कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार चौथमल प्रजापति ‘ मार्तण्ड’ ने हाड़ोती के अक्षरों की व्याकरण रच कर और लगभग साढ़े तीन लाख शब्दों का कोष सृजन कर राजस्थान के साहित्य जगत में नया इतिहास बना दिया। जीवन के प्रारंभ से ही संघर्ष को सहते हुए किस प्रकार इन्होंने अपनी राह बनाई किसी मुक्कमल दास्तान से कम नहीं है। कीचड़ में कमल का फूल और कांटों में गुलाब की तरह रह कर चौथमल के साहित्यकार बनने की कहानी उद्वेलित और आश्चर्यचकित कर देने वाली है। जीवन में कुछ कर गुजरने की इच्छा शक्ति हो और परिस्थितियां कैसी भी हो उसका जीवंत और प्रेरक उदाहरण है चौथमल।
साहित्य के क्षेत्र में हाड़ोती की व्याकरण की रचना आपकी एतिहासिक देन हैं। एक कदम आगे बढ़ाते हुए अब सौगात देने जा रहे हैं राजस्थानी शब्द कोष की तर्ज पर “हाड़ोती शब्द कोष” की। आपने हाड़ोती भाषा के करीब साढ़े तीन लाख शब्दों का कोष संग्रह किया है जो अभी अप्रकाशित है। यह शब्द कोष राजस्थान के साहित्य जगत की अनूठी और अमूल्य निधि होगी। इनके इस योगदान को साहित्य जगत में सुनहरे शब्दों में अंकित किया जाएगा। वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र ‘निर्मोही’ जी ने इस उपलब्धि पर कहा “राजस्थानी शब्द कोष की भांति हाडोती शब्द बनता है तो यह महत्वपूर्ण होगा। इससे अन्य जगहों पर भी हाडोती के प्रचार-प्रसार में मदद मिलेगी। यह शोधार्थियो के लिये मार्ग दर्शक बनेगा।”
आपकी अब तक आठ कृतियों का प्रकाशन हो चुका है। इनमें प्रजापत दोहावली पांथ एक, प्रजापत दोहावली पांथ दो, मां श्रीयादे भक्ति पाठ, श्रीयादे चालीसा, धर्म की संस्थापक मां श्रीयादे, कोटा दरसण, फांवणाओ लाडकरां और राजस्थानी व्याकरण शामिल हैं। शीघ्र प्रकाशित होने वाली आपकी नई कृतियों में सत को बळ लघु कथा संग्रह, अथ गोरा कथानक, गोरा सतक, प्रजापत दोहावली पांथ तीन, चार और पांच शामिल हैं।
इनकी साहित्यिक अभिरुचि जागृत होने के पीछे एक रोचक प्रसंग है। जब बारां-छबड़ा के बीच भूलोन के पास 1993 में बड़ी रेल दुर्घटना हुई तो उससे जो पीड़ा का अहसास हुआ, अंतरआत्मा में उठे शब्द रुपी भावों को कागज पर कलम की नोक से उकेरने की इच्छा हुई। उनको लेकर अक्तूबर में होने वाले मेला दशहरा स्थानिय मंच पर पढने हेतु अन्य कवियों की भांति संचालक के पास पर्ची भेजी। संचालक के पास बैठे व्यक्ति ने पर्ची को फाड़ कर फेंक दिया। बस….! इसी बात को चौथमल ने चुनोती के रुप में स्वीकारा। जिन्दा रहा त़ो एक दिन इस मंच से रचना पाठ करना है। फिर भारतेंदु साहित्य संस्था से जुड़ कर काव्य पाठ करने लगा। धीरे- धीरे हिन्दी एवं हाड़ोती में कविता, लेख, लोक कथा, दोहा पहेलियां आदि स्थानीय एवं समाज की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी और आकाशवाणी केंद्र कोटा से भी प्रसारण का अवसर मिलने लगा। और वह दिन भी आया जब इन्होंने अपनी चुनौती को पूरा करते हुए दशहरा मेले के मंच से पढ़ी कविता में तालियों से दाद बटोरी।
जून 1999 के करगिल युद्ध के दौरान जाबाजों का उत्साह वर्धन करने पर स्थानीय एवं राज्य स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में दोहा,कविता आदि का प्रकाशन होने पर 14 वीं बटालिन राइफल्स जम्बू एवं कश्मीर, राइफल्स 56 ए.पी.ओ. द्वारा, 21 जुलाई 1999 को कमान आफिसर कनर्ल डी.के.नन्दा का प्रशस्ति पत्र प्राप्त हुआ। आपकी रचनाएं स्थानीय एवं राज्य स्तरीय, सामाजिक पत्र-पत्रिकाओं, जागती जोत, माणक, कथेसर, बिणजारो, मरुधरा, बिणजारो, कुरजां, आहूनीर, रुड़ो राजस्थान, छन्दां को हलकारो, राजस्थानी गंधा, आध्यात्मिक अमरत, वाणारासी, पूणे, भोपाल,जमशेदपुर आदि में खूब स्थान पाने लगी। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि से प्रसारण होने लगा। आपको विभिन्न संस्थाओं द्वारा अनेक बार सम्मानित किया गया। आप निरंतर साहित्य सृजन में लगे हैं और अनेक साहित्यिक संस्थाओं में भी सक्रिय हैं।
(लेखक विभिन्न विषयों पर लिखते रहते हैं।)