Friday, November 29, 2024
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सिख समाज के गुरु परिवार के रक्षक चौधरी तख्तमल जी

चौधरी तख्तमल जी पंजाब के जिला मुक्तसर क्षेत्र के निवासी थे| इनके गाँव का नाम मत्ते की सराय था| आज कल यह गाँव को सराय नागा के नाम से जाना जाता है| चौ. तख्तमल जी उस समय सत्तर गाँवों के स्वाधीन जिमींदार थे| उनके जन्म की निश्चित तिथि का तो ज्ञान नहीं किन्तु समझा जाता है कि उनका जन्म चार मार्च सन् १४६५ ईस्वी के लगभग हुआ| शक्ति और धन की दृष्टि से चौ. तख्तमल जी खूब धनाढ्य थे| भरपूर शक्ति के कारण वह अत्यंत वीर थे तो धन का आकूत भंडारों ने उन्हें धनवान् भी बना दिया था| इस प्रकार धन के साथ ही साथ वह एक अद्वितीय वीर पुरुष और योद्धा होने का गौरव भी रखते थे|

सिक्खों के दूसरे गुरु अंगद देव जी के पिता जी का नाम श्री फेरुमल खत्री था| उनकी आर्थिक अवस्था कोई बहुत अच्छी न थी और एक समय तो ऐसा भी आया कि वह धनाभाव से बुरी प्रकार से जीवन के साथ जूझ रहे थे| इस अवस्था में वह इस गाँव में आये थे| जब वह इस गांव में आए तो उन्हें खाने के भी लाले थे, इस अवस्था में आपने उन्हें अपने पास मुनीम के रूप में रख लिया| इस प्रकार मुनीम लाला फेरुमान जी अनेक वर्ष तक उनके पास मुनीम स्वरूप कार्य करते हुए अपने जीवन को चलाते रहे| लाला फेरुमल जी के पास रहने को कोई स्थान न होने के कारण उनका निवास भी आपके यहाँ ही था| यहाँ रहते हुए तथा मुनीम की नौकरी करते हुए उनके यहाँ एक पुत्र ने जन्म लिया| यह पुत्र ही आगे चल कर पहले अंगद देव बना और सिक्खों के दूसरे गुरु श्री गुरु अंगद देव जी के रूप में सुप्रसिद्ध हुआ| गुरु अंगद देव जी का बाल्य काल इस गांव में ही बीता और वह इस गाँव की मिट्टी में ही खेलते खाते पल कर बड़े हुए|

चौधरी तख्तमल जी का भी अपना एक भरा पूरा परिवार था| इस परिवार में उनके सात सुपुत्र और एक सुपुत्री थी| उनकी सुपुत्री का नाम माई भराई था, जिसे माई विराई के नाम से भी जाना जता था| इस कन्या को मुनीम लाला फेरुमान जी ने अपनी धर्म बहिन के रूप में स्वीकार किया हुआ था| इस कारण गुरु अंगद देव जी इन्हें बुआ के रूप में संबोधित किया करते थे|

जमींदार चौधरी तख्तमल जी एक धार्मिक व्यक्ति थे तथा वह माता दुर्गा में अत्यधिक आस्था रखते थे, इस कारण वह माता दुर्गा के एक बड़े भक्त के रूप में जाने जाते थे| माता के इस भक्त ने अपने यहाँ माता का एक बहुत विशाल मंदिर बनवाया| इस मंदिर में माता के अतिरिक्त अनेक देवी देवाताओं की अत्यंत भव्य मूर्तियाँ स्थापित की गईं| इतना ही नहीं तख्तमल जी ने इन देवी देवताओं की मूर्तियों के लिए बहुत से स्वर्णिम आभूषण तथा अत्यधिक कीमती वस्तुएं दान में दीं|

चर्चा यह भी है कि मुनीम लाला फेरुमल जी का यह सुपुत्र अंगद देव विरक्त हो गया तथा सन्त बनकर विचरण करने लगा| इसी विचरण के मध्य घूमते हुए गुरु अंगद देव जी एक बार इस गाँव में आये| गाँव में आये इस सन्त के लिए चौधरी तख्तमल जी ने अत्यंत श्रद्धाभाव दिखाया और वह तो आरम्भ से ही धर्म में अत्यधिक आस्था रखते थे, इस कारण सन्त को पूज्य मानते थे और जिस अंगद देव का लाड प्यार से उन्होंने कभी अपनी गोद में लेकर मोड़ मनाया था, वह सन्त रूप में अब सामने खडा था| सन्त सदा ही पूज्य होता है| सन्त का कोई आयु, धर्म, मत, पंथ आदि नहीं रह जाता, इस कारण वह पूजनीय होता है, ऐसा मानते हुए चौ. तख़्तमल जी ने उनकी चरण वन्दना करने का प्रयास किया किन्तु सन्त अंगददेव जी ने तत्काल उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया| इसका कारण भी उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि उनके परिवार ने आपके यहाँ सेवा की है| इतना ही नहीं आयु में भी आप मुझ से बड़े हैं, इस कारण वह तो स्वयं आपसे चरण वन्दना करते हुए आशीर्वाद लेना चाहते हैं किन्तु चौधरी तख़्तमल जी ने यह कहते हुए उन्हें मना कर दिया कि आप सन्त हैं| मैं एक सन्त से अपने चरणवंदन नहीं करवा सकता| इतनी चर्चा होने के पश्चात् गुरु अंगददेव जी, जो उस समय सन्त थे, चौधरी तख्तमल जी को गले मिलते हैं|

चौधरी तख्तमल जी की सुपुत्री भराई का विवाह महिमासिंह खैरा नामक जाट के यहाँ हुआ| वह खंडूर गाँव के चोधरी थे| इस बुआ भराई ने अपने भतीजे अंगददेव, जो आगे चलकर गुरु अंगददेव बने, का विवाह भी अपने ससुराल की ही एक युवती से सन् १५२० ईस्वी में करवा दिया था| किन्तु वह भी आगे चलकर विरक्त हुई और सन्तनी बन गईं|

जब दुराचारी विदेशी आक्रमणकारी मुग़ल बादशाह बाबर ने भारत पर आक्रमण किया तो वह दुष्ट उस क्षेत्र से होकर ही निकल रहा था, जहाँ चौधरी तख्तमल की जागीर आती थी| बाबर ने सुन रखा था कि चौधरी तख्तमल के पास आकूत धन सम्पत्ति है| उसने चौधरी तख्तमल की हवेली और उनके पूरे के पूरे गाँव को लूटने की योजना बनाई| इसलिए उसने अपनी भारी सेना के साथ अकस्मात् इस गाँव पर आक्रमण कर दिया| चौधरी तख्तमल जी ने अपने सहयोगियों की सहायता से बाबर का बड़ी वीरता से प्रतिरोध किया| उनकी तलवार ने म्लेच्छों के रक्त से खूब स्नान किया| इतना ही नहीं गुरु अंगददेव जी के परिवार की रक्षा के लिए भी उन्होंने अपनी पूरी शक्ति लगा दी और इसके लिए अपनी जान की भी प्रवाह नहीं की| इस कार्य में सफलता प्राप्त करते हुए वह गुरु जी के पूरे परिवार को सकुशल गाँव से बाहर निकाल लाये| इतना ही नहीं गुरु जी के इस परिवार को उन्होंने सुरक्षित करने के लिए कुछ जुझारू प्रवृति के लोगों को उनके साथ भेजकर उन्हें गांव हरिके के मार्ग से अपनी बेटी माई भराई के यहां भेज कर सुरक्षित किया| इस युद्ध में अत्यंत वीरता दिखाते हुए अनेक मुगलों की हत्या करते हुए चौधरी तख़्तमल जी भी अत्यधिक गंभीर रूप से घायल हो गए और इन घावों के कारण वह अपने शरीर को त्याग कर चले गए अर्थात् वीरगति को प्राप्त हो गए|

अब गुरु अंगददेव जी के पिता मुनीम लाला फेरुमल जी अपनी धर्म बहिन माई भराई जी के यहाँ ही रहने लगे और यहीं रहते हुए ही सन् १५२६ ईस्वी में उनका देहांत हो गया|

माई भराई सन्त तो हो ही गई थी, अब उन्होंने गुरु नानक देव जी के पंथ को अपना लिया तथा उनकी शिष्या हो गई| जब गुरु नानकदेव जी वृद्ध हो गए थे , तब माई भराई जी को गुरु नानकदेव जी के दर्शनों का सौभाग्य मिला| गुरु अंगददेव जी भी अधिक समय तक अपनी बुआ माई भाराई जी के यहाँ नहीं रुके किन्तु यह सत्य है कि जब उनकी इस बुआ का देहांत हुआ तो वह उनके पास ही थे| वह अपनी बुआ के अंतिम संस्कार में भी सम्मिलित हुए थे| तत्पश्चात् सन्त माई भराई की स्मृति में उनके नाम पर एक गुरुद्वारा भी स्थापित किया गया|

यह बड़े दु:ख और शर्म की बात है कि, जिस चौधरी तख़्तमल जी ने गुरु अंगद देव जी के पिता को शरण दी, उनके परिवार का पालन किया और यहाँ तक कि इस परिवार की रक्षा करते हुए बाबर से जो लोहा उन्होंने लिया, इस कारण वह बुरी तरह से घायल हुए तथा इस कारण ही इस संसार से विदा हुए, उन चौधरी तख़्तमल जी के नाम की चर्चा मैंने कभी मुक्तसर के निकटवर्ती नगर गिद्डबाहा में रहते हुए नहीं सुनी|

मेरा कर्मक्षेत्र गिदडबाहा ही था और मेरा जन्म स्थान, जहां मैंने अपने जीवन के अमूल्य ३६ वर्ष बिताए, यह पंजाब का नगर अबोहर ही था, जो पजाब और हरियाणा की लड़ाई का केंद्र बना रहा| यह भी मुक्तसर के निकट ही है किन्तु यहाँ रहते हुए भी कभी इस चर्चा को नहीं सुना| लोगों ने चौधरी तख्तमल जी के बलिदान को भुला दिया| आज आवश्यकता है चौधरी तख्तमल जी को अत्यन्त सम्मान देते हुए उनके जीवन से प्रेरणा लेने की| जिनके गाँव ने सरदार हरचरण सिंह बराड के नाम से पंजाब को एक मुख्यमंत्री भी दिया, उस गांव के वीर योद्धा चौधरी तख्तमल जी का नाम तो दूर दूर तक चला जाना चाहिए था किन्तु इस नाम की चर्चा तो आज उनके अपने ही जिले में नहीं हो रही| यह हमारे देश, जाति ,पंथ और धर्म के लिए और क्या हानि होगी| हाँ! गुरु अंगददेव जी के जीवन वृत्त में यह चर्चा अवश्य मिलती है, जो हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है, किन्तु इस नाम की चर्चा और उनकी वीरता की गाथाएँ तो आज घर घर में होनी चाहिए।

डॉ. अशोक आर्य
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