जो काम अमेरिका फ्रांस भारत रूस कोई नहीं कर पाया…वो बर्मा के विराथू जी ने कर दिखाया…आज बर्मा में करोड़ों रुपये से बनी मस्जिदें वीरान पड़ी हैं.. क्योंकि आज इस देश मे मुसलमान देखने को नहीं मिलते हैं।
1968 में जन्मे अशीन विराथु ने 14 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया और भिक्षु का जीवन अपना लिया था. म्यांमार का रंगून के बाद दूसरा सबसे बड़ा शहर है मांडले. यहीं पर विराथू का बौद्ध मठ है. यहीं पर वो और उनके हजारों समर्थक बौद्ध भिक्षु रहते हैं. इस मठ में घुसते ही खूँख्वार तस्वीरें दिखने लगती हैं. कहा जाता है ये मुस्लिमों द्वारा मारे गए बौद्धों की तस्वीरे हैं. उल्लेखनीय है कि 12-15 साल पहले मांडले के इस बौद्ध भिक्षु के बारे में बहुत कम लोगों ने सुना था. मगर 2001 में जब वो राष्ट्रवादी और मुस्लिम विरोधी गुट ‘969’ के साथ जुड़े तो चर्चा में आ गए.
जैसे मुसलमानों का ‘७८६’ का नंबर लकी माना जाता है वैसे ही विराथु ने ‘९६९ ‘ का नंबर निकाला और उन्होंने पूरे देश के लोगों से आह्वान किया कि जो भी राष्ट्रभक्त बौद्ध है वो इस स्टीकर को अपने अपनी जगह पर लगाएँ.! यह संगठन बौद्ध समुदाय के लोगों से अपने ही समुदाय के लोगों से खरीदारी करने, उन्हें ही संपत्ति बेचने और अपने ही धर्म में शादी करने की बात करता है. ‘969’ के समर्थकों का कहना है कि यह पूरी तरह से आत्मरक्षा के लिए बनाया गया संगठन है जिसे बौद्ध संस्कृति और पहचान को बचाने के लिए बनाया गया है.
म्यांमार के एक सबसे बड़े शहर मंडालय के मासोएयिन में युवा भिक्षुओं को बौद्ध धर्म का उपदेश दे रहे शिन विराथू का मानना है कि उनका देश मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमले की चपेट में है. उनका कहना है, ”मुस्लिम तभी तक बेहतर व्यवहार करते हैं जब तक वे कमजोर होते हैं. जब वे मजबूत हो जाते हैं तो भेड़िए की तरह व्यवहार करने लगते हैं जो अपने क्षेत्र के जानवरों को खा जाता है.” विराथू का मानना है कि म्यांमार को एक इस्लामिक राज्य बनाने के लिए मुस्लिम एक ‘मास्टर प्लान’ पर काम कर रहे हैं.
बर्मा की छह करोड़ की आबादी में 90 फीसदी बौद्ध और करीब 5 फीसदी मुस्लिम समुदाय के लोग हैं.
विराथू का कहना है, ”पिछले 50 सालों में हमने मुस्लिम समुदाय की दुकानों से खरीदारी की और इस कारण वे अमीर बन गए. वे हमसे धनी बन गए और वे हमारी लड़कियों को खरीद और उनसे शादी कर सकते हैं. इस तरह उन्होंने न केवल हमारे राष्ट्र बल्कि हमारे धर्म को भी तबाह किया है.” और फिर आतंक की बीमारी झेल रहे म्यांमार के लोग एकजुट हो गए वो विराथु के लिए जान लेने और देने को तैयार हो गए। पूरे म्यांमार से अवैध मुसलमानो को खदेड़ा जाने लगा…!
विराथू का कहना है, ”पहले धर्म और जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता था. हम भाईचारे के साथ रहते थे, लेकिन मुसलमानों के मास्टर प्लान के बारे में पता चलने के बाद हम और अधिक चुप नहीं रह सकते.”
उनके संदेश सोशल मीडिया और डीवीडी के जरिए खूब प्रसारित किए जा रहे हैं. इतना ही नहीं अब विराथू को शीर्ष पदों पर बैठे लोगों का समर्थन भी मिल रहा है.
म्यांमार में विराथू के बढ़ रहे कद के बारे में कहानियों की कमी नहीं है. कुछ लोगों का मानना है कि म्यांमार की राजनीति में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए सेना धार्मिक उन्माद का इस्तेमाल कर सकती है.
इसलिए वह अब पूरे देश में घूम-घूम कर भिक्षुओं तथा सामान्यजनों को उपदेश दे रहे हैं कि…यदि हम आज कमजोर पड़े,तो अपने ही देश में हम शरणार्थी हो जाएंगे…म्यांमार के बौद्घों के इस नये तेवर से पूरी दुनिया में खलबली मच गई है…दुनिया भर के अखबारों में उनकी निंदा में लेख छापे जा रहे हैं परन्तु पूज्य चरण अशीन विराथु को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा।
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अशीन विराथू के निशाने पर रहते हैं मुसलमान. खासकर रोहिंग्या मुसलमान. ये जो रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा उठा हुआ है, उसमें इनका भी बड़ा हाथ है. अशीन विराथू की शोहरत 1 जुलाई 2013 को टाइम मैगजीन तक पहुंच गई. मैगजीन के फ्रंट पेज पर उनकी बढ़िया चमचमाती तस्वीर छपी. हेडिंग भी खतरनाक थी- बुद्धिस्ट आतंकवाद का चेहरा.
अशीन विराथू को 2003 में 25 साल कैद की सजा सुनाई गई थी. आरोप यही मुस्लिमों के खिलाफ आग उगलने के थे. पर करीब 7 साल बाद यानी 2010 में उन्हें अन्य राजनैतिक बंदियों से साथ रिहा कर दिया गया. इसके बाद से ही विराथू अपने मुस्लिम विरोधी मिशन में और सक्रिय हो गए. 2012 में जब राखिने प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्धों के बीच हिंसा भड़की तो वे अपने भड़काऊ भाषणों के साथ लोगों की भावनाओं से जुड़ गए. उन्होंने अपने आग उगलते भाषणों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया यानी फेसबुक और यूट्यूब का भी सहारा लिया. फेसबुक पर उनके पेज के 4 लाख से भा ज्यादा फॉलोअर हैं.
अपने चुनावी कैंपेन से लेकर अपने फैसलों में मुस्लिम विरोधी रुख अख्तियार कर चुके अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप विराथू के पसंदीदा राजनेता हैं. उनका कहना है कि ट्रंप ही विश्व में इकलौते नेता हैं जो मुस्लिमों के वर्चस्व के सामने डटकर खड़े हैं.
दशकों के संघर्ष के बाद म्यांमार में लोकतांत्रिक सरकार तो आ गई, मगर रोहिंग्या मुस्लिमों के मसले पर वो भी खुलकर बोलने से घबराती है. आंग सान सू की यहां की बड़ी नेता हैं, मगर वो भी इस मुद्दे पर शांत हैं. मलाला यूसुफजाई से लेकर कई नोबेल विजेताओं ने इस बात से नाराजगी जताई है. विराथू के खिलाफ कार्रवाई करने से भी सरकार हिचकिचाती है. सरकार का साफ कहना है कि वो कार्रवाई तब ही करेंगे जब कोई शिकायत आएगी और शिकायत आती नहीं है.