प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। इसके दम पर कोई भी व्यक्ति समाज में अलग पहचान बना सकता है और सभी बाधाओं को पार कर सफलता का स्वाद चख सकता है। इस बात को सिद्ध किया है मुंगेली से 16 किमी दूर सेतगंगा, खैरा की रामफूल टोंडर ने।
अंतरराष्ट्रीय व्हीलचेयर प्रतियोगिता में शामिल होने कनाडा जाने के लिए आर्थिक संकट गहराया तो जमीन गिरवी रखना पड़ा। वहां रामफूल ने अपने खेल कौशल के दम पर विश्व में 9वां स्थान प्राप्त किया। अब अवार्ड की रकम से ही उसने गिरवी जमीन को छुड़ा लिया है।
संसाधनों के अभाव के बीच भी दिव्यांग खिलाड़ी रामफूल टोंडर ने अपने खेल से विशेष मुकाम हासिल किया है। उसकी इस उपलब्धि से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश और अपने गांव का नाम रौशन किया है। शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला फास्टरपुर में दाखिले के समय किसी को यह एहसास नहीं था कि वह आने वाले समय में इतनी शोहरत हासिल कर लेगी। स्कूल में पदस्थ शिक्षक रामभजन देवांगन ने उसकी प्रतिभा को परखा और उसे निखारने का कार्य किया। दिव्यांगता भी कभी रामफूल की तलवारबाजी में बाधा नहीं बनी।
रामफूल कड़े परिश्रम और मेहनत के दम पर मई 2015 में कनाडा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय व्हीलचेयर तलवारबाजी प्रतियोगिता में विश्व में 9वां स्थान हासिल किया। उसके पिता रतन टांेडर ने बताया कि उसने अपनी बेटी को जमीन गिरवी रखकर भेजा। वहां बेटी के अच्छे खेल प्रदर्शन से मिले सम्मान से उनका सपना पूरा हुआ और जमीन गिरवी रखने का फैसला सही रहा। अब अवार्ड में मिली राशि से रामफूल ने गिरवी रखी जमीन को छुड़ाया है।
परेशानी झेल रही खिलाड़ी
आर्थिक तंगी से जूझते परिवार में तीन भाई और दो बहनों के बीच रामफूल तीसरे नंबर की है। उसने अंग्रेजी में एमए तक अपनी शिक्षा पूरी की है। उसने बताया कि पारिवारिक हालात अच्छे नहीं होने से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उसने सरकार से नौकरी की अपेक्षा जताई है।
मिले कई पुरस्कार
रामफूल को कनाडा में हुई स्पर्धा से पूर्व 2014 में मेजर ध्यानचंद पुरस्कार, 19 अगस्त 2016 को शहीद राजीव पांडेय खेल अलंकार के साथ ही 5 नवंबर 2016 को वीर गुंडाधूर पुरस्कार मिले हैं।
साभार- http://naidunia.jagran.com/ से