Sunday, November 24, 2024
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चीन में भी हिन्दी और हिन्दी वालों का जलवा

आप को मालूम है कि चीन में हिंदी पढ़ने-पढाने की शुरुआत सन 1945 में हो गई थी जब पीकिंग युनिवर्सिटी में हिंदी विभाग शुरु हुआ,और एक समय वह भी था जब पीकिंग युनिवर्सिटी के हिंदी विभाग में पांच-पांच छह-छह भारतीय हिंदी अध्यापक थे। आज पीकिंग युनिवर्सिटी का हिंदी विभाग दक्षिण एशिया स्कूल का एक भाग है और दक्षिण एशिया स्कूल में हिंदी के अलावा संस्कृत,पाली,उर्दू,और बंगाली भाषा के विभाग भी हैं, जहां भारत के इतिहास.संस्कृति,साहित्य,और अन्य सामाजिक आर्थिक क्षेत्रों में अध्ययन अध्यापन होता है।हिंदी विभाग में पहले चार साल में एक बार विद्यार्थियों को प्रवेश मिलता था लेकिन 2003 से इस अवधि को कम करके दो साल कर दिया गया है,अब हर दूसरे साल हिंदी पढ़ने की इच्छा रखने वाले विद्यार्थी यहां प्रवेश ले सकते हैं ।यह तो आप को मालूम ही होगा कि चीन में स्नातक होने के लिए चार वर्ष का समय लगता है।हिंदी विभाग में बी ए के बाद एम ए और पी एच डी करने की सुविधा भी है।हिंदी या भारत से संबंधित विषयों पर अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को भारत-चीन सांस्कृतिक आदान-प्रदान योजना के तहत भारत जाने का अवसर भी मिलता है।इस समय पीकिंग युनिवर्सिटी के हिंदी विभाग में स्नातक उपाधि के लिए अध्ययन करने वाले छात्रों की संख्या 30 और एम ए और पी एच डी करने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या लगभग 15 है।

चीन में हिंदी पढ़ रहीं एक छात्रा जिस का हिंदी नाम सूर्यमुखी है और जो बीजिंग में कम्युनिकेशन युनिवर्सिटी में तीसरे वर्ष की छात्रा है।

 अब चीन में कई विश्वविद्यालयों में हिंदी की कक्षाएं शुरु हो गई हैं।सिर्फ बीजिंग में ही पीकिंग युनिवर्सिटी के अलावा दो और विश्वविद्यालय हैं जहां अब हिंदी की पढ़ाई हो रही है। इन में से एक है विदेशी भाषा अध्ययन विश्वविद्यालय और दूसरा है कम्युनिकेशन विश्वविद्यालय। इन दोनों विश्वविद्यालयों में चार साल में एक बार हिंदी के लिए विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाता है और हर बार पंद्रह विद्यार्थी लिए जाते हैं। आप सोच रहे होंगे कि शायद अधिक विद्यार्थी हिंदी पढऩे में रुचि नहीं रखते। बात ऐसी नहीं है,विद्यार्थी तो बड़ी संख्या में हिंदी पढ़ना चाहते हैं,पर सवाल यह है कि यदि सब चाहने वालों को हिंदी पढऩे की छूट दे दी जाए,तो बाद में उन्हें काम ढूंढने में कठिनाई होगी।चीन में हिंदी के आधार पर काम सिर्फ दो जगह ही होता है।एक तो विश्वविद्यालयों के हिंदी विभागों में और दूसरी जगह चाईना रेडियो इंटरनेशनल के हिंदी विभाग में।वर्षों पहले चीन में बीजिंग के प्रकाशन हाऊस से हिंदी में चीन सचित्र पत्रिका और किताबें भी छपा करती थीं। लेकिन अब वह पुराने दिनों की बातें हो गई हैं। लेकिन संभव है कि भविष्य में एक बार फिर यह काम शुरु हो जाए।इस के अलावा चीन के राष्ट्रीय पुस्तकालय में भी हिंदी का एक पद है। आप को जान कर हैरानी होगी कि इस पुस्कालय में भारत में छपने वाली लगभग हर मुख्य पुस्तक मंगवाई जाती है,न केवल हिंदी में बल्कि अन्य भाषाओं में भी।

बीजिंग के बाहर शी आन चीन का एक बहुत महत्वपूर्ण शहर है। यहां के शीआन अंतर्राष्टीय विश्वविद्यालय में भी हिंदी की पढ़ाई होती है और हर साल विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाता है। विद्यार्थियों की संख्या भी यहां अन्य विश्वविद्यालयों से अधिक 30 है ।यहां से पहले बैच के हिंदी के विद्यार्थी पिछले साल यानिकि 2010 में स्नातक हुए हैं।नानचिंग में भी हिंदी की पढ़ाई हो रही है और इस साल से युन्नान के खुनमिंग में युन्नान अल्पजाति विश्वविद्यालय में भी हिंदी की पढ़ाई शुरु हो रही है।

पीकिंग विश्वविद्यालय में हिंदी की पढ़ाई के अलावा अनुसंधान का काम भी होता है और इस का इतिहास काफी पुराना है। हिंदी के अनेक महत्वपूर्ण लेखकों की पुस्तकों का चीनी में अनुवाद हो चुका है।रामचरित मानस का अनुवाद पीकिंग विश्वविद्यालय के अब सेवानिवृत्त अध्यापक छिन लाओश ने किया है और उन के इस योगदान के लिए उन्हें भारतीय राष्ट्रपति ने सम्मानित भी किया है।इस के अतिरिक्त बृहत्त हिंदी-चीनी शब्दकोश भी यहां के अध्यापकों ने तैयार किया है जो चीन में हिंदी पढऩे वाले छात्रों के लिए बहुत उपयोगी है।इस के मुख्य संपादक चिन लाओश हैं। इन्होंने बृहत्र चीनी-हिंदी शब्दकोश भी तैयार किया है जो इस समय पीकिंग विश्वविद्यालय के प्रकाशनगृह से प्रकाशित हो रहा है। महाभारत का चीनी अनुवाद भी साल भर पहले प्रकाशित हो गया है। प्रेमचंद,इलाचंद्र जोशी,रवींद्र ठाकुर,आदि अनेक रचनाकारों की रचनाओं का चीनी में अनुवाद हो चुका है।और इस समय पीकिंग विश्वविद्यालय में हिंदी की अन्य रचनाओं का अनुवाद कार्य भी हो रहा है।

 

साभार- चीनी हिन्दी रेडिओ http://hindi.cri.cn/ से 

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