वर्ष 1989.. अप्रैल माह की पंद्रह तारीख.. !
उस दिन उस चौक पर एक बेहद वीभत्स दृश्य उपस्थित था..
जहां तक दृष्टि जाती थी…. केवल और केवल इंसानी जिस्मों के चीथड़े बिखरे नज़र आ रहे थे… ! हाथ… कहीं पैर.. ! दीवारें मानव-रक्त से भीगी पड़ी थीं….. !
चौक से मिलती सड़क का हर भाग… पार्कों में उगी घास.. सब कुछ कटे-फटे अंगों से अटा हुआ था.. !
जगह थी चाइना..
चौक का नाम….. थियानमेन चौक.. !
और टुकड़े किनके बिखरे हुए थे.. ?
एक छात्र आंदोलन चीन में भी हुआ था 3-4 जून 1989 को, जिसे दुनिया थियानमेन चौक नरसंहार के नाम से जानती है..
उस आन्दोलन में चीनी छात्र लोकतंत्र, आजादी के समर्थन में नारे लगाते-लगाते इतने ज्यादा जोश में आ गए कि चीन विरोधी नारे लगाने लगे.. वो थे चीन-राष्ट्र की संप्रभुता के विरुद्ध नारे बुलंद करने वाले “छात्र”.. “आदर्श लिबरल छात्र..” जो चीन का ही अनाज खाते हुए भी उस की मिट्टी से ग़द्दारी कर रहे थे.. उस देश की नीतियों को चुनौती दे रहे थे.. उस देश की बर्बादी के तराने गा रहे थे..!
लेकिन तब इस पर पुलिस ने उनको गिरफ्तार नही किया..बल्कि उनको लाइन में खड़ा करके चीनी सेना ने सीधे उन पर तोप के गोले दागे थे……पूरे थियानमेन चौक को टैंकों से घेर कर गोलों से उड़ा दिया था.. पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने !
हालांकि तब इस घटना की दुनिया भर में “कड़ी निंदा” हुई थी ,,
लेकिन चीन की सरकार ने कहा था हम देशद्रोहियों से ऐसे ही निपटेंगे, ताकि अगली बार देश के विरुद्ध बात तो क्या सोचने वालो की भी रुह कांप जाए… बाकी दुनिया को जो करना है कर ले…
दुनिया चिल्लाती रह गई.. पर चीन ने अपने विरुद्ध सर उठाने वाले एक भी “तथाकथित छात्र” को जीवित नहीं छोड़ा.. !
नतीजा..????
चीनी छात्र आज अनुशासित है,, डॉक्टर, इंजीनियर बन अपना और अपने देश का नाम रोशन कर रहे है..!!!
लेकिन भारत देश मैं आज जेएनयू में मुहम्मद के नवासे उमर ख़ालिद जैसे डेढ़ पसली के देश-द्रोही कीड़े जब सरेआम अपनी बत्तीसी चियार कर मेरे भारत के हुतात्मा सैनिकों और मेरी बेबसी का मज़ाक उड़ा रहे हैं.. तो मुझे वर्ष नवासी में थियानमेन चौक पर हुए उस लोम-हर्षक नरसंहार की जाने क्यों इतनी याद आ रही है..एक ये कथित लोकतांत्रिक देश हैं जहाँ पहले लोकतंत्र की आजादी के नाम पर देश को खत्म करने की बातें होती हैं, सुरक्षा बलों को गालियां दी जाती हैं….और फिर बाद में इसी लोकतंत्र के लचीलेपन का फायदा उठाकर आतंकियो, देशद्रोहियों के बचाव के लिए सड़क, संसद, सुप्रीम कोर्ट चलाई जाती हैं…
शिक्षा के जिन मंदिरों में अब देश के टुकड़े करने के नारे लगाये जाने लगे हो…आतंकी को शहीद बताया जाने लगा हो..जहाँ गद्दारी पर P.H.D. होने लगी हो…देशद्रोह के ऐसे स्मारकों को ‘जेसीबी मशीन’ से ‘खंडहर’ बना देना ही बेहतर है …..यूनिवर्सिटी की जिन किताबों से गद्दारी की ‘शिक्षा’ मिलती हो उनकी अब होली जलाना ही बेहतर….
इन सभी छात्रों के एडमिशन कार्ड फाड़ कर उन्हें हनुमन्तथप्पा की जगह सियाचिन भेज देना चाहिये ताकि वे वहां “देशभक्ति” की ठंडी हवाएँ महसूस कर सके…या फिर नरेगा में इनके “जॉब कार्ड” बनाकर इनके हाथों में तगारी-फावड़े दे देनी चाहिये ताकि ये जान सके की तपती दुपहरी में ‘भारत-निर्माण’ कैसे होता है…
फिर भी बात न बने तो दोस्तों…टैंक में गोले भर कर रखिए..!! और,,” भारत में भी एक थियामिन चौक का निर्माण कीजिए”…
क्योंकि ,,,
“स्थाई शांति का निर्माण बंदूक की गोली से ही होता है”…. चाइना….. तुझे लाल सलाम.. क्यूकी ये डेमोक्रेसी से तो वो तानाशाही अच्छी…