Saturday, November 23, 2024
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क्या हम हमारे पुरखों की गौरवशाली विरासत को सम्हाल पाए

महू। हमारे पुरखों ने जिन मूल्यों को लेकर अपने प्राणों का उत्सर्ग किया, उसे हमारी नई पीढ़ी ने कितना सम्हाला है, यह सवाल बड़ा है। आज हम इस बात के लिये गर्व से भरे हैं कि आजादी के अमृत पर्व के अवसर पर उन बिसरा दिए गये स्वाधीनता संग्राम के शहीदों का स्मरण कर रहे हैं । यह बात झारखंड विवि के प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर द्विवेदी मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। डॉ बी. आर. अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय एवं हेरीटेज सोसाईटी, पटना के संयुक्त तत्वावधान में कानपुर के अनजान स्वतंत्रता सेनानी विषय पर आयोजित वेबिनार में प्रो द्विवेदी ने कहा कि भारत को दो अलग कालखंड में देखा जाना चाहिए। पहला 1857 के पहले और दूसरा 1857 से 1947 का। 1857 की लड़ाई हम भारतीयों के आजादी की लड़ाई थी और अंग्रेजों के लिये विद्रोह। स्वाधीनता संग्राम में कानपुर की गम्भीर भूमिका रही है लेकिन आज भी इतिहास में अनेक सेनानियों का उल्लेख नहीं मिलता है।

प्रो द्विवेदी ने याद करते हुए कहा कि हताश अंग्रेजी सेना कानपुर छोड़ कर जा रहे थे कि अचानक अंग्रेजी सिपाहियों ने सेनानियों पर गोलियाँ चला दी। इससे स्थिति बेकाबू हो गया। कई अंग्रेज सिपाही को मौत के घाट उतार दिए गए। नाना जी राव ने अंग्रेजी महिला एवं बच्चों को बीवी घर में सुरक्षित रखने के निर्देश दिये। इस घटना से इंग्लेड में गुस्सा था और सेनानियों पर अत्याचार बढ गया था। इस बीच बीवी घर पर हमला कर उन्हें मार दिया गया। गुस्साये अंग्रेजी शासन ने कानपुर के बरगद के पेड़ में 133 सेनानियों को फांसी पर चढा दिया गया था। यह शक्ति चौरा के नाम से प्रसिद्ध है। उन्होंने कहा कि जिस भवन से प्रताप का प्रकाशन होता है, आज वह खँडहर बन चुका है। प्रो द्विवेदी ने ऐसे ही अनेक प्रसंगों और घटनाओं का उल्लेख किया।

कार्यकम के विशिष्ट अतिथि देवी अहिल्या विवि में कांमर्स विभाग प्रो. आर के शुक्ला ने कहा कि उनकी यादें कानपुर से जुडी हुई है। उन्होने अनेक प्रसंगों का उल्लेख किया।
वेबिनार के आरम्भ में कार्यक्रम की अध्यक्ष एवं बौद्ध पीठ की मानद आचार्य प्रो. नीरू मिश्रा ने अतिथियों का स्वागत किया। आभार प्रदर्शन हेरीटेज सोसाईटी के महानिदेशक डा. अनंतातुशोष द्विवेदी ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया। वेबिनार का संचालन डॉ अजय दुबे ने किया।

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