बॉलीवुड एक ऐसी दुनिया है जो अपने पहलू में हज़ारों-लाखों खुशनुमा कहानियां समेटे हुए है। लेकिन इसी बॉलीवुड के दामन में जाने कितनी वो कहानियां भी मौजूद हैं जो बहुत दर्द और तकलीफ भरी हैं। यहां कितने ही ऐसे कलाकार हैं जिनकी कामयाबी के सूरज को दुनिया सलाम करती है। और जाने कितने ऐसे भी हुए हैं जिनकी पहचान का सूर्य जब अस्त हुआ तो किसी ने उनकी तरफ एक नज़र देखना भी गंवारा ना समझा।
ये कहानी है छत्तीसगढ़ के चार्ली चैपलिन कहलाए जाने वाले छोटे कद के नत्थू दादा की। नत्थू दादा तो आज इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उनकी कहानी यहां ज़रूर है जो बताती है कि फिल्म इंडस्ट्री भले ही सामने से कितनी ही चमचमाती और जगमगाती नज़र आए। लेकिन इसके पीछे की ग़रीबी और ग़ुमनामी बेहद खौफनाक है।
नत्थू दादा का जन्म का जन्म छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के रामपुर में हुआ था। इनका पूरा नाम था नत्थू रामटेके। बताया जाता है कि नत्थू दादा का जन्म 29 मई 1950 में हुआ था। इनका परिवार अच्छा-खासा बड़ा था। नत्थू दादा के छह भाई थे और दो बहनें थी। सवा साल की उम्र तक नत्थू दादा का शारीरिक विकास दूसरे बच्चों की ही तरह था। लेकिन फिर अचानक इनके माता-पिता को महसूस हुआ कि उनकी बाकी संतानों के उलट नत्थू का कद ज़रा भी नहीं बढ़ रहा है। डॉक्टरी जांच कराई गई तो पता चला कि नत्थू दादा के शरीर में उन हार्मोन्स की बहुत ज़्यादा कमी है जो शारीरिक विकास की प्रक्रिया को पूरा करते हैं। नत्थू का कद दो फीट ही रह गया। पर चूंकि इनका मानसिक विकास एकदम सामान्य था तो इन्होंने शिक्षा सामान्य ढंग से ही पाई।
स्कूल के दिनों से ही नत्थू को लोकनृत्य एंव लोक नाट्य कला में दिलचस्पी होने लगी। इनके एक शिक्षक ने भी इन्हें आदिवासी नृत्य कलाओं को सीखने एंव नृत्य कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए खूब प्रेरित किया। हालांकि इनके पिता को इनका ये सब करना पसंद नहीं आता था। उन्हें फिक्र रहती थी कि जाने उनके इस बेटे का भविष्य कैसा रहेगा। पिता की चिंता उस वक्त और अधिक बढ़ गई जब दसवीं क्लास के बाद नत्थू ने आगे पढ़ने से मना कर दिया। नत्थू ने कहा कि अब वो फिल्मों में काम करने मुंबई जाएंगे। लेकिन अचानक मुंबई जाने का ख्याल नत्थू दादा के ज़ेहन में आया कैसे? इसके पीछे भी एक बड़ी ही दिलचस्प कहानी है। चलिए वो कहानी भी जानते हैं।
ये साल 1969 की बात है। नत्थू दादा हाईस्कूल की पढ़ाई कर रहे थे। पास के ज़िले दुर्ग में एक कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था जहां देश के कई नामी पहलवान आए थे। उन पहलवानों में सबसे बड़ा आकर्षण थे दारा सिंह। नत्थू दादा दारा सिंह को देखने के लिए दुर्ग पहुंच गए। जैसे-तैसे भीड़ के बीच से रास्ता बनाते हुए नत्थू दादा कुश्ती रिंग के करीब पहुंचे। वहां दारा सिंह को देखकर नत्थू दादा उत्साहित हो गए और मज़ाक-मज़ाक में उन्हें चैलेंज करने लगे। नत्थू दादा चिल्ला रहे थे,”जो मैं कर सकता हूं तुम वो नहीं कर सकते।”
दारा सिंह को नत्थू दादा की बात मज़ाक लगी और उन्होंने मज़ाक-मज़ाक में ही नत्थू का चैलेंज स्वीकार करके उन्हें रिंग में बुला लिया। रिंग में आने के बाद नत्थू दादा तेज़ी से दारा सिंह के पैरों के बीच से घुसकर दूसरी तरफ निकल गए। ये देखकर दारा सिंह की हंसी छूट गई और उन्होंने सबके सामने अपनी हार स्वीकार कर ली। उन्होंने नत्थू दादा को अपनी गोद में उठा लिया। वहां मौजूद लोगों की भीड़ भी हंस-हंसकर लोट-पोट हो गई।
दारा सिंह ने नत्थू दादा से काफी बात की। उसी बातचीत के दौरान नत्थू दादा ने दारा सिंह को बताया कि मैं भी यहां नाटकों और लोकनृत्यों मे ंकाम करता हूं। क्या आप मुझे मुंबई में किसी फिल्म में काम दिला सकते हैं। तब दारा सिंह ने कहा कि फिक्र मत करो। मैं जल्दी ही तुम्हें मुंबई बुलाऊंगा। वो इवैंट खत्म हुआ और दारासिंह वापस मुंबई लौट गए। नत्थू महीनों तक दारा सिंह के बुलावे का इंतज़ार करते रहे। लेकिन उन्हें मुंबई आने का कोई न्यौता नहीं मिला। और आखिरकार नत्थू दादा ने एक बड़ा कदम उठाने का फैसला कर लिया।
नत्थू दादा ने वो क्या बड़ा कदम उठाया था उसकी जानकारी देने से पहले एक बात और है जो हम आपको बताना चाहते हैं। और वो ये कि कई जगहों पर दावा किया जाता है कि दारा सिंह नत्थू दादा को अगले दिन खुद अपने साथ मुंबई ले गए थे। जबकी छत्तीसगढ़ के नामी लेखक शिवानंद कामड़े ने नत्थू दादा पर जो अपनी किताब ‘छत्तीसगढ़ का चार्ली चैपलिन’ लिखी है उसके मुताबिक नत्थू दादा ने कई दिनों तक दारा सिंह के बुलावे का इंतज़ार किया था। और जब उन्हें दारा सिंह का कोई न्यौता नहीं मिला तो उन्होंने खुद मुंबई जाने का फैसला कर लिया।
जेब में मात्र 19 रुपए लेकर नत्थू दादा बिना किसी जान-पहचान के पहुंच गए मुंबई। शुरुआत में मुंबई की सड़कों पर ही रात गुज़ारनी पड़ी। कई दफा तो भूखे पेट ही सोना पड़ा। फिर एक दिन ये कई किलोमीटर पैदल चलकर पहुंच गए आरके स्टूडियो। वहां कड़े जतन करने के बाद आखिरकार इनकी मुलाकात राज कपूर साहब से हो गई। और चूंकि उन दिनों राज कपूर मेरा नाम जोकर फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे थे तो जोकर के रोल के लिए उन्हें कुछ बौने कलाकारों की ज़रूरत थी। राज कपूर ने पहली ही नज़र में नत्थू दादा को चुन लिया। और जब राज कपूर को पता चला कि नत्थू दादा के पास रहने की भी जगह नहीं है तो उन्होंने अपने बंगले के ही पिछले हिस्से में मौजूद एक छोटा सा कमरा नत्थू दादा को रहने के लिए दे दिया।
मेरा नाम जोकर जैसी बड़ी फिल्म से करियर शुरू करने का नत्थू दादा को बहुत फायदा मिला। बौने कलाकार के तौर पर नत्थू दादा इंडस्ट्री में मशहूर हो गए। अपने करियर में नत्थू दादा ने लगभग डेढ़ सौ फिल्मों में काम किया। इनमें अधिकतर हिंदी थी। कुछ पंजाबी व अन्य भारतीय भाषाओं की फिल्में भी थी। नत्थू दादा ने धर्मात्मा, खोटे सिक्के, अनजाने में, अजूबा, कच्चे हीरे, टैक्सी चोर, महालक्ष्मी और ज्योति बने ज्वाला जैसी फिल्मों में काम किया। लेकिन इतनी फिल्मों में काम करने के बावजूद नत्थू दादा कभी भी पैसे नहीं कमा पाए। लिहाज़ा मुंबई में उन्होंने जितना भी वक्त बिताया, कड़े संघर्षों में ही बिताया।
लेखक शिवानंद कामड़े जी ने जो किताब नत्थू दादा के जीवन पर लिखी है उसके मुताबिक इनकी आखिरी फिल्म सन 1982 में आई धर्मकांटा थी। उस फिल्म में राजेश खन्ना, राज कुमार, जितेंद्र, वहीदा रहमान और अमज़द खान जैसे नामी सितारे थे। इसी फिल्म के एक दृश्य की शूटिंग के वक्त नत्थू दादा पीठ के बल गिर पड़े और इनका करियर खत्म हो गया। दरअसल, एक सीन में अमज़द खान को नत्थू दादा को फेंकना था और एक दूसरे कलाकार को नत्थू दादा को लपकना था। लेकिन उस कलाकार से चूक हो गई और नत्थू दादा काफी ऊंचाई से ज़मीन पर आ गिरे। इनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट लग गई। और चूंकि मुंबई में इनका कोई नहीं था तो मजबूरी में इन्हें वापस अपने गांव रामपुर लौटना पड़ा।
रामपुर लौटने के कुछ महीनों बाद जब नत्थूदादा फिर से स्वस्थ हुए तो उन्होंने मुंबई फिर से जाने का इरादा अपने माता-पिता के सामने ज़ाहिर किया। लेकिन इनके माता-पिता ने इन्हें मुंबई नहीं जाने दिया और पास के एक गांव की लड़की चंद्रकला से इनका विवाह करा दिया। शुरुआत में तो नत्थू दादा अपनी पत्नी से बात भी नहीं करते थे। लेकिन बाद में पत्नी के प्यार ने इन्हें पिघला दिया और इन्होंने मुंबई जाने कि बजाय परिवार के साथ रहने का फैसला कर लिया। लेकिन इसी दौरान इनके पिता की मौत हो गई। नतीजा ये हुआ कि इनके परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।
इनकी पत्नी चंद्रकला ने पांच बच्चों को जन्म दिया। तीन बेटियां व दो बेटे। बच्चों के जन्म के बाद तो मुसीबतें और ज़्यादा बढ़ गई। ऐसे में नत्थू दादा ने फिल्म निर्माण की कोशिश की। इन्होंने गुदगुदा और दो फुट का छोरा छह फुट की छोरी नाम की दो वीडियो फिल्में प्रोड्यूस करने की कोशिश भी की। लेकिन पैसे की भयंकर तंगी के चलते ये फिल्में कभी पूरी नहीं बन पाई। नत्थू दादा मुसीबतों में फंसते चले गए। मजबूरी में इन्होंने काम की तलाश शुरू की। मदद के लिए नत्थू दादा ने सरकार का रुख भी किया। कई नाट्य मंडलियों से काम मांगा। लेकिन कहीं से कोई सहयोग नहीं मिला।
आखिरकार नत्थू दादा को एक रिज़ॉर्ट में तीन सौ रुपए महीने की तनख्वाह पर काम करना पड़ा। साथ ही साथ छोटे-मोटे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ये जोकर बनकर लोगों को हंसाते और पैसा कमाते। उससे भी इन्हें घर चलाने में थोड़ी मदद मिल जाती थी। बाद में छत्तसीगढ़ सरकार ने इन्हें बच्चों के मनोरंजन के लिए राजनांदगांव के चौपाटी इलाके में दो हज़ार रुपए महीना की एक अस्थाई नौकरी भी दी। हालांकि इससे केवल गुज़ारा भर ही हो पाता था।
नत्थू दादा के बारे में एक बात जो आपको बेहद अनोखी और बेहद दिलचस्प लगेगी वो ये कि नत्थू दादा राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। नत्थू दादा ने अपनी पत्नी चंद्रकला रामटेके को सरपंच का चुनाव लड़ाया था। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिल पाई थी। 2003 के छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में नत्थू दादा ने राजनांदगांव सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था। उस वक्त काफी चर्चाएं हुई थी की नत्थू दादा के प्रचार के लिए कुछ फिल्मी सितारे मुंबई से राजनांदगांव आ सकते हैं। हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ। ना ही नत्थू दादा वो चुनाव जीत सके।
बाद में नत्थू दादा बीजेपी से जुड़ गए और चुनावों के दौरान वो बीजेपी के प्रत्याशियों के पक्ष में जनता से वोट मांगते नज़र आते। चुनाव प्रचार तक तो नत्थू दादा के जीवन में थोड़ी उत्सुकता आती थी। लेकिन प्रचार खत्म होने के बाद फिर वही गरीबी और नीरसता। थोड़ी-बहुत खेती ज़रूर थी। लेकिन उससे केवल पेट भरने तक का ही सहारा था। और ज़्यादा उम्मीद उस खेती से नहीं की जा सकती थी। मुफलिसी का आलम ये था कि नत्थू दादा के घर पर एक शौचालय तक नहीं था। और इसी बेतहाशा गरीबी से लड़ते हुए ही 28 दिसंबर 2019 को नत्थू दादा ये दुनिया छोड़कर चले गए। लेकिन अपने पीछे नत्थू दादा एक बड़ी अफसोसनाक और दुखभरी कहानी भी छोड़ गए।