक निवेशक ढूंढ रहे हैं।
वित्तीय मोर्चे पर रेलवे के सामने प्रमुख चुनौती क्या हैं?
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के कारण हम पर 32,000 करोड़ रुपये का नया बोझ पड़ रहा है। यह बड़ी चुनौती है। हमें ज्यादा माल ढुलाई का मौका भी नहीं मिल रहा है। इस वित्त वर्ष में हमने 118.5 करोड़ टन का लक्ष्य रखा था, लेकिन माल है ही नहीं। बिजली संयंत्र ज्यादा कोयला नहीं मंगा रहे हैं, आयात और निर्यात नीचे जा रहे हैं और इस्पात की आवाजाही भी कम है। हम इस चुनौती से कई तरह से निपटनेंगे। हमने ऊर्जा के खर्च में 3-4 हजार करोड़ रुपये की कमी की है। रेलवे बिजली का सबसे बड़ा ग्राहक है और ऊंची कीमत देता है। हमने इसकी जगह खुली बोली लगवाई और आधे दाम में ही बिजली मिल गई।
क्या माल ढुलाई में कमी के कारण ही आपका परिचालन अनुपात 100 हो गया है?
साल पूरा होने से पहले अनुपात नहीं निकाला जाता।
जापानियों के साथ बुलेट ट्रेन का समझौता आपने कैसे किया?
जापानियों से बुलेट ट्रेन के लिए कर्ज 50 साल के लिए 0.1 फीसदी की ब्याज दर पर मिला है। हमें लोगों को समझाना है कि बुनियादी ढांचे में निवेश के बगैर आप उस स्तर तक नहीं पहुंच सकते। निवेश के लिए एक ही स्रोत से रकम मिलना नामुमकिन है। हमें हमेशा विकल्प तलाशना चाहिए। बुलेट ट्रेन का 80 से 85 फीसदी हिस्सा भारत में बनेगा और भारत को उसे बनाने का अनुभव हासिल हो जाएगा, जो बहुत बड़ा फायदा होगा। हमने जापान से समग्र साझेदारी की बात की और वे राजी हो गए।
400 स्टेशनों के पुनर्विकास की योजना की क्या प्रगति है?
हम बुनियादी प्रस्ताव वेबसाइट पर डाल चुके हैं। पूरी तरह पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जा रही है। हमारे पास बिना मंगाए बोली नहीं आएगी। बोली देने वालों की डिजाइन को वित्तीय समिति के तकनीकी विशेषज्ञ जांचेंगे। स्टेशनों का इस्तेमाल केवल वााणिज्यिक उद्देश्य के लिए किया जाएगा। उनकी बागडोर रेलवे के हाथ में होगी। यात्रियों की संख्या से ही स्टेशन की अहमियत होगी। हमें उन स्टेशनों का पुनर्विकास करना होगा, जहां यात्री बहुत अधिक आते हैं।
ऊर्जा खर्च कम करने की रणनीति क्या है?
हम अपनी सभी इकाइयों का ऊर्जा ऑडिट कर रहे हैं। एलईडी लाइट, सौर ऊर्जा के जरिये ऊर्जा संरक्षण कर रहे हैं और बिजली सीधे खरीद रहे हैं। नबीनगर बिजली संयंत्र भी हमारे काम आ रहा है। इस तरह लागत कम की जा रही है। हम ज्यादा से ज्यादा विद्युतीकरण कर रहे हैं और बिजली की लागत घटा रहे हैं। मैंने 26 फरवरी को अपने बजट भाषण में चार बातें कही थीं – अधिकार तय करना, जो मैंने कार्यभार संभालते ही कर दिए। दूसरी बात लेखा सुधार थी, तीसरी के वी कामत की अध्यक्षता में वित्तीय प्रकोष्ठï बनाना थी और चौथी बात नियामक का गठन थी। इनमें से ज्यादातर पर काम चल रहा है।
लोग मानते हैं कि रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन की जरूरत है। क्या ऐसा हो रहा है?
किस मंत्रालय के पास रेलवे बोर्ड जैसा ढांचा नहीं है? हमने पहले ही क्षेत्रों को अधिकार दे दिए हैं। उनके पास कंपनियों जैसी स्वायत्तता हो गई है। अब सुधारों पर काम करने की जरूरत है। सब कुछ बिगाड़ देना हल नहीं है। हमने महा प्रबंधकों, मंडल रेल प्रबंधकों को पहली बार इतने अधिकार दिए हैं।
आप माल ढुलाई को सड़क से माल ढुलाई के मुकाबले बेहतर कैसे बनाएंगे?
रेलवे की माल ढुलाई का बड़ा हिस्सा सड़कों पर चला गया क्योंकि आजादी के बाद से ही सड़कों में निवेश किया गया। अगर कोई माल ढुलाई का इच्छुक है और माल को एक छोर से दूसरे छोर तक सीधे ले जाना चाहता है तो जाहिर तौर पर वह सड़क के रास्ते ही जाएगा। इसलिए अगर मुझे गंवाया हुआ हिस्सा वापस चाहिए तो सबसे पहले मैं बुनियादी ढांचे में कम से कम उतनी रकम तो लगाऊंगा ही, जितनी सड़कों में लग रही है। उम्मीद है कि साढ़े तीन साल में समर्पित माल ढुलाई गलियारा शुरू होने से बहुत कुछ बदल जाएगा।
क्या ई-कॉमर्स की दुनिया के साथ फिर तालमेल करने और आईआरसीटीसी को नया रूप देने का इरादा है, जो बड़ा ई-कॉमर्स पोर्टल है?
आईआरसीटीसी ई-कॉमर्स कंपनी है क्योंकि वह हरेक सौदे के बदले शुल्क लेती है। हमें इसकी क्षमता को और इसके विशाल ग्राहक आधार को भुनाना होगा। गैर-रेल स्रोतों से कमाई बढ़ाने का यह भी एक तरीका है। इसलिए हमने बड़ी जिम्मेदारी अपने कंधे पर ले ली है और हमने एसबीआई कैप्स से इसे देखने के लिए कहा है। स्टेशन का पुनर्विकास हो या आईआरसीटीसी जैसी कंपनी हों, हमें हरेक तरीके से अपनी कमाई बढ़ानी है। वास्तव में उसी प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल दूसरे वाणिज्यिक सौदों के लिए किया जा सकता है। हम आईआरसीटीसी की संपत्तियों से कमाई के लिए कारोबारी योजना तैयार कर रहे हैं।
आपने बड़े सुधारों की बात तो कर ली, लेकिन क्या रेलवे यूनियन उनके पक्ष में हैं?
हम यूनियनों के साथ लगातार बात कर रहे हैं। नई पहलों को तलाशने के लिए गठित समिति ‘कायाकल्प’ में वे भी शामिल हैं।